मंदी की मार ने क्यूआईपी सौदों को भी अपने आगोश में समेट लिया है।
उल्लेखीनीय है कि जिस समय बाजार में मजबूती थी, उस समय क्यूआईपी सौदा काफी ऊंचे प्रीमियम पर किया गया था लेकिन मंदी के कारण कंपनियों की बाजार मूल्यांकन के लुढ़कने से इस सौदे में काफी गिरावट आई है।
एसएमसी कैपिटल ने जो आंकड़े जारी किए हैं उसके अनुसार क्यूआईपी सौदों के मार्क-टू-मार्केट मूल्य में 74.47 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है और यह 6.58 अरब डॉल से गिरकर 1.75 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया है।
गौरतलब है कि बाजार में कारोबारी माहौल दयनीय होने के कारण कई कंपनियों को क्यूआईपी के जरिये फंड जुटाने के रास्ते को बंद करने पर मजबूर होना पडा है। इन क्यूआईपी सौदों से कई बडी वित्तीय कंपनियों को नुकसान पहुंचा है और कईयों को 24,000 करोड से ज्यादा का नुकसान पहुंचा है। इसके लिए कीमतों में आई अचानक गिरावट को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
इन संस्थानों में एचएसबीसी, डॉयचे बैंक, सिटीग्रुप, मेरिल लिंच, फिडेलिटी, गोल्डमैन सैक्स शामिल हैं जिन्होंने 2006-2006 के बीच कंपनियों द्वारा जारी किए गए क्यूआईपी की खरीदारी की थी।
बजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने अगस्त 2008 में क्यूआईपी के कीमतों को लेकर नियमों में संसोधन किया था लेकिन दीगर बात है कि उस समय से लेकर अब तक बाजार में एक भी क्यूआईपी इश्यू देखने को नहीं मिला है।
सेबी ने क्यूआईपी की कीमतों में संसोधन करते वक्त कहा था कि क्यूआईपी इश्यू की कीमतों का निर्धारण इश्यू के दो सप्ताह पूर्व के औसत मूल्य के आधार पर किया जा सकता है। इन सौदों पर काम करने वाले एक निवेश बैंकर ने कहा कि वित्तीय संकट के बाद बाजार में जो गिरावट देखने को मिली है उसमें कोई भी क्यूआईपी सौदों के पक्ष में दिखाई नहीं पड़ता है।
इस निवेश बैंकर ने कहा कि क्यूआईपी में निवेश करने के लिए निवेशकों को कुछ भी अतिरिक्त सुविधा नहीं दी जा रही है क्योंकि मूल्यांकन संभवत: नीचे खिसकता नजर आ रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि क्यूआईपी के प्रति निवेशकों के मोह भंग होन के पीछे मूल्यांकन में गिरावट ही जिम्मेदार नहीं है बल्कि वैश्विक आर्थिक संकट के बाद संस्थानों की संख्या में भी काफी गिरावट आई है जिस वजह से ऐसे हालत बन पड़े हैं। प्राइवेट इक्विटी फंड भी लिमिटेड पार्टनर्स की दगाबाजी के बाद नकदी की कमी का सामना कर रहे हैं, जिससे माहौल और भी गमगीन हो गया है।
