भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अपने प्राइमरी मार्केट एडवाइजरी की उस सिफारिश पर विचार कर रहा है जिसमें सभी कंपनियों के शेयरों की फेस वैल्यू के एक समान रखे जाने की बात कही गई है।
मौजूदा समय में कंपनियां अपने शेयरों के फेस वैल्यू का निर्धारण स्वयं करती हैं जो 1 रुपये से लेकर 100 रुपये के बीच हुआ करती हैं। सेबी की वेबसाइट पर लगे प्राइमरी मार्केट एडवाइजरी के सिफारिशों के अनुसार फेस वैल्यू में भिन्नता के कारण निवेशकों के मन में कई तरह की उलझने पैदा हो जाती हैं।
सिफारिश में कहा गया है कि ऐसा कई बार देखने में आया है कि निवेशक शेयर के फे स वैल्यू को जाने बगैर बाजार में इसकी कीमतों पर सीधे ध्यान देते हैं और उस समय उलझन की स्थिति और बढ़ जाती है जब कंपनियां फेस वैल्यू पर लाभांश देने की घोषणा करती हैं।
सिफारिश में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि कम फेस वैल्यू के आधार पर फीसदी में लाभांश की घोषणाओं से उहापोह की स्थिति पैदा होती है।
यह समस्या उस समय और बढ़ जाती है जब कंपनी ने काफी ऊंचे प्रीमियम पर पैसा जुटाया है या सेंकेंडरी मार्केट में कंपनी के शेयरों का कारोबार काफी ऊंची कीमतों पर हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि गत 2 फरवरी को सेबी ने घोषणा की थी कि कंपनियों को अब फेस वैल्यू के बजाय प्रति शेयर के आधार पर लाभांश की घोषणा करनी होगी। हालांकि सेबी के फेस वैल्यू पर लाभांश समाप्त करने की पहल कुछ कानूनी अड़चनों के कारण धरी रह गई।
गौरतलब है कि विभिन्न प्रकार के फेस वैल्यू की समाप्ति के इस नए कदम से कंपनी की पूंजी और इसके शेयर प्रीमियम एकाउंट का विलय हो जाएगा जिसके बाद प्रति शेयर लाभांश की घोषणा से कंपनी के प्रदर्शन का स्पष्ट तौर पर पता चल पाएगा।
उदाहरण के लिए सेबी को समान फेस वैल्यू जारी करने पर विचार करना होगा या फिर इस पहल को समाप्त करना होगा क्योंकि 1956 के कंपनी कानून के अधिनियम 13(4) के तहत फेस वैल्यू के बारे में पुराने प्रावधानों को 2008 के कंपनी विधेयक में शामिल किया गया है।
हालांकि फेस वैल्यू को समान रखने की बहस काफी पुरानी है और पिछले 8 सालों से इस पर बहस हो रही है। जून 1999 में इस बहत में और ज्यादा गर्माहट तब आई जब सेबी ने इक्विटी शेयर के डिनॉमिनेशन के संबंध में दिशानिर्देशों में संसोधन किया और कंपनी को उनके शेयरों के फेस वैल्यू निर्धारित करने की छूट दे दी।