एक्सचेंजों ने डेरिवेटिव सेगमेंट में पीक मार्जिन दर्ज करने और इसमें विफल रहने पर जुर्माने की जिम्मेदारी क्लियरिंग सदस्यों (सीएम) पर डाली है।
एनएसई ने गुरुवार को एक सर्कुलर में कहा कि सीएम को क्लियरिंग कॉरपोरेशन द्वारा डाउनलोड फाइल के अनुसार दिन के अंत में पीक मार्जिन की जानकारी देने की जरूरत होगी। यदि इस मार्जिन की रिपोर्टिंग में किसी तरह की समस्या आती है तो तो उसे मार्जिन संग्रह की कमी के तौर पर समझा जाएगा और इसके लिए जुर्माना लगाया जाएगा और इसे कस्टोडियन के सीएम से लिया जाएगा।
समान ब्रोकर के जरिये कारोबार करने वाले खुदरा निवेशकों के विपरीत, एफपीआई व्यापार करने के लिए कई ब्रोकरों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्लियरिंग एवं सेटलमेंट सीएम के जरिये होता है।
कस्टोडियन अक्सर ऐसी समान इकाइयां होती हैं जो क्लियरिंग सदस्यों की जिम्मेदारी निभाती हैं। कस्टोडियन ने कुछ दिन पहले बाजार नियामक के समक्ष इसे लेकर चिंताएं जताई थीं।
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, ‘वैश्विक रूप से, कस्टोडियन और सीएम उनके द्वारा पुष्ट सौदों के लिए ही मार्जिन और कॉलेटरल के संबंध में जानकारी मुहैया कराते हैं। इसलिए, अपुष्ट सौदों के लिए अपर्याप्त मार्जिन के लिए जुर्माना लगाना अनुचित होगा।’
उन्होंने कहा, कि क्लियरिंग सदस्य जुर्माने की गणना करने में विफल रह सकते हैं, इसलिए यह अनिश्चित है कि वे किस तरह से इसकी वसूली करेंगे, ग्राहक से या कारोबारी सदस्यों से।
पीक मार्जिन की अवधारणा चरणबद्घ तरीके से 1 दिसंबर से डेरिवेटिव सेगमेंट में लागू होगी, जिसमें क्लियरिंग कॉरपोरेशन उपलब्ध मार्जिन के मुकाबले ग्राहक की इंट्राडे पोजीशन की तुलना करेगा। इसमें किसी तरह की कमी को गैर-अनुपालन समझा जाएगा। पीक मार्जिन का मुख्य उद्देश्य डेरिवेटिव्स में ग्राहकों को दिए जाने वाले लेवरेज को नियंत्रित करना है।
अनुमानों में कहा गया है कि कुल डेरिवेटिव कारोबार में एफपीआई की भागीदारी करीब 15 प्रतिशत है। यह औसत दैनिक कारोबार के संदर्भ में 2-3 लाख करोड़ रुपये बैठती है।
विदेशी निवेशकों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एशिया सिक्योरिटीज इंडस्ट्री ऐंड फाइनैंशियल मार्केट्स एसोसिएशन (आसिफमा) ने कुछ दिन पहले बाजार नियामक सेबी को लिखे पत्र में कहा कि पीक मार्जिन मानकों के क्रियान्वयन को तीन महीने तक आगे बढ़ाया जाए और पर्याप्त मार्जिन में विफल रहने पर लागू जुर्माने को घटाया जाए।
