एनटीपीसी द्वारा मार्च 2009 को समाप्त हए साल में घोषित अस्थायी परिणाम काफी निराशाजनक रहे हैं। इसमें कंपनी के करोपरांत मुनाफे में 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है और यह 7,827 करोड़ रुपये रहा।
बजार यह उम्मीद कर रहा था कि कंपनी 8,000 करोड रुपये का करोपरांत मुनाफा अर्जित कर पाने में सफल होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आश्चर्य की बात यह रही कि एनटीपीसी के शेयर बुधवार को 7 फीसदी चढक़र 196.75 रुपये के स्तर पर बंद हुए जिसकी वजह यह रही कि शुध्द मुनाफेमें कुछ अन्य स्रोतों से आने वाली आमदनी भी शामिल थी।
अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो 9 मार्च से बाजार में जो तेजी देखने को मिली है उसमें कंपनी के शेयरों में इतनी तेजी नहीं आई होती। बुधवार तक सेंसेक्स में आई 29 फीसदी तेजी के मुकाबले इसमें मात्र 5 फीसदी की तेजी आई दर्ज कह गई। चालू वर्ष में कंपनी द्वारा 3,000 मेगावाट क्षमता स्थापित किए जाने की आशा है।
दूसरी तरफ, विश्लेषकों इस बात की संभावना जाता रहे हैं कि कंपनी का समेकित राजस्व 51,000 करोड़ रुपये रह सकता है जबकि समेकित शुध्द मुनाफा के 8,700 करोड रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है। वर्ष 2009-10 में कंपनी के रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) के 14 से 15 फीसदी के बीच रह सकता है जो समाप्त हुए वित्त वर्ष के अनुमान से थोडा ज्यादा है।
एनटीपीसी की इक्विटी पूंजी का कुछ हिस्सा निर्माणाधीन परियोजनाओं में निवेश किया जा रहा है। अगर इसको अपवाद माना जाए तो कंपनी का आरओई ज्यादा होना चाहिए था क्योंकि बुनियादी स्तर पर आरओई में15.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
कंपनी के लिए एक अच्छी बात यह है कि इसके पास 8.5 फीसदी के कर मुक्त बॉन्ड हैं जो कुछ समय पहले विद्युत बोर्ड को प्राप्तियों के बदले जारी किए गए थे। वैसे देखा जाए तो पिछले एक साल के अंदर कंपनी के शेयरों का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
हालांकि निवेशक अब विकास की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और एनटीपीसी से भी वे इस तरह की ही उम्मीद कर रहें हैं। मौजूदा स्तर पर कंपनी के शेयरों का कारोबार ईवीईबीआईडीटीए के 13 गुना के स्तर पर हो रहा है जो खर्चीला है। निफ्टी के फ्री-फ्लोट बाजार पूंजीकरण सूचकांक में आ जाने से कंपनी के शेयर की कीमतों में और ज्यादा गिरावट आ सकती है।
रियल्टी: नकदी बनी चुनौती
हाल में बाजार में तेजी का जो रुख रहा है उसमें रियल्टी शेयरों ने जबरदस्त वापसी की है। इस अवधि के दौरान बीएसई रियल्टी सूचकांक में सेंसेक्स में आए 31 फीसदी के उछाल के मुकाबले 49 फीसदी की तेजी देखी गई है।
कंपनियों के शेयरों की इस तरह वापसी करने की वजह यह है कि कई रियल एस्टेट कंपनियां बैंकों से अपने ऋणों की अदायगी के लिए और समय लेने में सफल हुई हैं। जिसका मतलब यह है कि अब इन कर्जों के भुगतान की अवधि को बढ़ा कर साल 2010-11 तक कर दिया गया है। हालांकि कंपनियों के लिए परेशानियां अभी भी समाप्त नहीं हुई हैं।
इस बाबत मोतीलाल ओसवाल का कहना है कि कंपनियों के सामने रेकरिंग कैश फ्लो ऑब्लिगेशन को पूरा करना अभी भी एक चुनौती है। हाल में ही जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक ओर जहां कई कंपनियां पर्याप्त नकदी जुटाने के लिए सस्ते आवासीय योजनाओं पर निर्भर हैं लेकिन ऐसा करना आसान नहीं है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कंपनियों को कुछ अन्य क्षेत्रों जैसे व्यावसायिक या खुदरा क्षेत्रों से योगदान की जरूरत है। लेकिन कंपनियों के लिए दुखद समाचार यह है कि इन क्षेत्रों से आने वाले रकम की वसूली इतनी जल्दी होती नजर नहीं आती क्योंकि इन क्षेत्रों में मांग की तुलना में आपूर्ति कहीं ज्यादा है।
शायद यही वजह है कि एडलवाइस कैपिटल का अनुमान है कि अगले तीन सालों में संपत्ति की मूल्यों में 35 फीसदी तक का सुधार हो सकता है। आईटी क्षेत्र की तरफ से आनेवाली मांगों में काफी कमी आई है जिससे रियल एस्टेट को और भी ज्यादा पेरशानयिों का सामना करना पड़ सकता है।
