बाजार के भागीदार अब जल्द ही अपने ब्रोकरों की वास्तविक स्थिति से वाकिफ हो पाएंगे।
कुछ बड़ी ब्रोकिंग कंपनियों ने भारतीय ब्रोकर्स के लिए ग्रेडिंग प्रणाली लागू करने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ बातचीत की पहल की है।
इस नई पहल से न सिर्फ निवेशकों को अपने ब्रोकरों के साथ कारोबार करने से जुड़े जोखिम को जानने में मदद मिलेगी बल्कि लंबे समय में प्रत्येक ब्रोकर के लिए उसके ग्रेड के हिसाब से ओपन इंटरेस्ट (ओआई) की सीमा रखी जा सकेगी।
बाजार के जानकार मानते हैं कि ग्रेडिंग प्रणाली लागू होने से निवेशकों में फिर से विश्वास बहाल हो सकेगा और साथ ही इससे विदेशी निवेशकों को आक र्षित करने में मदद मिलेगी जो बिचौलियों की भूमिका को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के कार्यकारी निदेशक अनूप बागची कहते हैं ‘निवेशक बाजार में निवेश संबंधी किसी भी तरह का जोखिम लेने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे बिचौलिये की भूमिका से पैदा होने वाले जोखिम से काफी परहेज करते हैं।
ग्रेडिंग प्रणाली लागू होने से ब्रोकरेज कंपनियों द्वारा जारी की जाने वाली वित्तीय सूचनाओं को समझने में काफी आसानी होगी। ‘ इसी बाबत सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ब्रोकर के लिए ग्रेड निर्धारित होने से इसका इस्तेमाल एक बेहतर विकल्प के रूप में किया जा सकता है, लेकिन इस समय इस तरह के कोई दिशानिर्देश या नियम नहीं हैं।
इस पूरी घटना पर नजर रख रहे एक जानकार ने कहा ‘ग्रेडिंग नियमित अंतराल पर किया जाना चाहिए, साथ ही इसमें सभी प्रक्रियाएं शामिल होना चाहिए और इसके लिए रेटिंग एजेंसी क्रिसिल और केयर को अधिकृत किया जाना चाहिए।’ इसी तरह बागची कहते हैं कि एक बार जैसे ही औपचारिक तौर पर ग्रेडिंग प्रक्रिया लागू हो जाती है, ग्राहकों को यह जानने में काफी सुविधा होगी कि वे किस के साथ सौदा कर रहे हैं।
इस सवाल के जबाब में कि ग्रेडिंग किस तरह से की जाए, बाजार के एक जानकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ग्रेडिंग करते समय कुछ नए मानदंडों जैसे निवशेक शिक्षा, खाता खोलने की प्रक्रिया, नो-योर-कस्टमर (केवाईसी) नियमों, कारोबार क्रियान्वयन प्रक्रिया को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
बाजार के भागीदार कहते हैं कि भारतीय बाजार में अभी भी उतनी कमी नहीं हो पाई है जिसकी वजह निवेशकों का ब्रोकर्स में विश्वास की कमी होना है।
