शेयर बाजार में छाई मंदी दोनों डिपॉजिटरीज- नेशनल सेक्योरिटीज ऐंड डिपॉजिटरीज लिमिटेड (एनएसडीएल) और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेस लिमिडेट (सीडीएसएल) के लिए दोगुनी भारी पड़ी है।
साल 2008-09 में उनके नए डीमैट एकाउंट खुलने की ग्रोथ में तो कमी आई ही है, साथ ही इस दौरान शांत पड़े खातों की संख्या भी बहुत बढ ग़ई है यानी ऐसे खाते बहुत हो गए जिनमें कोई लेनदेन नहीं हो रहा है।
साल 2008-09 के दौरान डीमैट खातों की संख्या 147 लाख से बढ़ कर 152 लाख की हो गई यानी 7.8 फीसदी की बढ़त रही जबकि साल 2007-08 के दौरान यह 38.23 फीसदी की दर से बढ़ी थी। दोनों डिपॉजिटरी की कुल वैल्यू भी इस दौरान 35 लाख करोड़ से कुछ ज्यादा गिरी है, हालांकि मार्च 2008 के खत्म होने तक इसमें 48 लाख करोड़ की गिरावट आई थी।
साल 2007-08 शेयर बाजार के लिए बेहतर साल था जब निवेशकों ने कुल 41 लाख खाते खोले थे ताकि वह आईपीओ और सेकेन्डरी बाजार में निवेश कर सकें। साल 2007-08 के दौरान ढेरों आईपीओ होने से खातों की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ था।
हालांकि जैसे ही आईपीओ की बाढ़ खत्म हुई और सेकेन्डरी बाजार अनाकर्षक हो गया, बहुत से निवेशकों ने अपने खाते रिन्यू भी नहीं कराए और कई जगह जब ब्रोकर खाते रिन्यू करने पहुंचे तो निवेशकों ने अपने शेयर बेचकर खाते ही बंद कर दिए।
बाजार के जानकारों के मुताबिक साल 2008-09 में हर महीने करीब 80,000 नए डीमैट खाते खोले गए जबकि उसके पहले के साल में हर महीने औसतन तीन लाख डीमैट खाते खोले गए थे। इस समय हम हर महीने औसतन 25 हजार नए खाते खोल रहे हैं जबकि पिछले साल यह संख्या चालीस हजार खातों की थी।
यही नहीं ऑपरेशनल (यानी जो चालू हैं) खातों की संख्या भी इस दौरान कम हो गई है। जानकारों के मुताबिक केवल 30 फीसदी खाते ही फिलहाल चालू हालत में हैं जबकि 2006-07 और 2007-08 में करीब 60-70 फीसदी खाते सक्रिय हुआ करते थे।
2007 में सेबी द्वारा खाते रखने के लिए पैन नम्बर देने की अनिवार्यता के बाद इस संख्या में कमी आ गई है। इस समय करीब तीन लाख खाते फ्रीज किए हुए हैं जबकि मार्च 2007 में 33 लाख खाते फ्रीज किए गए थे।
