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नाल्को: फीकी चमक

Last Updated- December 08, 2022 | 8:48 AM IST

एल्युमीनियम की कीमतें पिछले तीन माह में 44 फीसदी गिरकर पिछले पांच सालों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं।


अब आने वाले छह से आठ माह पूरे मेटल केबाजार के लिए बेहद चुनौती भरे साबित होने वाले हैं। गिरती हुई कीमतों की वजह से ही नाल्को ने अस्थायी रूप से एल्युमीनियम का उत्पादन रोक दिया है।

आंकड़ों के अनुसार एलएमई की कीमत 1,512 डॉलर प्रति टन हो गई हैं जो नवंबर 2003 के बाद सबसे कम हैं। इसके साथ ही सितंबर 2008 से अब तक इंवेंटरी लेवल 63 फीसदी बढ़कर 18.9 लाख टन हो गया है जो बताता है कि बाजार की मांग में चिंताजनक गिरावट हो रही है।

नाल्को प्रबंधन का कहना है कि मौजूदा कीमतों पर कई अंतर्राष्ट्रीय विनिर्माताओं के लिए तो अपनी उत्पादन लागत भी कवर करना मुश्किल हो गया है। इनके मुकाबले भारतीय उत्पादकों की हालत थोड़ी अच्छी है।

उदाहरण के लिए नाल्को की प्रोडक्शन लागत 1,500 डॉलर प्रति टन है जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एल्युमीनियम की कीमतों के करीब है। इस स्थिति में नाल्कों के लिए विदेशी बाजारों में बड़ी मात्रा में बिकवाली या निर्यात करना खासा मुश्किल साबित हो रहा है।

इसके चलते विदेशी बाजार जो नाल्को के राजस्व में 40 फीसदी का योगदान देता है, कि हिस्सेदारी इस साल कम हो सकती है। जहां तक घरेलू बाजार की बात करें तो प्रबंधन का कहना है कि यहां भी मांग कमजोर है एक बार इंफ्रास्ट्रक्चर, ऑटोमोबाइल और पावर क्षेत्र में उत्पादन और निवेश बढ़ने लगेगा तो मांग भी बढ़ेगी।

हालांकि कंपनी पुर्वनिर्धारित लक्ष्य के अनुसार ही 2008-09 में 16 लाख टन ही एल्युमीनियम उत्पादन करेगी। इसमें किसी प्रकार की कटौती करने का उसका कोई इरादा नहीं है।

कोयले की कीमतों में हुई गिरावट से अनुमान लगाया जा रहा है कि उसकी उत्पादन लागत 1,400 डॉलर प्रतिटन हो जाए।

हालांकि इससे निकट भविष्य में कंपनी को कोई सहारा नहीं मिलने वाला। कंपनी को एल्युमीना की बिक्री से सहारा मिलने की उम्मीद है जिसका स्पॉट रियलाइजेशन 207 डॉलर प्रतिटन है जबकि इसकी लागत 165 डॉलर प्रतिटन है।

सितंबर तक छह माह में नाल्को की बिक्री में 21.5 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि शुध्द मुनाफा पिछले एक साल की समयावधि में 9.5 फीसदी रहा था। उसके लिए साल की दूसरी छमाही में प्रदर्शन दोहरा पाना खासा मुश्किल रह सकता है।

एबीबी: देरी पड़ी भारी 

इंजीनियरिंग क्षेत्र की अग्रणी कंपनी एबीबी के लिए 2008 का साल अच्छा नहीं रहा है। सितंबर 2008 तक नौं माह में कंपनी की टॉपलाइन सिर्फ 14 फीसदी बढ़कर 4,671 करोड़ रुपये ही हो सकी जबकि वर्ष 2007 में इसमें 39 फीसदी की वृध्दि देखी गई थी।

अब 5,930 करोड़ रुपये की यह कंपनी प्राथमिक रूप से अपने प्रोसेस डिविजन के मौजूदा प्रोजेक्टों में काम की गति धीमी कर सकती है और नए ऑर्डरों की संख्या कम कर  सकती है। यह बेहद चिंताजनक है कंपनी की कुल ऑर्डर बुक में प्रोसेस डिवीजन की हिस्सेदारी 30-40 फीसदी है।

अगर इस क्षेत्र से संबंधित मेटल और सीमेंट की दूसरी कंपनियां फिर से पूंजी व्यय प्रारंभ करती हैं तो एबीबी को कुछ ऑर्डर गंवाने पड़ सकते हैं। इस कंपनी का वर्तमान ऑर्डर बैकलॉग 7,150 करोड़ रुपये का है जो 2007 में कंपनी की तुलना कुल बिक्री का 1.2 गुना है।

यह आंकड़ा अच्छा खासा है। हालांकि  कंपनी की वृध्दि इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी जल्दी यह ऑर्डर पूरा करती है। उद्योग पर नजर रखने वालों का कहना है कि इन ऑर्डरों के पूरा होने में खासा लंबा समय लग सकता है। इसकी वजह है कि कंपनी का मुख्य ध्यान बड़े प्रोजेक्टों में है इन्हें पूरा होने में अधिक समय लगता है।

हालांकि उसके पास 60-70 फीसदी ऑर्डर पावर क्षेत्र से हैं जिनमें विलंब होता नहीं दिख रहा है। इसका एक कारण यह है कि एबीबी एनटीपीसी जैसी कंपनियों को बिजली पैदा करने वाले सयंत्र सप्लाई करता है। हालांकि  कैश फ्लो की समस्या के चलते कुछ राज्य बिजली बोर्ड (एसईबी) अपने प्रोजेक्टों में विलंब कर सकते हैं।

डॉयचे बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य बिजली बोर्डों की वित्तीय स्थिति और खराब होने की संभावना है और एसईबी का औसत कैश कलेक्शन  2007-08 में पिछले साल की तुलना में कम रहा है। राजस्व में कमी आने के कारण एबीबी का ऑपरेटिंग मार्जिन दबाव में आ सकता है।

सितंबर तक नौं माह में ऑपरेटिंग मॉर्जिन 0.6 फीसदी गिरकर 10.8 फीसदी हो गया है। यह देखते हुए कि कच्चे माल की कीमतें लगातार अस्थिर रहीं है, यह इतना बुरा नहीं है।

स्टील और अन्य इनपुट की गिरती कीमतों के चलते कंपनी को अपने मार्जिन को बचाने में मदद मिल सकती है। कंपनी की बैलेंस शीट खासी मजबूत है।

First Published - December 12, 2008 | 9:51 PM IST

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