पिछले सात कैलेंडर वर्षों में पहली बार म्युचुअल फंड (एमएफ) भारतीय शेयरों के शुद्ध बिकवाल बनने के लिए तैयार है। म्युचुअल फंडों ने नवंबर में लगातार छठे महीने शुद्ध बिकवाली की। महीने के दौरान म्युचुअल फंडों ने 22,000 करोड़ रुपये से अधिक के शेयरों की बिकवाली की। सालाना आधार पर घरेलू फंडों ने अब तक 20,000 करोड़ से अधिक की शुद्ध बिकवाली की है।
म्युचुअल फंड पिछले छह कैलेंडर वर्षों के दौरान शुद्ध लिवाल थे। वर्ष 2017 और 2018 में म्युचुअल फंडों ने 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की लिवाली की थी। इससे पहले 2013 में म्युचुअल फंडों ने शुद्ध बिकवाली की थी और 21,082 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। म्युचुअल फंड, बीमा कंपनियों एवं अन्य घरेलू वित्तीय संस्थानों सहित घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) के पास नवंबर में 43,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के शेयर थे लेकिन इस साल 5,127 करोड़ रुपये की शुद्ध लिवाली की। इसके विपरीत, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस साल कहीं अधिक लिवाली की और उन्होंने इस साल अब तक 1 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के शेयर खरीदे। पिछले कुछ वर्षों के दौरान म्युचुअल फंड महत्त्वपूर्ण संस्थागत खरीदारों के रूप में उभरे हैं जो आमतौर पर एफपीआई द्वारा की गई बिकवाली की भरपाई करते हैं।
यूनियन एमएफ के सीईओ जी प्रदीप कुमार ने कहा, ‘पिछले कुछ महीनों के दौरान म्युचुअल फंडों में शुद्ध प्रवाह नकारात्मक रहा है और बाजार की बिकवाली में उसकी झलक मिलती है।’ उन्होंने कहा कि हो सकता है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान अधिक मूल्यांकन के मद्देनजर कुछ इक्विटी फंडों ने रणनीतिक बिकवाली का निर्णय लिया होगा। इक्विटी फंडों ने लगातार चौथे महीने बिकवाली की क्योंकि अक्टूबर में निवेशकों ने लगातार मुनाफा वसूली की थी। इक्विटी-ओरिएंटेड स्कीमों में कुल 3,991 करोड़ (क्लोज-एंडेड स्कीम सहित) की बिकवाली हुई जबकि जुलाई के बाद कुल बिकवाली 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की रही। उद्योग के जानकारों का कहना है कि नवंबर में भी बिकवाली के साथ-साथ मुनाफा वसूली दिखेगी क्योंकि बाजार नई ऊंचाइयों पर है।
प्रदीप कुमार ने कहा कि बाजार में उल्लेखनीय गिरावट दिखने पर ही लिवाली दिखेगी। उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि निवेशक अपने इक्विटी के एक हिस्से को डेट में बदल रहे हैं, खासकर लघु अवधि के फंड के मामले में।’
ब्रोकरेज फर्मों के अनुसार, एक धारणा है यह भी कि भारतीय बाजार फंडामेंटल्स के मुकाबले आगे चल रहा है। यही कारण है कि भारत में संभावनाएं अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले कम आकर्षक दिखती हैं। उदाहरण के लिए, भारत को लेकर यूबीएस का नजरिया तटस्थ बने रहने का है और उसने प्रति शेयर आय (ईपीएस) में वृद्धि 2021 के लिए 25 फीसदी और 2022 के लिए 15 फीसदी का अनुमान जाहिर किया है।
यूबीएस ने कहा, ‘हालांकि 2021 में वृद्धि और आय में पलटाव दिखनी चाहिए लेकिन हालिया प्रदर्शन ने मूल्यांकन (भारत के) को आसियान जैसे कम आकर्षक क्षेत्रों की श्रेणी में डाल दिया है।’ उसने यह भी कहा कि सुधार के मोर्चे पर प्रगति, बजटीय घाटे का आकार और कोविड-19 संबंधी पाबंदियों में ढील जैसे कारकों पर नजर रखने की जरूरत थी।
दूसरी ओर, क्रेडिट सुईस ने भारतीय बाजारों को कमजोर प्रदर्शन वाली रेटिंग दी है। इसने अपने हालिया नोट में कहा है, ‘कोविड-19 के पूरी तरह नियंत्रित न होने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था इस वायरस से प्रेरित मंदी से उबरती हुई प्रतीत होती है। लेकिन हम अन्य एशियाई बाजारों के मुकाबले इसके अधिक मूल्यांकन के कारण अंडर परफॉर्म श्रेणी में रखते हैं।’
