भारतीय इक्विटी बाजार लगातार नई ऊंचाई को छू रहा है और अमेरिकी चुनाव में जो. बाइडन की जीत के बाद वैश्विक बाजारों में हो रही बढ़त के साथ आगे बढ़ रहा है। शनिवार को बीएसई पर सूचीबद्ध और ट्रेडिंग वाली सभी कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण अब तक के सर्वोच्च स्तर 169.3 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो कोविड पूर्व के स्तर 163 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले करीब 6 लाख करोड़ रुपये ज्यादा है।
इसके परिणामस्वरूप भारत का बाजार पूंजीकरण-सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात तेजी से बढ़ा है। इस अनुपात का इस्तेमाल कई विश्लेषक किसी देश में व्यापक इक्विटी बाजार के मूल्यांकन की माप में करते हैं। अभी यह अनुपात 88 फीसदी है, ऐसे में भारत का एमकैप-जीडीपी अनुपात पिछली 12 तिमाहियों के सर्वोच्च स्तर पर है और एतिहासिक औसत 78.5 फीसदी के मुकाबले ज्यादा महंगा है। इसकी तुलना में इस साल मार्च के आखिर में यह अनुपात 56 फीसदी था जबकि दिसंबर 2019 के आखिर में 78 फीसदी।
पिछले 15 वर्षों में यह अनुपात मार्च 2005 के 52 फीसदी के निचले स्तर से लेकर दिसंबर 2007 के रिकॉर्ड 150 फीसदी के स्तर के दायरे में रहा है और इसकी औसत वैल्यू 78.5 फीसदी रही है। इस साल जून के आखिर में भारत की नॉमिनल जीडीपी करीब 192.3 लाख करोड़ रुपये थी जबकि बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण शनिवार को 169.3 लाख करोड़ रुपये था।
पीई गुणक और प्राइस टु बुक वैल्यू के हिसाब से माप करें तो बाजार अभी सर्वोच्च मूल्यांकन के आसपास कारोबार कर रहा है। पिछले एक साल में भारत की नॉमिनल जीडीपी (पिछली चार तिमाहियों के आधार पर) 1 फीसदी घटी है, वहीं सभी सूचीबद्ध कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण इस अवधि में 9 फीसदी बढ़ा है। जीडीपी के आंकड़े अप्रैल-जून तिमाही के बढ़त अनुमान पर आधारित हैं।
पिछली चार तिमाहियों के आधार पर भारत की जीडीपी कम रहने का अनुमान है जब एनएसओ इस महीने के आखिर में जुलाई-सितंबर के जीडीपी अनुमान जारी करेगा।
कई विश्लेषक हालांकि एमकैप के लिए जीडीपी के इस्तेमाल को लेकर चिंता जताते हैं। इक्विनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक और प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा, जीडीपी और बाजार पूंजीकरण के बीच कोई सीधा जुड़ाव नहीं है। यह खास तौर से भारत के लिए सही है जहां सूचीबद्ध कंपनियां भारत की कुल जीडीपी के एक अंश का प्रतिनिधित्व करती है।
उनके मुताबिक, कंपनियों की आय और बैलेंस शीट के आंकड़े मसलन नेटवर्थ या बुक वैल्यू, इक्विटी मूल्यांकन के लिहाज से जीडीपी के मुकाबले बेहतर हैं।
कोविड-19 के बाद वैश्विक नकदी में इजाफे को देखते हुए अन्य विश्लेषकों को स्टॉक के मूल्यांकन व अंतर्निहित आर्थिक व कॉरपोरेट फंडामेंटल के बीच कमजोर जुड़ाव दिखता है। सिस्टमैटिक्स इंस्टिट््यूशनल इक्विटीज के शोध प्रमुख धनंजय सिन्हा ने कहा, वैश्विक केंद्रीय बैंकों की तरफ से आक्रामक मौद्रिक विस्तार के कारण वैश्विक बाजारों में बढ़ी नकदी को देखते हुए इमानदारी से कहें तो एमकैप व जीडीपी अनुपात पर कोई ऊपरी सीमा नहीं है। सिन्हा ने कहा, हाल के हफ्तों में एफपीआई की तरफ से हुई मजबूत खरीदारी को देखते हुए मौजूदा स्तर से एमकैप और बढ़ेगा। हमें लगता है कि एफपीआई और खरीदारी करेंगे।
विश्लेषकों ने भारत की जीडीपी और कंपनियों की आय के बीच कमजोर जुड़ाव की बात कही। पिछले पांच साल में एक ओर जहां भारत की जीडीपी में संचयी तौर पर 44 फीसदी का इजाफा हुआ, वहीं कंपनियों की आय मोटे तौर पर स्थिर रही और इस अवधि में बीएसई का एमकैप 69 फीसदी बढ़ा।
इसके परिणामस्वरूप एमकैप-जीडीपी अनुपात 70-80 फीसदी के दायरे में बढ़ा है, वहीं पिछले पांच साल में व्यापक बाजार पीई गुणक के आधार पर महंगा हो गया है। यहां हमने निफ्टी-50 इंडेक्स के मूल्यांकन को कुल बाजार मूल्यांकन के प्रॉक्सी के तौर पर इस्तेमाल किया।
