देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी के लिए नवंबर में सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही कि उसका वॉल्यूम तेजी से गिरा।
नवंबर में 27 फीसदी की गिरावट देखी गई। यह किसी भी माह में आई सबसे तेज गिरावट है। इसमें चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि इस सेगमेंट में ऑल्टो, वैगन-आर, जेन और स्विफ्ट जैसे मॉडल हैं जो कुल घरेलू बिक्री में 75 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं। इनका वॉल्यूम तेजी से 27 फीसदी गिरा है।
इनमें स्विफ्ट ही एक ऐसा मॉडल है जिसकी बिक्री अच्छी है, लेकिन यह बिक्री इतनी भी अच्छी नहीं है कि यह दूसरे मॉडलों के कमजोर प्रदर्शन की भी भरपाई कर सके। अप्रैल व नवंबर के बीच में वॉल्यूम 1.8 फीसदी गिरा।
वर्तमान वातावरण को देखते हुए 2008-09 में यह क्षेत्र किसी भी तरह की वृध्दि अर्जित कर सकेगा इसमें संदेह है। ए-स्टार के बाजार में आने के बाद भी इन हालातों में कोई फेरबदल आने की संभावना नहीं है।
हालांकि ए-स्टार की ओर खरीदार आकृष्ट हुए हैं लेकिन उसे हुंडई की आई 10 से कड़ी चुनौती मिल रही है जो बाजार में अच्छा खासा कारोबार कर रही है।
मारुति का घरेलू कार बाजार में शेयर भी गिरा है। वर्ष 2007-08 में इसकी बाजार हिस्सेदारी 59 फीसदी थी जो अप्रैल-अक्टूबर 2008 में गिरकर 57 फीसदी ही रह गई।
इसी दौरान हुंडई का की हिस्सेदारी जो 2007-08 में 21 फीसदी थी वह अप्रैल-अक्टूबर में बढ़कर 25 फीसदी के करीब हो गई। उद्योग के जानकारों का मानना है कि मारुति को बाजार की स्थिति सुधरने तक ए-स्टार की लांचिंग को टालना चाहिए था।
17,936 करोड़ रुपये की इस कंपनी के लिए इस कार का प्रदर्शन खासा महत्व रखता था। इस कार की कीमत 3.5-4.2 लाख रुपये की रैंज में काफी प्रतिस्पर्धी है।
इसके कुछ वेरिएंट सस्ते हैं। अप्रैल से लेकर अब तक मारुति का वॉल्यूम दो फीसदी कम हुआ है।
अब इस बात की उम्मीद कम ही है कि मारुति 2008-09 में मारुति का वॉल्यूम अधिक बना रहेगा जितना 2007-08 में उसने अर्जित किया है।
हालांकि इसके एस एक्स 4, डीजायर और स्टीम जैसे मॉडल अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इनका वॉल्यूम नवंबर में दस फीसदी से बढ़ा।
इस समय कंपनी का निर्यात अच्छी स्थिति में है। इसे देखते हुए इसके राजस्व की वृध्दि दर दो अंकों में होनी चाहिए।
एम एंड एम : बढ़ती मुश्किलें
ऑटो और कृषि उपकरण निर्माता कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा (एम एंड एम) के लिए स्थितियां दिन पर दिन कड़ी होती जा रहीं हैं। कंपनी के लिए त्यौहारों का मौसम बेहद निराशाजनक रहा।
इस दौरान उसके यूटीलिटी वाहनों की बिक्री में 41 फीसदी की गिरावट देखने को मिली।
इस क्षेत्र ने इस साल अप्रैल से लेकर नवंबर तक महज दो फीसदी ही विकास दर अर्जित की। इसमें निर्यात भी शामिल है।
वर्तमान चुनौतीपूर्ण हालातों जिसमें ब्याज दर ऊंचाई पर बनी हुई हैं और अर्थव्यवस्था लगातार धीमी पड़ती जा रही है, कंपनी के लिए यूटीलिटी वाहनों के क्षेत्र में 2007-08 का प्रदर्शन दोहरापाना खासा मुश्किल होगा।
कंपनी को इस क्षेत्र में अच्छी प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ रहा है और अप्रैल व अक्टूबर के बीच में उसका मार्केट शेयर 43 फीसदी रहा था।
लेकिन ऑटो क्षेत्र के हालात इस समय बेहद प्रतिकूल हैं। घरेलू टैक्टर बाजार का वॉल्यूम नवंबर में 33 फीसदी गिरा है।
साथ ही अप्रैल से नवंबर के बीच में वॉल्यूम, निर्यात को मिलाकर दो फीसदी बढ़ा। सितंबर 2008 की तिमाही में महिंद्रा एंड महिंद्रा का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन दो फीसदी गिरा।
यह गिरावट ऑटोमाबाइल क्षेत्र के मार्जिन में आई चार फीसदी की गिरावट के चलते आई। इसमें राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा विनिमय में हुआ 118 करोड़ रुपये का नुकसान शामिल है।
इसके चलते कंपनी का शुध्द लाभ 20 फीसदी गिरा। कंपनी के लिए अच्छी बात यह है कि एल्युमीनियम और स्टील जैसे कच्चे माल की कीमतों में कमी आई है।
इसका असर साल की दूसरी छमाही में देखने को मिलेगा। अगर बिक्री में इजाफा नहीं होता है तो ऑपरेटिंग मार्जिन में सुधार आने की संभावनाएं कम ही हैं।
कंपनी के कंसॉलिडेटेड राजस्व में 15-19 फीसदी की वृध्दि की संभावना है।
2007-08 में कंपनी का राजस्व 23,790 करोड़ रुपये था। इसके बाद भी इसका शध्द मुनाफा 2007-08 में अर्जित 1,816 करोड़ रुपये के मुनाफे से 8-10 फीसदी कम ही रहेगा। कुल मिलाकर महिंद्रा को फिर ट्रैक पर आने में समय लगेगा।