बीएस बातचीत
चूंकि बाजार ब्याज दरों में अनुमान से तेज वृद्घि की आशंका का असर दर्ज कर चुके हैं, लेकिन नोमुरा में इक्विटी शोध के प्रमुख एवं प्रबंध निदेशक सायन मुखर्जी ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि यदि मुद्रास्फीति संबंधित समस्याएं अपेक्षाकृत ढांचागत और लंबे समय तक बनी रहीं, तो ब्याज दरों में और तेजी आश्चर्यजनक हो सकती है और इससे मूल्यांकन मल्टीपल में दबाव को बढ़ावा मिल सकता है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या बाजारों में खराब वृहद आर्थिक परिदृश्य का असर दिख चुका है, या यह एलआईसी आईपीओ की सफलता तक अभी सिर्फ अस्थायी बना हुआ है?
भारतीय बाजार साल में अब तक के आधार पर काऊी हद तक सपाट बने हुए हैं। हालांकि, क्षेत्र प्रदर्शन में अंतर है। वैल्यू का आंकड़ा वृद्घि के मुकाबले बेहतर रहा है। पावर/यूटिलिटीज, धातु और तेल एवं गैस में प्रदर्शन अच्छा है। खपत-आधारित, आईटी सेवाओं, और सीमेंट शेयरों ने कमजोर प्रदर्शन किया है। हमें ऊंची ब्याज दरों और वृद्घि को लेकर चिंताएं सता रही हैं। इन दोनों मोर्चों पर नकारात्मक असर दिखा है। बाजार में उतार-चढ़ाव से संकेत मिलता है कि पूंजी लागत में वृद्घि की वजह से मूल्यांकन पर प्रभाव का असर कुछ हद तक दिखा है। हालांकि यदि मुद्रास्फीति संबंधित समस्याएं और अधिक ढांचागत और ज्यादा समय तक बनी रहती हैं तो दरें बढ़ सकती हैं जिससे मूल्यांकन मल्टीपल में कमजोरी को बढ़ावा मिल सकता है। बाजार में वृद्घि के जोखिमों का पूरी तरह से असर नहीं दिखा है। मुद्रास्फीतिकारी दबाव की वजह से आय वृद्घि अनुमान से कम मांग और कुछ खास सेगमेंटों में मार्जिन पर दबाव से प्रभावित हो सकता है।
क्या रिस्क-रिवार्ड अभी भी 2022 में परिसंपत्ति वर्ग के तौर पर इक्विटी के लिए अनुकूल बना हुआ है?
केंद्रीय बैंकों द्वारा बयानों से पिछले तीन-चार महीनों के दौरान बड़ा बदलाव आया है। मुद्रास्फीति से मुकाबला करना प्राथमिकता है। भले ही आरबीआई ने अब वृद्घि के मुकाबले मुद्रास्फीति पर काबू पाने पर ज्यादा जोर दिया है। हमें अब उम्मीद है कि अमेरिकी फेडरल 2022 में 200 आधार अंक तक की कमी करेगी, जबकि दिसंबर 2021 मेंं 100 आधार अंक की सख्ती का अनुमान जताया गया था। मुख्य सवाल यह है कि मुद्रा्रस्फीति और ऊंची दरों में वृद्घि के लिहाज से कितना प्रभाव पड़ा है। मौजूदा समय में वृद्घि को लेकर बाजार की चिंता सीमित है। वृद्घि के लिए जोखिम निराशाजनक है, जिस स्थिति में आय कटौती और मूल्यांकन मल्टीपल में दबाव, दोनों के संदर्भ में प्रभाव पड़ सकता है।
आप सरकार से ऐसी कौन सी नीतिगत प्रतिक्रिया की उम्मीद कर रहे हैं जिससे बाजार और भारतीय उद्योग जगत की मुद्रास्फीति संबंधित चिंताएं दूर हो सकती हैं?
भारत में मुद्रास्फीति ऊंची मांग के बजाय जिंस कीमतों में ज्यादा केंद्रित है। अब तक, ऊंची लागत का ज्यादातर बोझ उपभोक्ताओं पर डाला गया है। उदाहरण के लिए, हाल में, ईंधन की कीमतों में तेजी आई है और नवंबर 2021 के बाद उत्पाद शुल्क में कोई अतिरिक्त कटौती नहीं हुई है। यदि कीमतें और बढ़ती हैं तो हम ऐसी नीतिगत प्रतिक्रिया की उम्मीद कर सकते हैं जिससे ऊंचे राजकोषीय घाटे को बढ़ावा मिल सकता है।
इस पृष्ठभूमि में घरेलू अर्थव्यवस्था पर किन क्षेत्रों का प्रभाव पड़ता है?
दीर्घावधि के नजरिये से, हम घरेलू अर्थव्यवस्था से संबंधित क्षेत्रों को लेकर सकारात्मक हो सकते हैं। कॉरपोरेट और बैंक बैलेंस शीट मजबूत है जिससे आगे चलकर वृद्घि को मदद मिल सकती है। हम खासकर वित्त, उद्योग-निर्माण और नए जमाने की कंपनियों में अवसर देख रहे हैं।