प्रतिफल के लिहाज से संवत 2078 कुछ हद तक निराशाजनक रहा। सेंसेक्स और निफ्टी मामूली गिरावट के साथ बंद हुए, जो संवत 2071 के बाद से खराब प्रतिफल का पहला वर्ष था। हालांकि वर्ष का मुख्य आकर्षण घरेलू बाजारों की मजबूती और वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले उनका अच्छा प्रदर्शन था।
इसे इस तरह से समझते हैं। मॉर्गन स्टैनली कैपिटल इंटरनैशनल (एमएससीआई) इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्स पिछले साल में 33 प्रश्तिात गिरा, डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज में 13 प्रतिशत की कमजोरी आई, और एमएससीआई ऑल कंट्री वर्ल्ड इंडेक्स 23 प्रतिशत गिरावट का शिकार हुआ।
हालांकि, निफ्टी स्थानीय मुद्रा के संदर्भ में 2 प्रतिशत से कम गिरा। मुद्रास्फीति बरकरार रहने, रूस-यूक्रेन गतिरोध की वजह से जिंस कीमतों में दबाव, चीन में लॉकडाउन और महामारी के बाद राहत उपाय धीरे धीरे समाप्त किए जाने की वजह से वैश्विक शेयर बाजारों में कमजोरी आई थी।
अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों में लगातार कीमत वृद्धि के साथ मुद्रास्फीति दशक के नए ऊंचे स्तर पर पहुंची है। केंद्रीय बैंकों ने कीमतें बढ़ाकर और बैलेंस शीट घटाकर मुद्रास्फीति से मुकाबला करने को प्राथमिकता दी थी। शून्य के करीब ब्याज दरों और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा आक्रामक बॉन्ड खरीदारी से भारत समेत इक्विटी बाजारों में बड़ी तेजी को बढ़ावा दिया था।
वर्ष के अंत में, केंद्रीय बैंक चाहते थे कि मुद्रास्फीति को कम किया जाए, भले ही इसके लिए वृद्धि के साथ समझौता करना पड़ा। केंद्रीय बैंकों के इस रुख से इक्विटी बाजारों से पूंजी निकासी को बढ़ावा मिला।
भारतीय बाजार भी इससे अलग नहीं रह पाए। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने संवत 2078 में घरेलू बाजार से 26 अरब डॉलर की बिकवाली की। सामान्य हालात में, इससे शेयर बाजारों में भारी बिकवाली को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि मजबूत घरेलू तरलता से एफपीआई द्वारा की गई बिकवाली की भरपाई करने में मदद मिली।
संवत 2078 में, म्युचुअल फंडों ने घरेलू बाजारों में 2.2 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया। बाजारों ने अक्सर प्रत्यक्ष रूप से दांव लगाने वाले छोटे निवेशकों से भी मजबूत निवेश प्रवाह दर्ज किया। वर्ष के दौरान भारत के डीमैट खातों की संख्या बढ़कर पहली बार 10 करोड़ पर पहुंच गई।
इक्विनोमिक्स रिसर्च ऐंड एडवायजरी के संस्थापक जी चोकालिंगम का कहना है, ‘पिछले साल के हरेक महीने में, लाखों की संख्या में नए निवेशकों ने बाजार में प्रवेश किया था। इनमें से कई को किसी परिसंपत्ति वर्ग के जोखिम पहलुओं के संदर्भ में ज्यादा अनुभव नहीं था। इसके अलावा हरेक परिसंपत्ति वर्ग (सराफा, क्रिप्टोकरेंसी या रियल एस्टेट) को निराशा हाथ लगी। ब्याज दरें नीचे थीं और मुद्रास्फीति को मात देने के लिहाज से ज्यादा पर्याप्त नहीं थीं।
इन नए निवेशकों ने अल्पावधि में पैसा कमाने के लिहाज से इक्विटी में उपयुक्त समझा।’ भारतीय अर्थव्यवस्था के अपेक्षाकृत बेहतर परिदृश्य और मजबूत घरेलू प्रवाह को प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले भारत के बेहतर प्रदर्शन की मुख्य वजह माना जा रहा है। इस मजबूत प्रदर्शन की वजह से बाद के वर्ष में भी कोष आकर्षित होने की संभावना है।
एक स्वतंत्र विश्लेषक अंबरीश बालिगा का कहना है, ‘हम अपने मजबूत प्रदर्शन की वजह से फिर से पूंजी आते देखेंगे। शुरुआती उथल-पुथल के बाद, वैश्विक फंड निवेश से जुड़े हुए हैं। वे उन बाजारों में निवेश करेंगे जो दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करेंगे। साथ ही, हमारी घरेलू तरलता भी ऊंची रहने की संभावना है। अगले 12 महीने भारत के लिए बड़ा अवसर साबित होंगे।’
मिडकैप में प्रमुख सूचकांकों के अनुरूप गिरावट आई, लेकिन यह गिरावट स्मॉलकैप में ज्यादा रही। संवत 2078 में निफ्टी मिडकैप-100 सूचकांक 0.9 प्रतिशत गिरावट का शिकार हुआ, जबकि निफ्टी स्मॉलकैप-100 में 11.3 प्रतिशत की कमजोरी आई।
एफएमसीजी शेयरों में ज्यादा तेजी आई और निफ्टी एफएमसीजी सूचकांक 15 प्रतिशत चढ़ा। विश्लेषकों का मानना है कि एफएमसीजी शेयरों को ऐसे समय में रक्षात्मक दांव समझा जा रहा है जब वैश्विक अस्थिरता बनी हुई है। रियल्टी शेयरों में बड़ी गिरावट आई। निफ्टी रियल्टी सूचकांक में 22 प्रतिशत की गिरावट आई।
अदाणी एंटरप्राइजेज शानदार प्रदर्शन करने वाला शेयर रहा। इसमें 126 प्रतिशत की शानदार तेजी आई, जिसके बाद आईटीसी में 57 प्रतिशत की। वहीं विप्रो और टेक महिंद्रा निफ्टी के खराब प्रदर्शन करने वाले शेयर रहे। इनमें 41.5 प्रतिशत और 30.5 प्रतिशत की गिरावट आई। भागते जिंसों की तेजी थमी
संवत 2078 की दूसरी छमाही में ज्यादातर औद्योगिक जिंसों व ऊर्जा की उम्मीद धराशायी हो गई जब धातुओं, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में तेज गिरावट आई। इनमें से कई जिंसों की कीमतें इस उम्मीद में साल 2022 में कई साल के उच्चस्तर पर पहुंच गई थी कि वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के खुलने और आपूर्ति में सख्ती के बीच उपभोग बढ़ेगा। लेकिन भूराजनीतिक संकट मसलन रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन में नरमी और अमेरिकी डॉलर की मजबूती का हाल के समय में जिंसों की कीमतों पर असर रहा।
ऊर्जा : संवत 2078 ऊर्जा बाजारों में उतारचढ़ाव के लिए जाना गया। फरवरी के आखिर में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध से आपूर्ति में अवरोध पैदा हुआ। इसने कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़ा दी और महंगाई में इजाफा हुआ।
उदाहरण के लिए ब्रेंट क्रूड मार्च में कारोबार के दौरान 134.91 डॉलर प्रति बैरल के उच्चस्तर पर पहुंच गया, जो 2008 के बाद का सर्वोच्च स्तर है। कोविड महामारी से धीरे-धीरे बाहर निकलने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था पर युद्ध के कारण पड़ी महंगाई की मार सहन करना मुश्किल हो गया।
इससे मांग प्रभावित हुई। संवत 2078 के पहले 3-4 महीने में कच्चे तेल की कीमत वैश्विक मंदी के डर से घटीं। ओपेक की तरफ से पिछले महीने आपूर्ति में कटौती से कच्चे कीमतों में आ रही गिरावट थामने में मदद मिली।
धातुएं : भूराजनीतिक संकट और उत्पादन व वितरण पर इसके असर के कारण लौह व गैर-लौह धातुओं में भी संवत 2078 के दौरान काफी घटबढ़ देखने को मिली। चीन जैसे बाजारों में उपभोग पर असर पड़ा और कोविड को लेकर सख्ती के कारण काफी घट गया।
लंदन मेटल एक्सचेंज का इंडेक्स (जो अपने प्लेटफॉर्म पर ट्रेड होने वाली धातुओं की कीमत ट्रैक करता है) संवत 2078 में 18.2 फीसदी घटा जबकि संवत 2077 में इसमें 37.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। लंदन मेटल एक्सचेंज का इंडेक्स इस साल 7 मार्च को 5,505.70 के उच्चस्तर को छू गया था, जो पिछले 10 साल का सर्वोच्च स्तर है। लौह अयस्क की कीमतें भी संवत 2078 में घटकर 88 डॉलर प्रति टन रह गई, जो संवत 2077 में 100.8 डॉलर प्रति टन थी