लागत में बढ़ोतरी, निर्यात मांग में नरमी और फंडों के सख्त हालात के बावजूद भारतीय कंपनी जगत यानी सूचीबद्ध इकाइयों ने अपनी नकदी की चुनौतियों का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया। यह कहना है इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च का। 11 इकाइयों में दबाव बढ़ रहा है, जहां प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह के 50 फीसदी या उससे ज्यादा शेयर वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही में गिरवी रखे हुए थे और सभी रेटिंग एजेंसियों ने नकदी के बारे में कमजोरी की रेटिंग दी।
इंडिया रेटिंग्स ने कहा, पांच इकाइयों की निवेश श्रेणी में रेटिंग (जहां नकदी कम थी) बीबीबी श्रेणी में रखी गई। अन्य छह इकाइयों की रेटिंग निवेश श्रेणी से नीचे रखी गई। एजेंसी ने हालांकि उन इकाइयों का नाम नहीं बताया, जहां नकदी की कमी थी।
ज्यादा गिरवी शेयरों वाले क्षेत्र को संदर्भित करते हुए एजेंसी ने कहा कि बुनियादी ढांचा, लौह व इस्पात व टेक्सटाइल वैसे क्षेत्र रहे जहां की अधिकतम इकाइयों में प्रवर्तकों की 50 फीसदी या उससे ज्यादा हिस्सेदारी गिरवी रखी हुई है। बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कंपनियों की संख्या ज्यादा है क्योंकि उनमें से कई आईबीसी के तहत समाधान प्रक्रिया में हैं।
जिंस की कीमतों में तीव्र बढ़ोतरी, कार्यशील पूंजी के चक्र में विस्तार और ज्यादा परिचालन लागत आदि को लोहा व इस्पात व टेक्सटाइल क्षेत्र की कंपनियों के मामले में शेयर गिरवी रखकर नकदी जुटाने का कारण बताया जा सकता है।
हालांकि बुनियादी ढांचा क्षेत्र की तरह लोहा व इस्पात क्षेत्र व टेक्सटाइल कंपनियां भी कर्ज पुनर्गठन के दौर में गईं।
बीएसई में सूचीबद्ध 610 कंपनियों में प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह की हिस्सेदारी गिरवी रखी हुई है, जिसका प्रतिशत अलग-अलग है।