मौजूदा बाजार अनिश्चितता के बीच म्युचुअल फंड (एमएफ) निवेशकों के लिए वन-स्टॉप सॉल्युशन समझे जाने वाले मल्टी-ऐसेट फंड अब अपनी मजबूत पहचान बरकरार नहीं रख सकते हैं क्योकि ऊंचे कराधान और अल्पावधि इक्विटी बाजार अनिश्चितता से इनके प्रतिफल पर प्रभाव पड सकता है।
पिछले तीन वर्षों के दौरान, मल्टी-ऐसेट फंडों ने 4.3 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है, जो इक्विटी लार्ज-कैप फंडों के 4.6 प्रतिशत के प्रतिफल के मुकाबले कमजोर है। अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन, शॉर्ट ड्यूरेशन और लो ड्यूरेशन जैसी डेट श्रेणियों ने तीन साल की अवधि में इस श्रेणी के मुकाबले ज्यादा प्रतिफल दिया है। मॉर्निंगस्टार इंडिया में निदेशक (एमएफ शोध) कौस्तुभ बेलापुरकर ने कहा, ‘निवेशकों को खरीदारी के वक्त फंडों को लेकर सजग रहने की जरूरत होगी, क्योंकि सभी योजनाएं हर किसी के लिए अनुकूल नहीं होती हैं। अलग अलग मल्टी-ऐसेट फंडों की अपनी स्वयं की विशेषताएं हैं, जबकि निवेशकों को अपने स्वयं के लक्ष्यों और जरूरतों को ध्यान में रखना होगा।’ बेलापुरकर ने कहा, ‘ऐसे फंडों को पोर्टफोलियो का मुख्य हिस्सा नहीं समझा जा सकेगा। निवेशक यदि अपने पोर्टफोलियो को ऑटो-पायलट मोड पर रखना चाहता है तो वह ऐसे फंडों का चयन कर सकता है।’
सलाहकारों का कहना है कि मल्टी-ऐसेट फंड भारतीय बाजारों में मजबूत प्रदर्शन का रिकॉर्ड बनाने में सक्षम नहीं रहे हैं। मुंबई स्थित एमएफ वितरक रुषभ देसाई ने कहा, ‘क्रेडिट जोखिम भी ऐसे फंडों में देखा जा सकता है।’
