असेट मैनेजमेंट कंपनियों से म्युचुअल फंडों को कितना कमीशन मिलता है, सेबी ने म्युचुअल फंड डिस्ट्रिब्यूटरों के लिए यह बताना जरूरी करने का प्रस्ताव रखा था लेकिन इस प्रस्ताव को लेकर निवेशकों में बहुत उत्साह नहीं दिख रहा है।
सूत्रों के मुताबिक सेबी ने इस मुद्दे पर अपनी वेबसाइट पर एक डिस्कशन पेपर भी रखा था। पेपर में डिस्ट्रिब्यूटरों के लिए वेरिएबल लोड स्ट्रक्चर जैसी बातों को भी शामिल किया गया, सेबी ने इन मुद्दों पर 13 फरवरी से 6 मार्च के बीच सार्वजनिक टिप्पणी आमंत्रित की थी।
हालांकि वेरिएबल लोड स्ट्रक्चर के प्रस्ताव पर काफी अच्छा रेस्पांस रहा लेकिन कमीशन डिस्क्लोजर के मामले पर बहुत कम टिप्पणियां मिलीं। मौजूदा समय में एएमसी अपने डिस्ट्रिब्यूटरों को आधे से साढ़े तीन फीसदी तक का कमीशन देती हैं। यह कमीशन निवेशकों द्वारा दिए जाने वाले सवा दो फीसदी से एंट्री लोड से अलग होता है।
एक सूत्र के मुताबिक डिस्ट्रिब्यूटरों का कमीशन चूंकि अलग अलग स्कीम और फंड हाउस के साथ बदलता रहता है लिहाजा निवेशकों को इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं होता। नतीजा यह होता है कि यह मालूम नहीं हो पाता कि डिस्ट्रिब्यूटर की सलाह सही और निवेशक के हित में है या नहीं या फिर वह एएमसी द्वारा दिए जा रहे कमीशन से प्रभावित है।
अगर यह डिस्क्लोजर मानक लागू हो जाता है तो यह दूसरे रेगुलेटरों को भी इसी तरह के नियम लागू करने के लिए प्रेरित कर सकता है। एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) जो डिस्ट्रिब्यूटरों के लिए कोड ऑफ कन्डक्ट बनाता है, वह इस प्रस्ताव को लेकर पॉजिटिव है।
एम्फी के चेयरमैन एपी कुरियन के मुताबिक अगर यह लागू हो जाता है तो म्युचुअल फंड उद्योग में काफी बदलाव आ जाएगा। कई और देशों ने इसे अपनाया है, अगर सेबी इसे लागू कर देती है तो उसी के अनुसार डिस्ट्रिब्यूरों के लिए अलग कोड ऑफ कन्डक्ट बन जाएगा।
हालांकि कुछ बड़े फंड इन मानकों को लागू करने को लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिखे, ज्यादातर के मन में इसकी व्यवहारिकता को लेकर सवाल थे। एक बडे फ़ंड हाउस के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर के मुताबिक डिस्ट्रिब्यूटरों के स्कीम बेचने के दौरान मिलने वाले सभी कमीशन को डिस्क्लोज करना जरा मुश्किल होगा।
नए फंड ऑफर के दौरान फंड हाउस डिस्ट्रिब्यूटरों को प्रमोशन, ब्रांडिंग आदि के लिए 2-3.5 फीसदी ज्यादा देते हैं। यह इस उम्मीद में किया जाता है कि जैसे जैसे बाजार बढ़ेगा एएमसी लंबी अवधि मे अपनी कॉस्ट की भरपाई कर लेगी। उधर डिस्ट्रिब्यूटरों को डर है कि इस तरह के नियम उनके कारोबार को प्रभावित करेंगे और वह ऐसे में बीमा उत्पाद बेचना ज्यादा मुनासिब समझेंगे क्योंकि उसमें कमीशन ज्यादा है।
उद्योग के ज्यादातर लोगों का मानना है कि भले ही ऐसे नियमों से पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन सेक्टर को ऐसे नियम लागू करने के लिए ज्यादा वक्त चाहिए होगा। उनका यह भी कहना था कि म्युचुअल फंड और बीमा उत्पादों के लिए नियम समान होने चाहिए।
