शेयर बाजार की लगातार गिरावट को देखते हुए संस्थागत निवेशकों ने अब अपना पैसा स्माल कैप और मिडकैप की कंपनियों से निकाल कर लार्ज कैप की कंपनियों में लगाना शुरू कर दिया है।
बीएसई-500 में शामिल कंपनियों के तीसरी तिमाही (अक्टूबर से दिसंबर) के नतीजों ने यह साफ कर दिया है। एशियन मार्केट सिक्योरिटीज के उपाध्यक्ष (रिसर्च) कमलेश कोटक के मुताबिक मौजूदा बुरे दौर में निवेशकों को अपने निवेश को सुरक्षित रखने की जरूरत सबसे बडी लग रही है।
यही वजह है कि वह स्माल और मिडकैप के बजाए लार्ज कैप का रुख कर रहे हैं। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की हालत देखते हुए संस्थागत निवेशकों का मानना है कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान स्माल कैप और मिडकैप की कंपनियों को होगा क्योंकि उनके पास पैसा उगाहने की विशेषज्ञता कम होती है और इससे उनकी ग्रोथ पर असर पड़ सकता है।
इस अध्ययन में शामिल की गई 489 कंपनियों में से संस्थागत निवेशकों ने उन 397 कंपनियों में से दो तिहाई से अपना पैसा निकाल लिया जिनका मार्केट कैप 5000 करोड़ रुपए से कम था। बाकी की 92 कंपनियों में से निवेशकों ने उन 55 कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई जिनका मार्केट कैप 5000 करोड़ से ऊपर था।
निवेशकों के रुख में आए इस बदलाव में दो और अहम बातें और भी थी। पहली तो लेहमन ब्रदर्स जैसी फाइनेंशियल कंपनियों का ढहना और अमेरिकन इंश्योरेंस ग्रुप (एआईजी) तो बेलआउट पैकेज, इन घटनाओं ने दुनिया भर में मंदी का संकेत भेजा। दूसरी घटना रही तीसरी तिमाही के नतीजों से कुछ पहले की।
सत्यम का मायटास में विलय का इरादा और फिर उसका रद्द होना। इसने भी कार्पोरेट गवनर्स के मुद्दे खडे क़र दिए। जहां तक घरेलू संस्थागत निवेशकों का सवाल है, उन्होंने 5000 करोड़ के मार्केट कैप की श्रेणी वाली कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 60 फीसदी तक बढ़ाई है।
जबकि इससे नीचे की कंपनियों में हिस्सेदारी 66 फीसदी तक घटा दी है। जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने एक तरफ से सभी में बिकवाली की है, कंपनी के आकार और मार्केट कैप से बेअसर।
पिछले एक साल से ये निवेशक शुध्द बिकवाल ही रहे हैं। तीसरी तिमाही में भी इन निवेशकों ने 20,000 करोड़ रुपए की बिकवाली की है। उन्होंने 5000 करोड़ से कम मार्केट कैप वाली कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 63 फीसदी तक कम कर दी है। हालांकि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 5000 करोड़ से ज्यादा वाली कंपनियों में भी अपनी हिस्सेदारी 60 फीसदी तक घटा दी है।
