रुपये में लगातार गिरावट शेयर बाजार के लिए खतरे की घंटी है। शेयर बाजार में ज्यादा तेजी उसी समय आई है, जब रुपया मजबूत हुआ है या स्थिर रहा है। इसके उलट डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट के साथ बाजार भी लुढ़का है। उदाहरण के लिए बीएसई सेंसेक्स नवंबर की शुरुआत से करीब 2.6 फीसदी फिसला है और इसी अवधि में डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य 1.9 फीसदी कम हुआ है।
आज शेयर बाजार और रुपया दोनों ही गिरकर बंद हुए। भारतीय मुद्रा आज 76.23 प्रति डॉलर पर बंद हुई, जिसमें मंगलवार के स्तर 75.87 की तुलना में करीब 0.47 फीसदी की गिरावट आई है। इसकी तुलना में बीएसई सेंसेक्स आज 0.57 फीसदी फिसला। इसी तरह अप्रैल 2020 से इस साल सितंबर तक रुपये में मजबूती के साथ दलाल स्ट्रीट पर भी भारी तेजी आई है। इस अवधि में बेंचमार्क सूचकांक दोगुने पर पहुंच गया, जबकि रुपया करीब 5 फीसदी मजबूत हुआ। रुपया अप्रैल 2020 में 77 प्रति डॉलर था। पिछले दो दशकों के दौरान बीएसई सेंसेक्स और रुपया-डॉलर विनिमय दर के बीच ऋणात्मक 0.813 सहसंबंध रहा है।
विश्लेषक रुपये के मूल्य और शेयर बाजार के बीच ऋणात्मक संबंध की वजह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के निवेश व्यवहार को मानते हैं। नारनोलिया सिक्योरिटीज के मुख्य निवेश अधिकारी शैलेेंद्र कुमार ने कहा, ‘अगर एफपीआई को लगता है कि भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन होगा तो वे भारत में शेयरों की खरीद घटा देते हैं या अपने शेयर बेच देते हैं। इससे बाजार में गिरावट या अस्थिरता आती है।’
यह हाल में शेयर बाजार में एफपीआई की गतिविधि में नजर भी आता है। दिसंबर में अब तक रुपया करीब 0.93 फीसदी कमजोर हुआ है, जबकि एफपीआई इस महीने के पहले पखवाड़े के दौरान शेयर बाजार में 2.84 अरब डॉलर के शुद्ध बिकवाल रहे हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि मुद्रा के अवमूल्यन से अर्थव्यवस्था में महंगाई का दवाब पैदा होता है, जिससे इक्विटी का मूल्यांकन कमजोर हो रहा है। जेएम फाइनैंशियल इंस्टीट्यूशनल सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘पुराने आंकड़ों से पता चलता है कि रुपये में गिरावट के साथ ही शेयरों के मूल्यांकन में गिरावट आती है, जिससे निवशकों को कमजोर प्रतिफल मिलता है। इसके विपरीत जब रुपया मजबूत होता है तो मूल्यांकन बढ़ता है और शेयरों की कीमतें बढ़ती हैं।’
उनका अनुमान है कि अगले 12 महीनों में रुपया गिरकर 77-78 प्रति डॉलर के आसपास आ जाएगा। सिन्हा ने कहा कि भारतीय शेयर बाजार पर उसका असर पडऩे के आसार हैं। भारत के चालू खाते के घाटे में बढ़ोतरी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीति के कारण वैश्विक तरलता में कमी आने से रुपये में गिरावट आने के आसार हैं।
सिन्हा ने कहा, ‘कच्चे तेल की कीमतों के रिकॉर्ड निचले स्तरों पर आने से चालू खाते के घाटे में कमी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नरम मौद्रिक नीति के बाद तगड़े पूंजी प्रवाह के कारण अप्रैल 2020 से रुपये में मजबूती आई थी। अब ये दोनों मददगार कारक पलट रहे हैं, जिससे रुपये पर दबाव बना हुआ है।’
भारत का वस्तु व्यापार घाटा पिछले तीन महीनों के दौरान 20 अरब डॉलर के पार निकल चुका है। यह नवंबर में करीब 23 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर रहा। विश्लेषकों का कहना है कि इससे 2021-22 में चालू खाते के घाटे में तेजी से बढ़ोतरी होगी।
