ऐसे समय में जबकि शेयर बाजारों में लगातार गिरावट का रुख है, उन कंपनियों के शेयर खरीदना फायदेमंद हो सकता है जिन्होंने अच्छा लाभांश दिया हो।
आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि जब बाजार निचले स्तर से ऊपर उठता है तो लाभांश वितरण की रणनीति पहले से बेहतर प्रदर्शन करती है। बिजनेस स्टैंडर्ड रिसर्च ब्यूरो ने लाभांश देने वाली 1,300 कंपनियों की जांच पड़ताल की और पाया कि इनमें से 110 कंपनियों ने 2007-08 में लाभांश बांटे थे।
इन कंपनियों ने 2007-08 में अपने कुल मुनाफे का 22.85 फीसदी हिस्सा लाभांश के तौर पर बांटा। फिलहाल इन कंपनियों का डिविडेंड यील्ड 5 फीसदी से ऊपर है। इन 110 कंपनियों ने दिसंबर 2008 को खत्म हुए 9 महीनों के दौरान 10,392 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया था।
जबकि पूरे साल के लिए उनका कुल मुनाफा 11,283 करोड़ रुपये का था। इसका मतलब यह हुआ कि ये कंपनियां मार्च 2009 को खत्म हो रहे वर्ष में भी लाभांश बांट सकती हैं। मौजूदा समय में इन कंपनियों के शेयरों के दाम 50 फीसदी से भी ज्यादा घट गए हैं और ये आकर्षक लाभांश यील्ड पर कारोबार कर रहे हैं।
इन 110 कंपनियों में से 14 कंपनियां 10 फीसदी से ऊपर के डिविडेंड यील्ड पर कारोबार कर रही हैं। जेटकिंग इन्फोट्रेन, एम एम फोर्जिंग्स, गुजरात एनआरई कोक, ग्रेफाइट इंडिया, शिव टेक्सयार्न, साइबरटेक सिस्टम, फ्लेक्स फूड्स, एनसीएल इंडस्ट्रीज, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, जीआरएम ओवरसीज और जॉली बोर्ड 10 फीसदी से अधिक के डिविडेंड यील्ड पर कारोबार कर रही हैं।
इन कंपनियों के शेयरों का भाव 52 हफ्ते पहले के उच्चतम स्तर से 50 से 65 फीसदी कम है। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के विश्लेषक के अनुसार डिविडेंड यील्ड का मतलब बाजार मूल्य के आधार पर प्रति शेयर दिया जाने वाला लाभांश है। इसी के आधार पर निवेशक यह तय करता है कि उसे किसी कंपनी का शेयर खरीदना है या नहीं।
जब बाजार में अचानक से करेक्शन देखने को मिलता है तो अधिक डिविडेंड यील्ड देने वाली कंपनियों को चुनना निवेशकों के लिए आसान होता है और जब बाजार में वापस से सुधार देखने को मिलता है तो मुनाफा कमाया जा सकता है। पर बाजार ने कब अपना बॉटम (सबसे निचला स्तर) छू लिया है, इसका अंदाजा लगाना इतना आसान नहीं होता है।
ऐसा हो सकता है कि जब कोई निवेशक बाजार का बॉटम समझ कर खरीदारी करता है तो मुनाफा कमाने के पहले कुछ समय के लिए बाजार में और गिरावट देखने को मिले। लाभांश पर निवेशक को कोई कर नहीं देना पड़ता है। हालांकि निवेशकों को एसटीटी और शॅर्ट टर्म कैपिटल गेन्स पर कर देना पड़ता है।
