बुधवार को एचडीएफसी का शेयर पिछले ढाई सालों के सबसे निम्तम स्तर पर आ गया और यह 1,161.60 रुपये पर बंद हुआ।
हालांकि कंपनी का शेयर उन विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास है जो पिछले 10 दिन से जोरदार बिकवाली करते आ रहे थे रहे थे। बाजार को पहले के मुकाबले इस बात को लेकर भी काफी चिंतित दिखाई दे रहा है कि आवासीय ऋण प्रदाता इस बड़ी कंपनी की आय अनुमानित स्तर से कहीं ज्यादा नीचे जा सकती है।
मंदी की मार से जहां सभी क्षेत्रों में मांग में कमी देखी गई वहीं आवासीय ऋण की मांग में भी काफी कमी आई और यह बात दिसंबर 2008 में ऋणों की मंजूरी में कमी आने से पूरी तरह से साफ हो जाती है। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा आवासीय ऋण की दरों को पहले पांच सालों तक 8 फीसदी के स्तर पर रखने के फैसले के बाद एचडीएफसी के शेयरों में खासी गिरावट आई है।
एसबीआई ने यह घोषणा फरवरी में की है और इस घोषणा के बाद से कई और बैंकों ने आवासीय दरों में कटौती की घोषणा की है। इससे एचडीएफसी के लिए कठिन कारोबारी माहौल में राह और भी मुश्किल हो गई है।
चूंकि एचडीएफसी की खुदरा जमा तक उतनी पहुंच नहीं है और ऐसे में कंपनी अगर ब्याज दरों में कमी करती है तो इससे कंपनी के लिए कारोबार करना और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। हालांकि ऐसे समय में भी जब कारोबार की स्थिति उतनी खराब नहीं थी, दिसंबर 2008 की तिमाही में प्री-एकसेप्शनल अर्निंग्स में आय 13 फीसदी के साथ काफी निराशाजनक रही जबकि ऋणों के आवंटन की दर में साल-दर-साल के हिसाब से 7.6 फीसदी की कमी आई।
हालांकि इसके पीछे वजह यह रही कि उद्योग जगत को अपेक्षाकृत कम ऋण आवंटित किए गए जबकि उद्योग जगत के अलावा भी आम लोगों को दिए जाने वाले ऋणों में भी मात्र 5-6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
विश्लेषकों का मानना है कि मांग में कमी की स्थिति आगे भी जारी रह सकती है और इस वजह से अगले साल नेट इंटरेस्ट इनकम वित्त वर्ष 2008-09 के अनुमानित 3,300 करोड़ रुपये से 16-17 फीसदी ज्यादा हो सकता है। एचडीएफसी की कुशल प्रबंधन क्षमता को देखते हुए इसके गैर-निष्पादित धन में और ज्यादा बढाेतरी नहीं होनी चाहिए।
सीमेंट: अपेक्षा से ज्यादा
बाजार में कारोबार की बुरी स्थिति के बाद भी सीमेंट के शेयरों का कारोबार काफी बढ़िया रहा है। पिछल छह महीनों के दौरान सेंसेक्स में आई 44 फीसदी की गिरावट के मुकाबले सीमेंट के शेयरों में मात्र 20 फीसदी की गिरावट आई है।
फिलहाल, 474 रुपये के स्तर पर अल्ट्राटेक के शेयरों का कारोबार वित्त वर्ष 2009-10 की अनुमानित आय के 11.7 गुणा के स्तर पर हो रहा है। जबकि एसीसी और अंबूजा सीमेंट का कारोबार वित्त वर्ष 2009-10 की अनुमानित आय के 12.7 गुणा के स्तर पर हो रहा है।
अल्ट्राटेक के शेयरों के सबसे सस्ते होने का कारण कंपनी का कारोबार में आई कमी रही जिसमें अप्रैल और जनवरी के बीच की अवधि में मात्र 4 फसदी से ज्यादा का विकास हुआ। इसकी तुलना में एसीसी के कारोबार की विकास की दर 5 फीसदी से ऊपर रही।
कंपनी की पकड़ दक्षिण भारत में काफी अच्छी है और इस क्षेत्र के बाजार में कारोबार विकास भी बढिया रहा लेकिन इसके बाद भी कंपनी अपने कारोबार की मात्रा में बढ़ोतरी कर पाने में पूरी तरह से सक्षम नहीं हो सकी। वास्तव में दक्षिण के बाजारों में कीमतों में बढाेतरी के बावजूद भी अल्ट्राटेक का रियलाइजेशन अंबुजा सीमेंट के मुकाबले कम ही रहा।
हालांकि अल्ट्राटेक के खर्चों में कमी आने के बावजूद भी बाजार इस बात को लेकर बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं है कि कंपनी अपनी प्रतिद्वंद्वियों से अच्छा प्रदर्शन करेगी। हालांकि एसीसी थोडा के लिए खर्च कुछ ज्यादा जरूर हो सकता है क्योंकि अगले 6-8 महीनों के दौरान बाजार में आपूर्ति ज्यादा होने के कारण कीमतों में कटौती की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
इस समय दक्षिण और पश्चिम भारत में सीमेंट की कीमतें काफी अच्छी रही हैं और अगर यह रुझान कायम रहता है तो अंबुजा सीमेंट को काफी फायदा हो सकता है। आयात किए जाने वाले कोयले की कीमतें कम होने से अंबूजा को अन्य सीमेंट कंपनियों के मुकाबले ज्यादा फायदा मिल सकता है।
हालांकि सभी सीमेंट कंपनियों के मुनाफे के 2009 और 2009-10 में कमजोर रहने की संभावना बताई जा रही है, विश्लेषकों का मानना है कि अल्ट्राटेक के शुध्द मुनाफे में 5 फीसदी की कमी आ सकती है जबकि एसीसी और अंबुजा के शुध्द मुनाफे में इससे कुछ ज्यादा की गिराट आ सकती है।
