सरकारी कंपनियों के लिए अब गैर प्रमुख संपत्तियों को बेचना, सरकार को एक निर्धारित लाभांश देना और सूचीबद्ध उपक्रमों में बाजार पूंजी बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों की रणनीति बनाना अनिवार्य कर दिया गया है। यह शर्तें अब सहमति पत्र (एमओयू) में शामिल की गई हैं, जो सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम को हर साल सार्वजनिक उद्यम विभाग के साथ करना होगा। इसका इस्तेमाल सालाना लक्ष्य तय करने में होगा, जिसके आधार पर प्रदर्शन की समीक्षा होगी। सरकार व पीएसयू के बीच एमओयू में पीएटी, उत्पादन एवं पूंजीगत व्यय के अलावा कुछ अन्य लक्ष्य भी शामिल होंगे।
नवंबर के आखिर में उद्योग से जुड़े एक कार्यक्रम में दीपम के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने इस बात की वकालत की थी कि संपत्ति मुद्रीकरण को सरकार व पीएसयू के बीच हुए एमओयू में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार की मालिकाना वाली कंपनियों के लिए पीएसयू का बाजार पूंजी बढ़ाना ध्यान के प्रमुख क्षेत्र में शामिल होना चाहिए। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा कि अब यह सब कुछ दीपम की ओर से पीएसयू के एमओयू में शामिल किया गया है और इसे डीपीई के पास भेजा गया है।
सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां सरकार द्वारा उपक्रमों के मुद्रीकरण की कवायदों की उपेक्षा करती रही हैं, जिसे अब एमओयू में शामिल कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि सरकारी कंपनियां सरकार के दबाव के बावजूद अपनी संपत्तियों की बिक्री में दिलचस्पी नहीं दिखा रही थीं। उन्होंने कहा कि इसकी एक वजह उन्हें जांच का डर है।
पहले की स्थिति से इतर अब सीपीएसई को अनिवार्य रूप से संपत्तियों को चिह्नित करना होगा और उस योजना व कंपनियों द्वारा अपनी संपत्ति बेचने की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे में सरकार को सूचित करना होगा। यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रदर्शन का अतिरिक्त मानक होगा। अगर वे अपनी संपत्तियां बेचने में उस साल सफल नहीं होती हैं, जो एमओयू में लिखा गया है, तो उसके लिए वे जवाबदेह होंगी।
सरकारी उपक्रम ये संपत्तियां खुद भी बेच सकेंगी और अगर संपत्ति का मूल्य 100 करोड़ रुपये से ज्यादा है तो वे इसके लिए निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) का सहयोग भी मांग सकेंगी।
सूचीबद्ध पीएसयू को अपनी बाजार पूंजी एक निश्चित स्तर तक बनाए रखनी होगी और पहले से निर्धारित स्तर तक बढ़ानी होगी। सरकारी कंपनियों को एक निश्चित राशि लाभांश के रूप में देने का आश्वासन देना होगा। अधिकारी ने कहा कि यह लक्ष्य कंपनी के पिछले 5 साल के प्रदर्शन के मुताबिक तय किया जाएगा।
इस समय सरकारी कंपनी को अपनी शुद्ध पूंजी का 5 प्रतिशत या कर के बाद मुनाफे का 30 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, हर साल लाभांश के रूप में सरकार को देना होता है। बहरहाल एमओयू में यह व्यवस्था नहीं है, लेकिन दीपम के दिशानिर्देशों में है। एमओयू में पीएसयू से लाभांश की राशि का उल्लेख करने को कहा गया है, जो वह साल में सरकार को देगा, जो इस राशि से ज्यादा हो सकती है।
हाल ही में दीपम ने कंपनियों से कहा था कि वे अंतरिम लाभांश तिमाही और छमाही दें, जबकि अभी साल में देने का नियम है।
ज्यादा बाजार पूंजीकरण व लाभांश से सरकार को हिस्सेदारी बिक्री से विनिवेश प्राप्तियां बढ़ाने में मदद मिलेगी। अधिकारी ने कहा कि यह शर्तें इसलिए जोड़ी गई हैं, जिससे कि पीएसयू इन क्षेत्रों में सक्रियता से काम करें।
