पिछले दिनों आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एसेट मैनेजमेंट कंपनी ने अपने 35 फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान की रेटिंग क्रिसिल से करवाई।
ऐसा करने वाला वह अकेला नहीं है। पिछले कुछ माह में कई अन्य फंड हाउस भी क्रिसिल समेत दूसरी रेटिंग एजेंसियों के पास नए लांच होने वाले फंडों के लिए रेटिंग कराने और पुरानी रेटिंग को बढ़वाने में लगे हैं।
क्रिसिल की मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक रूपा कुडवा ने बताया कि इसकी शुरुआत सिर्फ कुछ माह पहले ही हुई है। अब बड़ी संख्या में उनके पास फंड हाउस आ रहे हैं जो अपने पेपरों की क्रेडिट क्वालिटी के लिए रेटिंग चाहते हैं।
रेटिंग की इस तरह बढ़ी चाह के पीछे प्रमुख बात यह है कि इस समय फंड हाउस निवेशकों के मध्य फंड को लेकर व्याप्त गलत धारणों के चलते समस्याओं से जूझ रहे हैं।
वे अपने निवेशकों को अपने पेपरों की क्वालिटी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त करना चाहते हैं। पिछले कुछ माह से फंड हाउस अपनी डेट स्कीम में रिडम्पशन केभारी दबाव का सामना कर रहे हैं।
एक डेट फंड मैनेजर जिन्होंने अपने एक फंड को हाल ही में रेट करवाया है, के अनुसार पहले हम जितना संभव हो सके उतने समय तक अपने फंडों के लिए रेटिंग लेने से बचते थे।डाउनग्रेड फंड को बैंक से कर्ज भी मुश्किल से मिलता है और कॉर्पोरेट निवेश उसमें से पैसा भी बहुत जल्दी निकाल लेते हैं।
निवेश विशेषज्ञ मानते हैं कि रेटिंग से संस्थागत निवेशक को प्रभावित किया जा सकता है, लेकिन रिटेल निवेशक पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।
निवेश विशेषज्ञ गुल टेकचंदानी का कहना है कि पहली बार में तो रिटेल निवेशक इस रेटिंग को समझ ही नहीं पाते। इसलिए निवेश से पहले वे रेटिंग देखें इसका सवाल ही नहीं उठता।
कैनरा रोबेको एमएफ के निदेशक (मार्केटिंग एंड सेल्स) संजय शांतारमन का कहना है कि अपने फंड की रेटिंग करवाने का प्रमुख उद्देश्य बैंकों का फायदा है। रेटिंग तय कराने से उन बैंकों को आसानी होती जो इसमें निवेश करना चाहते हैं।
शांतारमन ने बताया कि अगर फंड को डाउनग्रेड किया जाता है तो कुछ लोग सवाल उठाते हैं अगर वे पोर्टफोलियो से पूरी तरह से संतुष्ट हैं तो फिर कोई बात नहीं।
एफएमपी, लिक्विड और लिक्विड प्लस फंड के पेपरों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठने के बाद क्रिसिल ने एक पत्र जारी कर फंड हाउसों से और डिस्क्लोजर की मांग की थी।