वोलंटरी रिटेंशन रूट (वीआरआर) के जरिये विदेशी डेट निवेश में पिछले कुछ समय से बड़ी तेजी आई है। इस घटनाक्रम से अवगत एक अधिकारी ने कहा कि एक या दो बड़े सौदों की मदद से इस निवेश में तेजी आई और यह बढ़कर कुल 15,000-20,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।
इस वजह से बड़ी तादाद में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) हैरान हैं, क्योंकि वे अपनी मुख्य निवेश प्रतिबद्घताएं पूरी करने में सक्षम नहीं होंगे। चार्टर्ड अकाउंटेंट सुरेश स्वामी ने कहा, ‘पिछले करीब 2-3 सप्ताहों में इस सीमा के बड़े हिस्से को देखते हुए हमारे कई ग्राहक अपने लेनदेन पूरे नहीं कर सके।’
वीआरआर से एफपीआई द्वारा दीर्घावधि रुपया उधारी के लिए दिलचस्पी का पता चलता है और इसे आरबीआई द्वारा 1 मार्च 2019 को शुरू किया गया था। मूल आवंटन राशि 75,000 करोड़ रुपये थी, जिसे बाद में ‘वीआरआर कम्बाइंड’ श्रेणी के तहत बढ़ाकर पिछले साल 1.5 लाख करोड़ रुपये किया गया था।
विल्सन फाइनैंशियल सर्विसेज के संस्थापक आनंद सिंह ने कहा, ‘जहां यह एक बेहद उत्साहजनक घटनाक्रम है, क्योंकि इससे भारतीय कंपनियों को दीर्घावधि ऋण प्रतिबद्घता में निवेशकों की दिलचस्पी का पता चलता है और कई कस्टोडियन और एफपीआर्इ के सलाहकारों ने इसके इस्तेमाल में अचानक आई तेजी की वजह से हैरानी जताई है। जिन एफपीआई को हम परामर्श मुहैया कराते हैं, उनमें से ज्यादातर ने डेट निवेश पर भरतीय कंपनियों को लेकर अपनी प्रतिबद्घता जताई है और वे अतिरिक्त सीमा नहीं मिलने पर अपनी प्रतिबद्घताओं में विफल रह सकते हैं।’
इस मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि कुछ कस्टोडियनों ने आरबीआई से मौजूदा सीमा बढ़ाने को कहा है और उम्मीद है कि उनके अनुरोधों को जल्द पूरा यिा जाएगा। सिंह के अनुसार, निवेशकों में वीआरआर विकल्प की लोकप्रियता बढ़ी है, क्योंकि इससे एफपीआई को अन्य विदेशी निवेशक तलाशे बगैर सौदे में भागीदारी की अनुमति होती है, और चूंकि रेसिडुअल मैच्युरिटी क्लॉज वीआरआर श्रेणी के तहत सीमा के लिए इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होगी।