विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस वित्त वर्ष अब तक सेकंडरी बाजार से 46,000 करोड़ रुपये के शेयरों की बिकवाली की है, जो वित्त वर्ष 2009 के बाद से सर्वाधिक है। हालांकि, उन्होंने समान अवधि में प्राथमिक बाजार में 53,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है, जिससे संकेत मिलता है कि निवेशकों ने अपना ज्यादा नई पूंजी लगाए बगैर पुन: निवेशित किया है।
विदेशी पूंजी का बड़ा हिस्सा आईपीओ में लगा है। प्राइम डेटाबेस के आंकड़े से पता चलता है कि कुल एफपीआई निवेश में, एंकर निवेशकों का योगदान 24,477 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 6 गुना है और 2019 में निवेशित राशि के मुकाबले 9 गुना से ज्यादा है।
वन 97 कम्युनिकेशंस, जोमैटो और एफएसएन ईकॉमर्स वेंचर्स को एंकर निवेशकों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली। भुगतान दिग्गज पेटीएम के आईपीओ में एफपीआई ने 7,185 करोड़ रुपये, फूड डिलिवरी फर्म जोमैटो की पेशकश में 2,759 करोड़ रुपये और ऑनलाइन ब्यूटी रिटेलर नायिका में 1,570 करोड़ रुपये का निवेश किया।
भारी तेजी और महंगे मूल्यांकन ने बड़ी तादाद में विदेशी ब्रोकरों को बाद में भारतीय इक्विटी पर सतर्क रुख अपनाने के लिए बाध्य किया है। पिछले सप्ताह अपनी एक रिपोर्ट में विदेशी ब्रोकरेज फर्म मॉर्गन स्टैनली ने कहा था कि जहां भारत ने संभावित नए लाभ चक्र पर आधारित दीर्घावधि तेजी के बाजार में जगह बरकरार रखी है, वहीं उभरते बाजारों के मुकाबले प्रदर्शन मजबूत पिछले प्रदर्शन और संबद्घ मूल्यांकन को देखते हुए थम सकता है।
ब्रोकरेज का मानना है, ‘भारतीय इक्विटी बाजारों को कई तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है, जिनमें अमेरिकी दर चक्र, बढ़ती तेल कीमतें, प्रमुख राज्यों में चुनाव, संभावित कोविड तीसरी लहर, घरेलू ब्याज दरों में तेजी का रुझान, महंगे मूल्यांकन और मजबूत पिछला प्रदर्शन शामिल हैं, जबकि भारत को अपने जीईएम कंट्री पोर्टफोलियो में डाउनग्रेड कर इक्वल-वेट किया है।’
मॉर्गन स्टैनली का मानना है कि अगले कुछ वर्षों के दौरान आय में 27 प्रतिशत की वृद्घि होगी और सेंसेक्स दिसंबर 2022 तक 16 प्रतिशत बढ़कर 70,000 तक पहुंच जाएगा। ब्रोकरेज ने अपने वित्त वर्ष 2022 के आय अनुमान 7 प्रतिशत तक घटा दिए हैं, लेकिन वित्त वर्ष 2023 के आंकड़ों में कोई फेरबदल नहीं किया है। सूचकांक प्रतिफल आय वृद्घि पर आधारित रहने की संभावना है, क्योंकि बाजार पिछले प्रतिफल पर ध्यान देता है।
सीएलएसए के मुख्य इक्विटी रणनीतिकार अलेक्जेंडर रेडमैन ने 12 नवंबर की अपनी एक रिपोर्ट ‘इंडियन इक्विटीज: ऑन बोरोड टाइम’ में कहा है, ‘हम भारतीय इक्विटी में 20 महीने की तेजी समाप्त होने का अनुमान जताया है। ऊर्जा और उत्पादन लागत दबाव से मार्जिन प्रभावित होने की आशंका बढ़ी है। वहीं, महंगे मूल्यांकन, आय पर दबाव की ज्यादा आशंा, और खरीदारों के संभावित अभाव से भारत में मुनाफावसूली के लिए हमारे नजरिये को बढ़ावा मिला है।’
जापानी फर्म नोमुरा ने प्रतिकूल रिस्क-रिवार्ड को ध्यान में रखते हुए भारतीय इक्विटी की रेटिंग ‘ओवरवेट’ से घटाकर ‘न्यूट्रल’ कर दी है। हालांकि यूबीएस ने ओवरवेट नजरिया बरकरार रखा है, लेकिन उसने कहा है कि भारत एशियाई देशों के मुकाबले अत्यधिक महंगे मूल्यांकन की वजह से आकर्षक नहीं रह गया था। जेफरीज में इक्विटी रणनीति के वैश्विक प्रमुख क्रिस्टोफर वुड ने कहा है कि भारत पर उसकी ओवरवेट पोजीशन कमजोर हो गई है।
बीएसई का सेंसेक्स इस वित्त वर्ष में करीब 18 प्रतिशत चढ़ा है, लेकिन 15 नवंबर से उसमें करीब 4 प्रतिशत की गिरावट आई है।
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज में मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा, ‘नवंबर के पहले पखवाड़े में एफपीआई बैंकिंग और आईटी जैसे अच्छे प्रदर्शन वाले क्षेत्रों में भी बिकवाल बने रहे। इस रुझान से संकेत मिलता है कि एफपीआई हरेक तेजी पर बिकवाल बन सकते हैं, क्योंकि कई विदेशी ब्रोकरों ने महंगे मूल्यांकन की स्थिति में भारत पर ‘बिकवाली’ की सलाह दी है।’
