कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बाद भारतीय इक्विटी बाजारों में हुई भारी बिकवाली आश्चर्यजनक नहीं होनी चाहिए। ऐतिहासिक तौर पर भारत में शेयर मूल्यांकन और ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतों के बीच नकारात्मक संबंध है। ब्रेंट क्रूड तेल भारतीय कच्चे तेल के लिए मुख्य मानक है।
वर्ष 2011 और 2014 के बीच, कच्चे तेल ने लंबी अवधि तक 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर कारोबार किया, जबकि उस अवधि के दौरान सेंसेक्स 18 गुना की पिछली पीई पर था, जो मौजूदा 23 गुना के सूचकांक पीई के मुकाबले करीब 22 गुना कम है।
सेंसेक्स का पिछला पीई मल्टीपल चालू कैलेंडर वर्ष की शुरुआत के बाद से 17.2 प्रतिशत नीचे आया है जबकि कच्चे तेल की कीमतें इस साल अब तक 68 प्रतिशत चढ़ी हैं। बेंचमार्क सूचकांक सोमवार को 23.1 गुना के ट्रेलिंग पीई मल्टीपल पर बंद हुआ, जो दिसंबर 2021 के अंत में 27.9 गुना से कम है।
हालांकि सेंसेक्स पीई मल्टीपल मार्च 2021 के अंत के 34.4 गुना के रिकॉर्ड ऊंचे स्तरों से करीब एक-तिहाई नीचे है। समान अवधि में ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतें 77.8 डॉलर से चढ़कर सोमवार को 130.73 डॉलर प्रति बैरल पर पहुुंच गईं।
हालांकि सूचकांक में गिरावट साल में अब तक 9.3 प्रतिशत पर काफी कम है। यह अक्टूबर-दिसंबर 2021 की अवधि के दौरान कॉरपोरेट आय में आई तेजी की वजह से है। सूचकांक की संबद्घ ईपीएस वित्त वर्ष 2022 की तीसरी में में करीब 10 प्रतिशत तक बढ़ गई थी, जो वित्त वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही के पिछले 12 महीनों की तुलना में है।
हालांकि कई विश्लेषक दलाल पथ पर शेयर मूल्यांकन में और कमजोरी का अनुमान जता रहे हैं और यदि कच्चे तेल की कीमतें लंबे समय तक 110 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बनी रहती हैं तो सेंसेक्स का मूल्यांकन नीचे आ सकता है।
जेएम फाइनैंशियल इक्विटी के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘रूस-यूक्रेन टकराव की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से कॉरपोरेट सेक्टर के लिए कच्चे माल और ऊर्जा की लागत बढ़ी है। इसकी वजह से आगामी तिमाहियों में मार्जिन पर दबाव पड़ेगा और कॉरपोरेट मुनाफा घटेगा।’
उन्हें ऊंची ऊर्जा और जिंस कीमतों की वजह से वित्त वर्ष 2022 और वित्त वर्ष 2023 में कॉरपोरेअ आय में बड़ी कमी आने की आशंका है।
इससे भारत में, खासकर एफपीआई द्वारा बिकवाली को बढ़ावा मिला है। इसका पिछला उदाहरण रहा है।
