नई पीढ़ी की कंपनियों की बड़ी पेशकश के कारण आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिए कंपनियों की तरफ से जुटाई नई पूंजी इस साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई। अपनी पेशकश के जरिए भारतीय कंपनी जगत ने 39,524 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड नई पूंजी जुटाई। इससे पहले साल 2007 में कंपनियों ने 32,102 करोड़ रुपये की नई पूंजी जुटाई थी। इस साल सबसे ज्यादा नई पूंजी जुटाने वाली कंपनियों में फूड डिलिवरी फर्म जोमैटो (9,000 करोड़ रुपये), पेटीएम की मूल कंपनी वन 97 कम्युनिकेशंस और पीबी फिनटेक (3,750 करोड़ रुपये) शामिल हैं।
आईपीओ के जरिए जुटाई गई कुल रकम 1.03 करोड़ रुपये में प्रतिशत के लिहाज से नई पूंजी की हिस्सेदारी 38 फीसदी रही है। यह पिछले पांच साल मेंं जुटाई गई नई पूंजी के प्रतिशत से ज्यादा है।
कई साल ऐसे रहे हैं जब जुटाई गई नई पूंजी की हिस्सेदारी किसी खास वर्ष में कुल जुटाई गई रकम का 90 फीसदी से ज्यादा रहा है। 2001 से 2008 के बीच आईपीओ के जरिए जुटाई गई रकम का 80 फीसदी से ज्यादा नई पूंजी के रूप मेंं था।
किसी आईपीओ में पूरी तरह से नई पूंजी जुटाई जा सकती है या फिर यह पूरी तरह से ओएफएस हो सकता है या फिर दोनों का मिश्रण। जो कंपनी नई पूंजी जुटाती है वह उसका इस्तेमाल कई काम में कर सकती है। वह मौजूदा कर्ज चुकाने, अधिग्रहण करने या कारोबार का विस्तार करने में उसका इस्तेमाल कर सकती है।
साल 2013 से आईपीओ में द्वितीयक बिक्री का वर्चस्व रहा है और प्राइवेट इक्विटी निवेशक इसका इस्तेमाल अपनी हिस्सेदारी बेचने में करते रहे हैं। आर्थिक मंदी ने कंपनियों को ज्यादा पूंजी वाली परियोजनाओं से दूरी बनाने को प्रोत्साहित किया है और नई पूंजी की जरूरत को न्यूनतम करने में भी।
जोमैटो के आईपीओ में 9,000 करोड़ रुपये की नई पूंजी जुटाई गई और उसमें 375 करोड़ रुपये का ओएफएस था। पेटीएम के आईपीओ में 8,300 करोड़ रुपये की नई पूंजी और 10,000 करोड़ रुपये का ओएफएस था। जोमैटो की नई पूंजी देसी आईपीओ बाजार की तीसरी सबसे बड़ी पूंजी रही। इससे पहले नई पूंजी के तौर पर सबसे ज्यादा रकम आईपीओ के जरिये साल 2008 में रिलायंस पावर ने 10,123 करोड़ रुपये जुटाए थे, जिसके बाद डीएलएफ का स्थान है, जिसने एक साल पहले 9,188 करोड़ रुपये जुटाए थे।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक व प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा, प्राथमिक बाजार की भूमिका विनिर्माण व औद्योगिक गतिविधियों में शामिल कंपनियों को पूंजी जुटाने में सक्षम बनाने की है। लेकिन यह सिद्धांत बदल गया है। आईपीओ का इस्तेमाल आज निकासी का रास्ता देने और प्राइवेट इक्विटी व वेंचर कैपिटल फंडों के लिए वैल्यू उपलब्ध कराने के लिए हो रहा है। साथ ही महंगे मूल्यांकन पर। यह अर्थव्यवस्था के लिए सही संकेत नहीं है, खास तौर से जब कई विनिर्माण कंपनियां हाल के वर्षों में बाजार से पूंजी जुटाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
पिछले दशक में विनिर्माण क्षेत्र की कंपनियों का आईपीओ बाजार में वर्चस्व था और उन्होंने नए संयंत्र लगाने या क्षमता विस्तार के लिए बाजार से रकम जुटाई। पिछले कुछ वर्षों में आईपीओ में बीएफएसआई की कंपनियों का वर्चस्व रहा है। पिछले साल में नई पीढ़ी की तकनीकी कंपनियां रकम जुटाने में अगली पंक्ति में आ गई।
