वित्त मंत्रालय ने छोटे कारोबारी निपटान चक्र (टी प्लस 1) के मुद्दे पर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एïवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ बातचीत की है। इस बारे में जानकारी रखने वाले दो लोगों ने बताया कि वित्त मंत्रालय ने सेबी ने पूछा है कि क्या शेयर बाजार टी प्लस 1 निपटान चक्र के लिए तैयार हैं और क्या इससे बिकवाली होगी और विदेशी निवेशक अपना निवेश घटाएंगे।
बाजार नियामक के पिछले सप्ताह के इस फैसले पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने चिंता जताई है, जिसके बाद वित्त मंत्रालय हरकत में आया है। सूत्रों ने कहा कि एफपीआई के लॉबी समूहों ने सेबी और वित्त मंत्रालय को पत्र लिखे हैं। इसमें उन्होंने मौजूदा टी प्लस 2 की जगह टी प्लस 1 लागू करने पर चिंता जताई हैं। टी प्लस 2 में निपटान कोराबारी दिवस के दो दिन बाद होता है।
इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने बाजार नियामक से 100 फीसदी पीक मार्जिन के उन नियमों के असर पर भी चर्चा की है, जो इस महीने से लागू हो गए हैं। मंत्रालय ने कारोबारी मात्रा पर असर के संबंध में बातचीत की। साथ ही यह भी पूछा कि क्या किसी बदलाव से 100 फीसदी अग्रिम मार्जिन की जरूरत होगी।
ऊपर जिन लोगों का हवाला दिया गया है, उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह मंत्रालय के अधिकारियों ने बाजार नियामक द्वारा हाल में लागू किए गए नियमों का जायजा लिया और इनके असर पर व्यापक विचार-विमर्श किया है। टी प्लस 1 के बारे में नियामक ने कहा है कि उसके पास इस कदम के खिलाफ बहुत सी शिकायतें आई हैं और वे इन चिंताओं पर विचार कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि सेबी ने मंत्रालय को भरोसा दिया है कि पीक मार्जिन नियम और सख्ती के अन्य उपाय जोखिम कम करने के लिए उठाए गए हैं। ऐसा भी बताया जा रहा है कि नियामक ने ब्रोकरों के 20-22 के डिफॉल्ट की रिपोर्ट भी दी है। इस बारे में सप्ताहांत में सेबी को भेजे गए पत्र का कोई जवाब नहीं मिला।
सेबी ने 7 सितंबर को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें 1 जनवरी 2022 से घरेलू बाजारों में वैकल्पिक टी प्लस 1 निपटान चक्र लागू करने की बात कही गई है। नियामक ने सभी स्टॉक एक्सचेंजों को यह फैसला लेने का निर्देश दिया है कि वे अपने किन्हीं सूचीबद्ध शेयरों के लिए छोटा निपटान चक्र अपनाना चाहते हैं या नहीं। छोटे निपटान चक्र को घरेलू निवेशकों के पक्ष में देखा जा रहा है क्योंकि इससे पूंजी जल्द मुक्त हो जाएगी, कुशलता बढ़ेगी और उतार-चढ़ाव एवं मार्जिन जोखिम घटेगा। हालांकि एफपीआई इस कदम के खिलाफ हैं।