विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारत समेत लगभग सभी उभरते बाजारों में बिकवाली पर जोर दिया है और 2022 में उन्होंने अब तक 7 अरब डॉलर मूल्य से ज्यादा के इक्विटी शेयर बेचे हैं और अक्टूबर 2021 से 11 अरब डॉलर की बिक्री की है। विश्लेषकों का कहना है कि एफआईआई अब बाजार से दूर बने रह सकते हैं और 2022 के बाद के हिस्से में फिर से वापसी कर सकते हैं, जब बाजार को कम समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि फिलहाल बाजार में अनिश्चितता वैश्विक केंद्रीय बैंकों, खासकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के संभावित नीतिगत कदमों की वजह से अधिक देखी जा रहा है जिसने अमेरिका में तीन दशक की सर्वाधिक उपभोक्ता कीमत मुद्रास्फीति की पृष्भूमि में दर वृद्घि पर जोर दिया है। उनका मानना है कि वे बॉन्ड प्रतिफल में तेजी दर्ज कर सकते हैं और इक्विटी का आकर्षण कमजोर पड़ सकता है।
सेंट्रम वेल्थ में इक्विटी एडवायजरी के प्रमुख देवांग मेहता का कहना है, ‘एफआईआई ने अक्टूबर 2021 से इक्विटी में बिकवाली की है। उनके लिए चिंताजनक बात यह है कि सभी विकसित देशों में जीरो ब्याज दरों की लंबी अवधि समाप्त होने जा रही है। अमेरिकी फेड द्वारा बैलेंस शीट पर दबाव के संदर्भ में, या तो मात्रा या समय-सीमा से संबंधित समस्या आ सकती है। ऊंची तेल कीमतें हमारी अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का अन्य कारण हैं। कच्चे तेल में तेजी ब्याज दरों के लिए नकारात्मक है, इसलिए इक्विटी मूल्यांकन को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं।’
बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी-50 में अक्टूबर 2021 से करीब 3 प्रतिशत की गिरावट आई है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि अक्टूबर में एफआईआई ने बिकवाली करनी शुरू की थी। रियल्टी, एफएमसीजी और हेल्थकेयर सूचकांकों ने सेक्टर सूचकांकों में कमजोर प्रदर्शन किया है और इनमें इस अवधि के दौरान 7 से 11 प्रतिशत के बीच कमजोरी आई है। दूसरी तरफ, घरेलू संसथागत निवेशकों और म्युचुअल फंडों ने इस अवसर का खरीदारी के तौर पर इस्तेमाल किया। आंकड़ों से पता चलता है कि जहां एफआईआई ने अक्टूबर 2021 से करीब 10.7 अरब डॉलर की इक्विटी बिकवाली की, वहीं एमएफ और डीआईआई ने करीब 68,000 करोड़ रुपये और 94,000 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।
