रुपये व बॉन्ड में गिरावट दर्ज की गई जब फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया कि महंगाई की रफ्तार थामने के लिए ब्याज दरों में तत्काल बढ़ोतरी हो सकती है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचने का भी दबाव पड़ा। अमेरिकी केंद्रीय बैंक के प्रमुख जीरोम पॉवेल ने कहा कि फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) का मानना है कि मार्च की बैठक में फेडरल रिजर्व ब्याज दरें बढ़ाएगा, यह मानते हुए कि ऐसा करने की स्थितियां अनुकूल हैं। एफओएसी का अनुमान बताता है कि साल 2022 में तीन बार ब्याज दरें बढ़ेंगी, जिसके बारे में पहले एक बार बढ़ाने का अनुमान था। बॉन्ड खरीद हालांकि जारी रहेगी, पर इसकी रफ्तार में कमी आएगी।
इसके बाद भारत समेत वैश्विक बाजारों में गिरावट आई। आरबीआई के हस्तक्षेप के बीच डॉलर के मुकाबले रुपया 75.07 पर बंद हुआ। यह गिरकर 75.25 तक चला गया था। 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 6.75 फीसदी पर पहुंच गया, जो एक दिन पहले 6.66 फीसदी पर बंद हुआ था। कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचने से भारत का राजकोषीय घाटा 1 फरवरी की बजट घोषणा से पहले बढऩे की आशंका है। बढ़ता घाटा और बढ़ती महंगाई आरबीआई को अपनी ब्याज दरें जल्द बढ़ाने को बाध्य करेगा। अनुमान है कि अगर रिवर्स रीपो अभी बढ़ाया जाता है तो रीपो दर कैलेंडर वर्ष की दूसरी छमाही में बढ़ेगा। हालांकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के आक्रामक कदम से आरबीआई तत्काल दरोंं का चक्र बढ़ाने को बाध्य हो सकता है ताकि ब्याज दरों में अंतर बनाए रख सके और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत में निवेशित बना रहे। ऐसा विश्लेषकों का कहना है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, आरबीआई को नकदी में बदलाव को लेकर फैसला लेना पड़ेगा और फेड के लंबी अवधि के दिशानिर्देश को ध्यान में रखना पड़ सकता है।
अमेरिका में महंगाई की सात फीसदी दर 1982 के बाद का सर्वोच्च स्तर है और मुख्य महंगाई 5.5 फीसदी फरवरी 1991 के बाद सबसे ज्यादा है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने एक नोट में कहा है, फेड फंड की दर साल 2022 के आखिर में 1.25 फीसदी पर पहुंचेगी, जो अभी 0.25 फीसदी है। अमेरिकी फेड का इरादा महंगाई को 2 फीसदी रखना है।
भारत में खदरा महंगाई दिसंबर में 5.59 फीसदी थी, जो 6 फीसदी के सहने योग्य सीमा के भीतर है लेकिन यह असहज हो सकता है अगर कच्चे तेल की कीमतें यूक्रेन संकट से तेजी से बढऩी शुरू होती है। सबनवीस ने कहा, हमारे यहां महंगाई ज्यादा है और अमेरिका की तरह बढ़त को लेकर अनिश्चितता भी। बाजार ज्यादा प्रतिफल की मांग कर रहा है और सवाल यह है कि आरबीआई मौजूदा रुख पर कब तक कायम रहता है।
