डॉलर में तेजी से सितंबर में कुछ उभरते बाजारों (ईएम) का उत्साह कुछ हद तक नरम पड़ा है। प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के खिलाफ डॉलर के प्रदर्शन का मापक डॉलर सूचकांक अमेरिका में प्रोत्साहन उपायों को लेकर अनिश्चिता और दुनियाभर में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच अपने दो महीने के निचले स्तर के आसपास बना हुआ है।
जहां घरेलू इक्विटी बाजारों ने पिछले दो कारोबारी सत्रों में अच्छी वापसी दर्ज की है, वहीं विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर में तेजी चिंता का कारण हो सकता है, क्योंकि इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) द्वारा बिकवाली बढ़ सकती है। पिछले 6 कारोबारी सत्रों में, वैश्विक निवेशकों द्वारा बिकवाली 1.35 अरब डॉलर के आंकड़े पर पहुंच गई। एफपीआई के मासिक निवेश का आंकड़ा चार महीनों में पहली बार सितंबर में नकारात्मक रहने का अनुमान है, बशर्ते कि शेष दो कारोबारी सत्रों में प्रवाह में बड़ा बदलाव नहीं आता।
विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर में तेजी इस बात का संकेत है कि निवेशक जोखिम से बचने पर जोर दे रहे हैं।
एवेंडस कैपिटल अल्टरनेट स्ट्रे्रटेजीज के मुख्य कार्याधिकारी एंड्रयू हॉलैंड ने कहा, ‘भारत उन कुछ उभरते बाजारों में से एक था जिन्होंने पिछले महीनों में शानदार विदेशी निवेशक प्रवाह आकर्षित किया। लेकिन दुनियाभर में कोविड-19 के तेजी से बढ़ते मामलों, खासकर यूरोप में संक्रमण के दूसरे चरण की वजह से आर्थिक सुधार में कमजोरी को बढ़ावा मिला है। इसके अलावा, प्रोत्साहन पैकेज के संदर्भ में अमेरिका में गतिरोध से भी सितंबर में विदेशी निवेशकों द्वारा जोखिम-आधारित बिकवाली को बढ़ावा मिला। डॉलर सुरक्षित विकल्प बन गया। हम अमेरिकी चुनाव की वजह से जोखिम की धारणा बरकरार रहने से प्रवाह में ज्यादा तेजी नहीं देख सकते।’
विश्लेषकों का कहना है कि ईएम बाजार की इक्विटी और मुद्राएं तब तक कमजोर बनी रह सकती हैं, जब तक कोविड-19 के टीके के संबंध में सकारात्मक खबरें और अच्छे आंकड़े नहीं आते। अमेरिकी सरकार द्वारा राहत पैकेज से बाजारों को मदद मिल सकती है और इससे कुछ पूंजी प्रवाह भारत की ओर मुड़ सकता है। निवेशकों की नजर इस पर बनी रहेगी कि सितंबर तिमाही के परिणाम कैसे रहते हैं, शुरुआती संकेत हैं कि निर्माण कंपनियों ने अच्छा प्रदर्शन दर्ज करना शुरू किया है। सेवा कंपनियां अच्छी हालत में हैं। इससे निवेशकों में कुछ भरोसा पैदा हो सकता है। भारत सरकार द्वारा प्रोत्साहन पैकेज से भी निवेशक धारणा मजबूत हो सकती है। सरकार ने राजकोषीय घाटे को खतरे में डाले बगैर हरसंभव प्रयास करने पर जोर दिया है। डाल्टन कैपिटल इंडिया के निदेशक यू आर भट ने कहा, ‘पिछली प्रोत्साहन राहत घोषणा राजकोषीय सुधार से संबंधित नहीं थी, यह काफी हद तक बैंकों के जरिये उधारी पर आधारित थी।’
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि सभी उभरते बाजारों ने सितंबर में पूंजी निकासी दर्ज की। इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, ब्राजील और ताईवान जैसे प्रतिस्पर्धी ईएम ने भारत के मुकाबले ज्यादा बिकवाली दर्ज की।
