शेयर बाजार की अनिश्चितताओं ने इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम यानी ईएलएसएस को पसीने छुड़ा दिए हैं। इसका असर उनकी लाभांश घोषणाओं पर पड़ा है।
वित्त वर्ष 2008-09 में 36 ओपन एंडेड स्कीमों में से सिर्फ 7 ही लाभांश की घोषणा कर पाई हैं। कुल 12 क्लोज एडेंड ईएलएसएस में महज एक ने ही लाभांश का दम दिखाया है।
ईएलएसएस अपनी धनराशि में से 80 प्रतिशत या इससे अधिक इक्विटी में लगाती हैं और बाकी रकम डेट या मनी मार्केट की योजनाओं में डालती हैं। निवेशक इन योजनाओं में निवेश इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें इस निवेश पर आयकर की धारा 80सी के तहत छूट मिलती है।
जिन ने लाभांश की घोषणा की है, उनमें बिड़ला सन लाइफ टैक्स रिलीफ और एचडीएफसी टैक्स सेवर ने सबसे अधिक 50-50 प्रतिशत लाभांश की घोषणा की है। फ्रैंकलिन टेम्पलटन टैक्स शील्ड, टॉरस टैक्स शील्ड और एचडीएफसी लॉन्ग टर्म एडवांटेज ने 30 से 35 प्रतिशत लाभांश का ऐलान किया है।
म्युचुअल फंड रेटिंग एजेंसी वैल्यू रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार क्लोज एडेंड श्रेणी में यूटीआई मेप्स ही एकमात्र योजना है जिसने 15 प्रतिशत का लाभांश घोषित किया है। उद्योग के जानकारों का कहना है कि ध्वस्त बाजार के ऐसे मौके पर तो इन फंडों को लाभांश घोषित करना चाहिए।
उदाहरण के लिए बिड़ला सनलाइफ टैक्स रिलीफ 96 के लगातार रिटर्न पिछले एक साल में (2 अप्रैल, 2009 तक ) 41.17 प्रतिशत तक गिर गए हैं। यहां तक कि इसके तीन साल के रिटर्न 6.33 प्रतिशत गिरे हुए हैं। इसी तरह एचडीएफसी टैक्स सेवर के भी ट्रेलिंग रिटर्न भी 31.03 प्रतिशत कम हुए हैं।
फिर भी वे अच्छा लाभांश दे पाने में सफल रहे हैं तो इसलिए कि वे वाकई पुराने फंड हैं। एक प्रमुख वितरक ने कहा कि इन फंडों ने पिछले कई सालों में अच्छा-खासा लाभ कमाया है। इस कारण इतने खराब बाजार में भी वे बढ़िया लाभांश दे पा रहे हैं।
लाभांश दे पाने में समर्थ ये सभी फंड 1996 से 200 के बीच शुरू किए गए थे। मतलब कि इतने वर्षों में इन फडों ने मोटा मुनाफा बटोर रखा है। बिड़ला सनलाइफ टैक्स रिलीफ 96 का 1996 में शुरू होने बाद से अब तक का कुल रिटर्न 29.18 प्रतिशत रहा है जो अच्छा है। इसी तरह आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल टैक्स प्लान ने 1999 में शुरू होने बाद से अब तक कुल 21.15 प्रतिशत रिटर्न दिया है।
हालांकि इस बात को लेकर राय बंटी हुई है कि क्या लाभांश घोषित किया जाना चाहिए। कुछ का मानना है कि लाभांश देने से काफी हद तक उस योजना की एनएवी कम हो जाती है, ऐसे में फंडों को लाभांश नहीं देना चाहिए था। कारण कि अभी बाजार काफी सस्ता है और लाभांश देने के बजाय फंड हाउसों को इस नकदी का इस्तेमाल शेयर खरीदने में करना चाहिए था।
एक जानकार ने कहा कि उभरते बाजार में लाभांश चुकाना समझदारी भरा कदम है क्योंकि तब आप मुनाफे में से दे रहे होते हैं। लेकिन गिरते बाजार में अगर इस नकदी का इस्तेमाल शेयर खरीदने में किया जाता है तो ज्यादा ठीक रहता है।
दूसरी यह भी राय है कि ज्यादा धन जुटाने के लिए लाभांश देना अच्छी बात है क्योंकि इससे यह संदेश जाता है कि बुरे वक्त में भी योजना का प्रदर्शन अच्छा है।
