देश के घरेलू वित्तीय संस्थानों (डीआईआई) ने पिछले वित्त वर्ष में भारत के शेयर बाजारों में 60,040 करोड़ रुपए का शुध्द निवेश किया ।
इससे शेयर बाजारों में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 11 फीसदी हो गई। बीती तिमाही के लिए 1660 कंपनियों द्वारा दाखिल शेयरहोल्डिंग पैटर्न के अनुसार भारतीय बाजारों में घरेलू संस्थानों का बाजार हिस्सा मार्च 2009 में बढ़कर 10.83 प्रतिशत हो गया है जबकि मार्च 2008 तक यह 9.66 प्रतिशत था।
घरेलू संस्थागत निवेशकों में बीमा कंपनियां, बैंक, वित्तीय संस्थान और म्युचुअल फंड शामिल हैं। आज ये बाजार हिस्सेदारी पर कब्जे के मामले में एफआईआई को भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। बीएसई में सबसे ज्यादा खरीदे-बेचे जाने वाले शेयरों के 12 फीसदी हिस्से पर आज एफआईआई का कब्जा है।
पिछले वित्त वर्ष में एफआईआई ने भारतीय शेयर बाजारों से 73,231 करोड़ रुपये निकाल लिए थे। इसी वजह से इनकी बाजार हिस्सेदारी मार्च 2008 के 14.81 फीसदी के स्तर से गिरकर 12.46 फीसदी रह गई। बीएसई में मौजूद कुल पूंजी का 81 फीसदी हिस्सा इन्हीं 1,660 कंपनियों के शेयरों से आता है।
इस दौरान सेंसेक्स में भी 38 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई। 31 मार्च, 2008 को बाजार 15,644.44 के स्तर पर था, जबकि इस साल 31 मार्च को यह 9,708.5 के स्तर पर बंद हुआ। एक तरफ तो विदेशी संस्थागत निवेशकों ने वित्त वर्ष 2007-08 में 13 अरब डॉलर का निवेश किया था।
लेकिन पिछले वित्त वर्ष में उन्होंने करीब 12 अरब डॉलर मूल्य के भारतीय शेयर बेच डाले। सेंसेक्स और निफ्टी में मौजूद 46 कंपनियों में एफआईआई का मालिकाना हक मार्च 2009 में गिरकर 14.79 रह गया, जबकि मार्च, 2008 और 2007 में यह 16.93 और 18.34 फीसदी के स्तर पर था।
देश के इक्विटी बाजार के करीब 10 फीसदी हिस्से पर डीआईआई का कब्जा है। मार्च, 2007 में इन कंपनियों में डीआईआई का हिस्सा 9.5 फीसदी था, जो अगले साल 11 फीसदी हो गया। मार्च, 2009 में इन कंपनियों के 12.2 फीसदी शेयरों पर इनका कब्जा है।
अब एफआईआई और डीआईआई के बीच का अंतर खत्म होता जा रहा है। सब प्राइम संकट की वजह से एफआईआई भारतीय बाजारों से दूर होते जा रहे हैं।
