प्रायोजकों के लिए मुनाफा संबंधी शर्तों में नरमी लाने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के निर्णय से 30 लाख करोड़ रुपये के म्युचुअल फंड उद्योग में बड़े डिजिटल बदलाव की शुरुआत हो सकती है।
बाजार कारोबारियों का कहना है कि यह कदम टेक्नोलॉजी-आधारित कंपनियों को ऐसी परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां (एएमसी) स्थापित करने के लिए आकर्षित करेगा, जिससे क्वांट फंडों, रोबो एडवायजरी और स्मार्ट एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) जैसे लोकप्रिय विषयों के जरिये निवेश परिदृश्य में बदलाव लाया जा सकेगा।
बुधवार को सेबी के बोर्ड ने कहा कि तीन वर्षीय मुनाफा रिकॉर्ड के बगैर कंपनियां म्युचुअल फंड प्रायोजक के तौर पर कार्य कर सकती हैं। यह कदम उन विभिन्न स्टार्टअप के समर्थन के बाद उठाया गया, जो मुनाफे का ट्रैक रिकॉर्ड रखना जरूरी नहीं समझते हैं।
मौजूदा समय में, घरेलू एमएफ उद्योग में 45 कंपनियां हैं और इनकी संयुक्त प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) करीब 30 लाख करोड़ रुपये की हैं। हालांकि करीब 83 प्रतिशत परिसंपत्तियां प्रमुख 10 कंपनियों द्वारा प्रबंधित हैं, जबकि निचले पायदान की 25 कंपनियों की 2.5 प्रतिशत से भी कम की भागीदारी है और उनका संयुक्त परिसंपत्ति आकार 68,000 करोड़ रुपये है। एमएफ की इच्छुक कंपनियों के पास छोटी एएमसी को खरीदने या सेबी के साथ नए लाइसेंस के लिए आवेदन करने का विकल्प है। विश्लेषकों का कहना है कि इन दोनों के बीच नियामकीय ढांचा ज्यादा अलग नहीं है, जिसे देखते हुए और ज्यादा कंपनियां नए लाइसेंस के विकल्प को अपना सकती हैं।
डिस्काउंट-ब्रोकिंग फर्म जीरोधा के मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत ने कहा, ‘सेबी की पहल से वीसी-पोषित ऐसी कंपनियां लाभान्वित होंगी, जो अभी तक मुनाफे की स्थिति में नहीं हैं। अधिग्रहण के लिए अब छोटी कंपनियों की संख्या ज्यादा नहीं रह गई है। नए लाइसेंस हासिल करने में लगने वाला समय किसी मौजूदा कंपनी के अधिग्रहण में लगने वाले समय की तुलना में कम है।’ जीरोधा ने म्युचुअल फंड लाइसेंस के लिए आवेदन किया है और मौजूदा समय में वह नियामकीय मंजूरी का इंतजार कर रही है।
कामत ने कहा, ‘एमएफ स्पेस में प्रवेश कर रहीं नई कंपनियों को प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देने वाला नजरिया अपनाना होगा। इसके अलावा, वे ज्यादा ईटीएफ-केंद्रित भी होंगी।’
ईटीएफ-केंद्रित दृष्टिकोण के तहत, परिसंपत्ति प्रबंधक किसी फंड प्रबंधक की जरूरत के बगैर पूर्व-निर्धारित मानकों पर आधारित शेयरों का चयन करता है।
वैल्यू रिसर्च के मुख्य कार्याधिकारी धीरेंद्र कुमार ने कहा, ‘फिनटेक एएमसी का आइडिया पूरी तरह अलग होगा। यह कम लागत और ज्यादा पहुंच से जुड़ा होगा। इसके अलावा, ज्यादा कंपनियां पैसिव निवेश क्षेत्र में परिचालन करेंगी।’ उन्होंने कहा कि आगामी वर्षों में हम कुल एएमसी में इजाफा देखेंगे, क्योंकि ज्यादा कंपनियां विस्तार का विकल्प अपनाएंगी।
पीडब्ल्यूसी में पार्टनर फिनटेक लीडर विवेक बेलगावी ने कहा, ‘फिनटेक एएमसी जोखिम पूंजी द्वारा समर्थित हैं और इसलिए इनमें पारंपरिक कंपनियों के मुकाबले ज्यादा बड़े और मुश्किल दांव लगाने की अनुमति देती हैं। इसके अलावा, तथ्य यह है कि इन्हें पारंपरिक रूप से मदद नहीं मिलती है और वे शुरुआत से अपने बिजनेस मॉडल तैयार कर सकते हैं।’
पेटीएम और फोनपे जैसी फिनटेक कंपनियों ने सेबी के नए दिशा-निर्देशों के बारे में कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है।
एमएफ का एयूएम 2025 तक 50 लाख करोड़ रुपये होगा
क्रिसिल ने कहा है कि म्युचुअल फंड उद्योग की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां साल 2025 तक 50 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच जाएगी। पिछले महीने के आखिर में उद्योग का एयूएम 30 लाख करोड़ रुपये था। क्रिसिल के एमडी व सीईओ आशु सुयश ने कहा, हमें उम्मीद है कि पांच साल में यानी 2025 तक उद्योग का एयूएम दो अंकों में बढ़त जारी रखेगा और 50 लाख करोड़ रुपये के पार चला जाएगा। वैश्विक समकक्षों की तरह ही बढ़त में इक्विटी फंड अपना योगदान जारी रखेगा और उसकी हिस्सेदारी 42 फीसदी से बढ़कर 47 फीसदी हो जाएगी। इस बढ़त में योगदान करने वाले कारकों में भारत का अनुकूल जनसंख्या वितरण, बचत के वित्तीयकरण में हो रही बढ़ोतरी और प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी शामिल है। म्युचुअल फंड उद्योग ने साल 2014 में पहली बार 10 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार किया था। अगला 10 लाख करोड़ रुपये इसके बाद के तीन साल में हासिल हुआ। बीएस