भारत सरकार ने साइप्रस के विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को कैटेगरी-1 लाइसेंस हासिल करने के लिए पात्र घोषित किया है। यह एक ऐसा कदम है जिससे साइप्रस से निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।
इस छूट के लिए मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात के बाद साइप्रस ऐसा तीसरा देश है जो फाइनैंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का हिस्सा नहीं है। इससे यूरोपीय संघ से कई और बड़े फंडों को इस द्वीप देश के जरिये अपना निवेश यहां लाने में मदद मिल सकती है।
कैटेगरी-1 का हिस्सा होने का मतलब है कम अनुपालन झंझट, आसान केवाईसी मानक और दस्तावेजी शर्तें, और कम निवेश सीमाएं। अप्रत्यक्ष स्थानांतरण प्रावधान कैटेगरी-1 एफपीआई के लिए लागू नहीं हैं।
साइप्रस भारत में निवेश कर रहे शीर्ष-20 एफपीआई क्षेत्राधिकारों में शामिल है और उसके 22 पंजीकृत एफपीआई में से 4 कैटेगरी-1 से संबंधित हैं।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवद्र्घन विभाग के आंकड़े से पता चला है कि अप्रैल 2000 और मार्च 2021 के बीच करीब 60,833 करोड़ रुपये के संयुक्त पूंजी प्रवाह के साथ उसका भारत में ज्यादा एफडीआई वाले देशों की सूची में 9वां स्थान है। इन निवेश में से 20 प्रतिशत पिछले तीन वित्त वर्षों में आया।
पाइवट मैनेजमेंट कंसल्टिंग के संस्थापक विराज कुलकर्णी ने कहा, ‘साइप्रस यूरोपीय संघ में स्थित एफपीआई के लिए गुणवत्ता के साथ कोई समझौता किए बिना बेहद आकर्षक हो गया है, खासकर केमेन आईलैंड, माल्ट और यूरोपीय संघ के अन्य महंगे स्थानों के मुकाबले।’
निवेशक संस्था साइप्रस इन्वेस्टमेंट फंड्स एसोसिएशन (सीआईएफए) ने मंगलवार को अपने सदस्यों को लिखा कि वह इस कदम का स्वागत करता है, क्योंकि इस रियायत से केवाईसी शर्तों में नरमी आएगी, व्यापार सीमाएं बढ़ेंगी और ऑफशोर डेरिवेटिव योजनाओं में निवेश की अनुमति मिलेगी।
विश्लेषकों का मानना है कि साइप्रस के एफपीआई के लिए मानकों में नरमी दो देशों के बीच तेजी से बढ़ रही राजनीतिक नजदीकी का परिणाम है, खासकर तुर्की का पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंध।
भारत और साइप्रस ने 2016 में दोहरे कराधान से बचाव के लिए संशोधित समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और इससे भारत को 1 अप्रैल, 2017 तक या उसके बाद साइप्रस स्थित कंपनियों द्वारा किए गए निवेश के स्थानांतरण से कर पूंजीगत लाभ की अनुमति मिली।
ध्यान देने की बात है कि भारत को 2013 में इस देश को काली सूची में डाल दिया था और उसे भारत-साइप्रस कर संधि में सूचना प्रावधानों के विनिमय के तहत जरूरी जानकारी मुहैया कराने में विफल रहने पर गैर-सहयोगी क्षेत्र समझा गया था। वर्ष 2016 में, भारत सरकार ने साइप्रस को काली सूची में डालने वाली अधिसूचना को रद्द कर दिया।
पिछले साल बाजार नियामक सेबी ने कैटेगरी-1 लाइसेंस तलाशने वाले एफपीआई के लिए दिशा-निर्देशों को नरम बनाया था जिससे उन देशों के निवेशकों को ऐसे पंजीकरण (यदि भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए गए हों) के योग्य बनने में मदद मिली, जो एफएटीएफ के सदस्य नहीं हैं।
