बाजार कारोबारियों का मानना है कि वर्ष 2022 से टी+1 निपटान चक्र पर अमल आसान नहीं होगा और इसके लिए एक्सचेंजों, डिपोजिटरियों और क्लियरिंग संस्थानों के बीच समन्वित प्रयासों की जरूरत होगी। समान शेयर के लिए अलग अलग एक्सचेंजों पर दो विभिन्न निपटान चक्रों से तरलता प्रभावित हो सकती है, जिससे कीमत निर्धारण पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
डीएसके लीगल में एसोसिएट पार्टनर गौरव मिस्त्री ने कहा, ‘आप इस निपटान प्रक्रिया को छोटा बनाने की प्रक्रिया पर एक्सचेंजों की सफलता का अंदाजा नहीं लगा सकते, क्योंकि इसके लिए नियोजन, समन्वयन, और विभिन्न तकनीकी तथा प्रक्रियागत पहलुओं के प्रबंधन की जरूरत होगी, जिनसे विभिन्न हितधारक भी जुड़े होंगे। इस प्रक्रिया के क्रियान्वयन में विफलता से बड़ी अनिश्चितता पैदा हो सकती है।’
इसे इस तरह से समझा जा सकता है। यदि आरआईएल का शेयर एनएसई पार टी+1 के तहत कारोबार करता है, लेकिन बीएसई पर टी+2 के तहत, तो घरेलू संस्थागत निवेशक टी+1 निपटान चक्र पर कारोबार कर सकता है। इसके विपरीत, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) टी+2 निपटान की पेशकश करने वाले एक्सचेंज को पसंद कर सकता है। इसका शेयर का भाव प्रभावित हो सकता है और साथ ही आर्बिट्राज अवसर पैदा हो सकता है।
जीरोधा के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत ने कहा, ‘अनिश्चितता इसे लेक है कि यदि एक एक्सचेंज टी+1 का चयन करता है और दूसरा टी+2 का, तो निपटान कैसे होगा? मौजूदा समय में समान शेयर दोनों एक्सचेंजों पर कारोबार करते हैं और इसलिए अंतर-परिचालन की स्थिति है, जिसमें एक एक्सचेंज से खरीदा गया शेयर दूसरे एक्सचेंज पर बेचा जा सकता है।’
एएनएमआई के अध्यक्ष के के महेश्वरी के अनुसार, इसकी ज्यादा संभावना है कि यदि एक एक्सचेंज टी+1 की पेशकश करता है तो दूसरा एक्सचेंज भी इस व्यवस्था पर अमल करेगा।
ऐक्सिस सिक्योरिटीज के मुख्य कार्याधिकारी बी गोपकुमार ने कहा, ‘हम इसे लेकर एक्सचेंजों से जानकारी सामने आने का इंतजार कर रहे हैं कि इस व्यवस्था को कैसे क्रियान्वित किया जाएगा। कई ब्रोकर जल्द पे-इन पर अमल कर रहे हैं और निपटान समान दिन हो सकता है।’
बैंक अवकाश और ऐसे दिन जब क्लियरिंग संस्थान कार्य नहीं करते हों, लेकिन बाजार खुलें, तो इससे भी कुछ चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में क्लियरिंग संस्थानों को दो निपटान (एक पूर्ववर्ती दिन के लिए और एक मौजूदा कामकाजी दिन के लिए) करने के कार्य से दबाव का सामना करना पड़ सकता है जिससे टी+1 समय-सीमा पर अमल करना कठिन हो सकता है।