भारतीय बाजार ने अपने उभरते बाजार (ईएम) प्रतिस्पर्धी चीन के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। यही वजह है कि कई विदेशी फंडों ने अपनी निवेश आवंटन रणनीतियों में बदलाव लाने पर जोर दिया है। एक वर्ष और साल में अब तक (वाईटीडी) आधार पर, एमएससीआई इंडिया सूचकांक 52 प्रतिशत और 27 प्रतिशत चढ़ा है। तुलनात्मक तौर पर, एमएससीआई चाइना सूचकांक एक वर्ष की अवधि के दौरान 7 प्रतिशत और वाईटीडी आधार पर 13 प्रतिशत नीचे आया है।
चीन का कमजोर प्रदर्शन इंटरनेट कंपनियों के खिलाफ वहां की सरकार की सख्ती के बीच दर्ज किया गया है। इनमें से कई कंपनियों का अपने मजबूत आकार की वजह से प्रमुख सूचकांकों पर दबदबा है। चीन के अधिकारियों द्वारा नियामकीय सख्ती की वजह से चीन के बाजार से विदेशी फंडों की निकासी को बढ़ावा मिला है और वे भारत जैसे अन्य क्षेत्र में संभावना तलाश रहे हैं।
चीन और हांगकांग का एमएससीआई ईएम सूचकांक में संयुक्त रूप से करीब 40 प्रतिशत योगदान है, वहीं भारत का करीब 11 प्रतिशत योगदान है। हांगकांग स्थित ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए ने पिछले सप्ताह एक रिपोर्ट में कहा था, ‘चीन में नियामकीय परिवेश में लगातार बदलाव की वजह से दीर्घावधि वृद्घि और मुद्रास्फीति पर उसके प्रभाव का आकलन करना कठिन हो गया है और सकारात्मक बदलाव का नीतिगत लक्ष्य अधिक सख्त कर और कॉरपोरेट सेक्टर के लिए नियामकीय व्यवस्था से जुड़ा हो सकता है।’
नियामकीय अनिश्चितता से निवेशकों का भरोसा डगमगाया है और फंड प्रबंधकों को चीन पर नकारात्मक रुख अपनाने और ऊंचे मूल्यांकन के बावजूद भारत का भारांक बढ़ाने के लिए बाध्य होना पड़ा है। हालांकि जहां चीन की नियामकीय सख्ती को लेकर काफी चर्चा हुई थी, वहीं उसके कमजोर प्रदर्शन का अन्य कारण सरकार के स्वामित्व वाले उद्यमों (एसओई) के दबदबा है, जिनमें से ज्यादातर ने शेयर बाजार में कमजोर प्रदर्शन किया है।
सीएलएसए के अनुसार, कई उद्योगों में चीन की सबसे बड़ी कंपनियां एसओई हैं। इसके अलावा, फॉच्र्यून ग्लोबल 500 में शामिल 124 में से 91 कंपनियां सरकार के स्वामित्व वाली हैं। एक वर्षीय और दो वर्षीय समय-सीमाओं के दौरान, चीन के शीर्ष एसओई में 11 प्रतिशत और 18 प्रतिशत की वृद्घि दर्ज की गई। दूसरी तरफ निजी कंपनियों में 42 प्रतिशत और 233 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई। इसके अलावा, शीर्ष-50 में एसओई और गैर-एसओई के बीच बाजार पूंजीकरण अंतर 45 प्रतिशत और 55 प्रतिशत है।
वहीं भारत में, सूचीबद्घ एसओई (जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम या पीएसयू कहा जाता है) का भारत के बाजार पूंजीकरण में 10 प्रतिशत, जबकि निजी कंपनियों का 90 प्रतिशत योगदान है। मौजूदा समय में, भारत ईएम के चार सबसे बड़े बाजारों में एकमात्र बाजार है, जहां फंडों ने ओवरवेट रुख अपनाया है।
बाजार जानकारों का कहना है कि भारत की सबसे बड़ी 20-30 कंपनियों (जिनमें से ज्यादातर निजी क्षेत्र से हैं) के प्रदर्शन से घरेलू बाजार को मजबूती मिली है। मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक एवं मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ मुखर्जी ने कहा, ‘मौजूदा समय में, करीब 15-20 कंपनियों का भारत की 90 प्रतिशत मुनाफा वृद्घि में बड़ा योगदान है। ये कंपनियां अपने लाभ लगातार 20 प्रतिशत की दर से बढ़ा रही हैं।’