देश में बढ़ते निजी इक्विटी निवेश ने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) का ध्यान खींचा है। आयोग बहुत सी कंपनियों में पीई निवेश के स्वरूप और उससे प्रतिस्पर्धा पर असर को समझने के लिए एक अध्ययन शुरू करने की योजना बना रहा है। सीसीआई के चेयरमैन अशोक गुप्ता ने आज यह बात कही।
गुप्ता ने प्रतिस्पर्धा कानून और व्यवहार पर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सालाना सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘इन निजी इक्विटी निवेश में से बहुत से एक ही उद्योग की बहुत सी कंपनियों में हैं, जिससे उत्पाद बाजार में घालमेल हो रहा है। सभी कंपनियों में अल्पांश हिस्सेदारों की साझा साझेदारी के मुद्दे और उसके प्रतिस्पर्धा पर असर को समझने की जरूरत है।’
उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस (कोविड-19) महामारी के कारण इस साल निजी इक्विटी निवेश रणनीतिक निवेश को पार कर गया है। यह देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और अन्य विदेशी निवेश से भी आगे निकल गया है। सीसीआई किसी निजी इक्विटी निवेशक के ऐसे निवेश के पीछे निहित प्रोत्साहन एवं प्रेरणा की थाह लेना चाहता है। यह उन अधिकारों की भी पड़ताल करेगा, जो इन निवेशकों के पास अपने वैध वित्तीय हितों की सुरक्षा के लिए हैं। क्या ऐसे अधिकारों से वे किसी कंपनी के फैसलों को प्रभावित कर सकते हैं और इसके नतीजतन प्रतिस्पर्धा पर असर डाल सकते हैं। आयोग यह भी अध्ययन करेगा कि अल्पांश शेयरधारक निवेशक या कंपनी निष्क्रिय निवेश की श्रेणी में आएगी।
गुप्ता ने कहा, ‘इस अध्ययन से हमें साामान्य शेयरधारकों के लिए उपलब्ध शेयरधारिता अधिकारों के प्रकार, इन अधिकारों से प्राप्त प्रभाव और प्रतिस्पर्धा की चिंताओं को कम करने के लिए कंपनियों की नीतियों में उपलब्ध उपायों को चिह्नित करने में मदद मिलेगी।’
सीसीआई दवा क्षेत्र का भी अध्ययन कर रहा है। यह बाजार में वितरण शृंखला के चार अहम पहलूओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इनमें थोक एवं खुदरा स्तरों पर छूट एवं मार्जिन नीति, व्यापार संगठनों की भूमिका, कारोबार मार्जिन का नियामकीय स्तर पर तर्कसंगत बनाया जाना और कीमत एवं प्रतिस्पर्धा पर ई-कॉमर्स का प्रभाव शामिल हैं।
गुप्ता ने कहा, ‘जन स्वास्थ्य की गुणवत्ता के अहम निर्धारक दवाओं की गुणवत्ता, उपलब्धता और किफायत हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के ग्राहकों और आपूर्तिकर्ताओं के बीच असंतुलन है।’
सीसीआई प्रमुख ने प्रतिस्पर्धा प्रसार के मुकाबले सरकारी खरीद और निविदा डिजाइन में निहित मुद्दों को भी उजागर किया। उन्होंने कहा कि सीसीआई ने अपने अनुभव से यह सीखा है कि बाजारों को आपूर्ति पक्ष के लिहाज से ठीक करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि प्रभावी तरीका खरीदारों के स्तर पर भी काम करना भी है ताकि प्रतिस्पर्धा के विचार को राज्यों तक पहुंचाया जा सके।
आयोग ने कोविड-19 के मद्देनजर मौद्रिक जुर्मानों के बजाय रोक के आदेशों क चुना है। गुप्ता ने कहा कि सीसीआई ने जांच के दौरान पक्षों के सहयोग का संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा, ‘आयोग आगे ऐसे कारकों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल कर सकता है, जिससे पक्षों को गैर-प्रतिस्पर्धी व्यवहार को बंद करने और जल्द बाजार में सुधार लाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।’
