जेफरीज में इक्विटी रणनीति के वैश्विक प्रमुख क्रिस्टोफर वुड का मानना है कि मुद्रास्फीति की चिंताओं को मात देने के लिए निवेशकों को ग्रोथ और वैल्यू शेयर शामिल करने की रणनीति अपनानी चाहिए। उनका कहना है कि वैश्विक फंड प्रबंधकों को अमेरिकी फेडरल द्वारा प्रोत्साहन वापस लिए जाने की समय-सीमा को समझने के लिए अमेरिका में पांच वर्षीय आगामी मुद्रास्फीति संभावना पर ध्यान बनाए रखने की जरूरत होगी।
भारतीय संदर्भ में, वुड ने अपने एशिया एक्स-जापान थीमेटिक इक्विटी पोर्टफोलियो में बजाज फाइनैंस में हिस्सेदारी खरीदी है। अगस्त में उन्होंने भारतीय इक्विटी में अपना निवेश 2 प्रतिशत अंक तक बढ़ाया। निवेशकों के लिए अपने साप्ताहिक न्यूजलेटर ‘ग्रीड ऐंड फीयर’ में वुड ने लिखा है, ‘इक्विटी पोर्टफोलियो के लिए ग्रोथ और वैल्यू दोनों को अपनाने की रणनीति बरकरार रखनी चाहिए। आखिरकार, इन दोनों की संभावना का आकलन इस संबंध में मौजूदा बहस के परिणाम के साथ किया जाना चाहिए कि क्या मुद्रास्फीति में तेजी अस्थायी है या नहीं। फिर भी, भले ही यह अस्थायी वृद्घि न हो, लेकिन शेयर उतना ज्यादा प्रभावित नहीं होंगे, जितने वे हो सकते हैं, यदि फेडरल रिजर्व और अन्य जी7 केंद्रीय बैंक ग्रीड ऐंड फीयर के आधार मामले के अनुरूप मौद्रिक सख्ती को लेकर वित्तीय नियंत्रण की नीति का समर्थन करते हैं।’
अक्सर, ग्रोथ शेयर उस कंपनी का होता है जो मजबूत ओर निरंतर सकारात्मक नकदी प्रवाह हासिल करती है और जिसमें राजस्व और आय समान उद्योग की किसी औसत कंपनी के मुकाबले तेजी से बढऩे की क्षमता होती है। दूसरी तरफ, वैल्यू निवेश एक ऐसा निवेश दृष्टिïकोण है, जो कम कीमत वाली प्रतिभूतियों की खरीदारी से संबंधित होता है।
हाल में अपनी जैकसन होल बैठक में, फेडरल के चेयरमैन पॉवेल ने आर्थिक प्रगति के लक्ष्य पूरे होने की स्थिति में रियायतें वापस लिए जाने का संकेत दिया था। एफओएमसी की अगली बैठक 21-22 सितंबर को है और इसे ध्यान में रखते हुए विश्लेषकों का कहना है कि यदि अर्थव्यवस्था समिति के अनुमानों के अनुरूप मजबूत होने लगे तो अमेरिकी फेडरल द्वारा रियायत वापस लेने के बारे में बिना शर्त अग्रिम सूचना देने की संभावना है।
राबोबैंक इंटरनैशनल में वरिष्ठï अमेरिकी रणनीतिकार फिलिप मरे का कहना है, ‘इसके बाद नवंबर के शुरू में होने वाली बाद की बैठक में रियायत वापस लेने की प्रक्रिया शुरू करने की औपचारिक घोषणा की जा सकती है। यदि अर्थव्यवस्था को लेकर निराशा दिखती है या नवंबर में कई तरह की चुनौतियां आती हैं तो एफओएमसी यह घोषणा दिसंबर मध्य की बैठक में भी कर सकती है।’
वुड का मानना है कि यदि रियायतें वापस लिए जाने से वैश्विक जोखिम की स्थिति पैदा होती है तो भारतीय शेयर बाजारों का प्रदर्शन अपने वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले कमजोर रह सकता है। जूलियस बेयर के विश्लेषकों ने भी समान नजरिया साझा किया है और कहा है कि निवेशक सुरक्षित दांव वाले बाजारों को पसंद कर सकते हैं, क्योंकि अमेरिकी फेड अपने 120 अरब डॉलर के मासिक तरलता कार्यक्रम को वापस लेने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।