बाजार की ब्याज दर के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के रुख के कारण बॉन्ड बाजार में गिरावट में गिरावट आ रही है। ऐसे में जिन लोगों के पास नुकसान की भरपाई करने के लिए पर्याप्त पूंजी उपलब्ध नहीं है वे काफी चिंतित हो रहे हैं क्योंकि प्रतिफल में बढ़त एक या दो साल में दिखने के आसार हैं। केंद्रीय बैंक ने लगातार चौथी बार 10 साल के बॉन्ड इश्यू – करीब 58,500 करोड़ रुपये- तैयार किए हैं। साथ ही उसने 10,000 करोड़ रुपये के एकमुश्त खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) को रद्द कर दिया है।
इससे पहले आरबीआई ने विशेष ओएमओ में बोलियों को भी खारिज कर दिया था। सरकारी बॉन्ड की नीलामी के तहत प्राथमिक डीलरों से रकम हासिल की जा रही है। वे 10 वर्षीय बॉन्ड को 6 फीसदी की कटऑफ प्रतिफल पर खरीद रहे हैं। ये प्रतिफल पहले से ही दशक के निचले स्तर पर हैं और बॉन्ड के परिपक्व होने से पहले उसमें निश्चित तौर पर तेजी दिखने लगेगी। यदि यही स्थिति बरकरार रही तो प्राथमिक डीलर इन बॉन्डों को भुना नहीं पाएंगे जिससे उन्हें भारी नुकसान हो सकता है। इन फर्मों के वरिष्ठ अधिकारियों एवं अन्य बॉन्ड डीलरों का कहना है कि कुछ लोगों को अपने कारोबार पर काफी दबाव भी दिख रहा है।
प्रतिफल में नरमी बनाए रखने के लिए आरबीआई का दृष्टिकोण समझ में आता है। सरकार के ऋण प्रबंधक के तौर पर आरबीआई को सरकार के 12 लाख करोड़ रुपये के उधारी कार्यक्रम का प्रबंधन करना है। साथ ही उसे राज्यों को सस्ते ऋण की सुविधा भी उपलब्ध करानी है। लेकिन बाजार प्रतिभागियों ने शिकायत करना शुरू कर दिया है कि केंद्रीय बैंक ने नकदी समर्थन के अलावा बाजार से दबाव को दूर करने के लिए कुछ खास नहीं किया है।
निश्चित तौर पर कुछ उपाय किए गए हैं जैसे अनिवार्य अनुपात को कम करते हुए बैंकों को बॉन्ड में अधिक निवेश करने की अनुमति दी गई है और उन्हें नकदी प्रवाह के मोर्चे पर पर्याप्त मदद की गई है। लेकिन केंद्रीय बैंक सतत ओएमओ समर्थ के लिए बाजार की लंबे समय से चली आ रही मांग पर चुप है। ऐसे में बॉन्ड बाजार के लोग अब अधीर होने लगे हैं। उनका कहना है कि केंद्रीय बैंक को लंबे समय तक बॉन्ड बाजार से सहयोग की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस के प्रमुख (निर्धारित आय) बद्रीश कुलहल्ली ने कहा, ‘जाहिर तौर पर उन बाजार प्रतिभागियों के बीच एक तरीके से थकान दिख रहा है जो पिछले कुछ महीनों से लगातार बॉन्ड खरीद रहे हैं।’
सरकार ने मई में जब चालू वर्ष की उधारी में भारी वृद्धि की घोषणा की थी तो बाजार ने भारी आपूर्ति को अवशोषित करने में आरबीआई से जबरदस्त समर्थन मिलने की उम्मीद जताई थी। यही कारण था कि आपूर्ति बढऩे के बावजूद बॉन्ड की लगातार खरीदारी की गई। लेकिन अब आपूर्ति की अधिक मात्रा को अवशोषित करने के लिए बाजार की नजर आरबीआई की ओर है। ऐसी परिस्थितियों में ओएमओ को रद्द करने से भ्रम पैदा हो सकता है।
