मंगलवार को सरकारी बॉन्डों और रुपये में मजबूती दर्ज की गई। डीलरों का कहना है कि भारतीय बॉन्डों को वैश्विक बॉन्ड इंडेक्स में शामिल किए जाने की संभावना से घरेलू परिसंपत्तियों में निवेश को बढ़ावा मिला।
बॉन्ड कीमतों में तेजी भारत के उपभोक्ता कीमत सूचकांक मुद्रास्फीति में वृद्धि के बावजूद दर्ज की गई है, जिससे आरबीआई द्वारा सख्त मौद्रिक नीति बरकरार रखने की आशंका बढ़ी है।
अमेरिकी मुद्रास्फीति में गिरावट की आशंका से डॉलर सूचकांक में बड़ी गिरावट की वजह से भी घरेलू मुद्रा को ताकत मिली है। रुपये में 27 जुलाई के बाद से एक दिन में सबसे बड़ी तेजी दर्ज की गई।
10 वर्षीय बॉन्ड पर प्रतिफल पूर्ववर्ती बंद भाव 7.14 प्रतिशत के मुकाबले 7.08 प्रतिशत पर बंद हुआ। बॉन्ड कीमतों और प्रतिफल की विपरीत संबंध है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 79.15 पर बंद हुआ, जबकि इसका पूर्ववर्ती बंद भाव 79.53 पर था। 2002 में अब तक घरेलू मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6.07 प्रतिशत कमजोर हो चुकी है।
भारतीय सॉवरिन डेट को वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने की संभावना अगस्त के मध्य से बढ़ी है, क्योंकि गोल्डमैन सैक्स जैसी कई वैश्विक वित्तीय कंपनियों ने इस प्रक्रिया को लेकर अपने अनुकूल विचार व्यक्त किए हैं। वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने से साल में करीब 30 अरब डॉलर का पूंजी प्रवाह आकर्षित होने का अनुमान है और खासकर इससे बॉन्डों के लिए मांग-आपूर्ति परिदृश्य सुधरेगा जिससे सरकार को अपने राजकोषीय घाटे के संदर्भ में स्थिति मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
एक बॉन्ड कारोबारी ने कहा, ‘बॉन्डों में आज करीब 1,000 करोड़ रुपये का एफपीआई प्रवाह दर्ज किया गया। पूंजी प्रवाह की रफ्तार अच्छी है और कोई भी इस तेजी से दूर रहना नहीं चाहेगा। यही वजह है कि मुद्रास्फीति आंकड़े को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देखी गई थी।’
