दिसंबर तिमाही का परिणाम बीएचईएल के लिए निराशाजनक ही रहा है।
वित्त वर्ष 2008-09 में पिछले नौ महीनों के दौरान कंपनी ने जो राजस्व अर्जित किया था उसमें तिमाही के दौरान 31 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
इसके अलावा दिसंबर की तिमही में कंपनी का टॉपलाइन में भी विकास कंपनी के लिए अनुकूल नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस दौरान कंपनी के टॉपलाइन में मात्र 21 फीसदी की ही बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
इससे भी ज्यादा निराशाजनक बात यह है कि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान कंपनी मे मुनाफे में सेंध लग सकती है। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि अंतिम तिमाही में इंजीनियरिंग क्षेत्र की इस बड़ी कंपनी के शुध्द मुनाफे में साल-दर-साल के हिसाब से मात्र 2.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
राजस्व के 25-30 फीसदी की उछाल के साथ 27,000 करोड रुपये रहने के बावजूद अब तक विश्लेषक शुध्द मुनाफे में 15-16 फीसदी के विकास का अनुमान लगा रहे हैं। अब एक अहम सवाल यह खड़ा होता है कि क्या वर्ष 2009-10 बीएचईएल के नजरिए से बेहतर हो सकता है?
इसका जबाव देना शायद उतना आसान नहीं है क्योंकि सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर करता है कि अर्थव्यवस्था का ऊंट कौन सा करवट लेता है। ये बात अलग है कि कंपनी के पास अभी भी आर्डर हैं लेनिक सिर्फ ऑर्डर का रहना नाकाफी है और यह बहुत जरूरी है कि इन सौदों पर अमल भी हो।
अभी हो यह रहा है कि कंपनी के पास ऑर्डर की भरमार है लेकिन ग्राहक अपनी परियोजनाओं पर अमल करने में थोडा ज्यादा समय ले रहे हैं। इसकेलिए काफी हद तक फंडों की कमी को जिम्मेदार माना जा रहा है।
दीगर बात यह है कि बीएचईएल के पास जितने भी ठीके हैं वे सरकार की तरफ से आएं है जो समय पर पैसों का भुगतान कर देते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी ग्राहक, जैसे राज्य विद्युत बोर्ड हैं, जो समय पर भुगतान नहीं करते हैं।
डॉयचे बैंक की एक ताजातरीन रिपोर्ट के अनुसार राज्यों के विद्यत बोर्ड की हालत दिनोंदिन चरमरा रही है और आगे इसके और बदतर होने की आशंका जताई गई है।
डाबर: अपेक्षा से कम
पिछले पांच तिमाहियों के दौरान लगातार बेहतर प्रदर्शन करनेवाली डाबर की कुल बिक्री में दिसंबर 2008 की तिमाही के दौरान 20 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई।
कंपनी के लिए अच्छी बात यह रही कि इसके कारोबार में 14 फीसदी की शानदार तेजी आई जबकि हिन्दुस्तान यूनिलीवर की बात करें तो इसके कारोबार में मात्र 2 फीसदी की ही तेजी देखी गई।
हालांकि इन सारी अच्छी बातों के बावजूद डाबर के कुल मार्जिन में 340 आधार अंकों की गिरावट आना निश्चित तौर पर चिंता का विषय है क्योंकि अगर तुलनात्मक रूप में देखें तो मैरिको और एचयूएल के कुल मार्जिन में क्रमश: 214 और 233 आधार अंकों की ही कमी दर्ज की गई है।
कंपनी के लिए एक और दुखदायी बात यह रही कि विज्ञापन और बिक्री के अनुपात में 200 आधार अंकों की गिरावट आने के कारण कंपनी का परिचालन मुनाफा मार्जिन साल-दर-साल के हिसाब से 110 आधार अंकों की गिरावट केसाथ 17 फीसदी के स्तर पर आ गया।
मंदी के कारण लगभग सभी कंपनियों ने पिछली तिमाही के दौरान विज्ञापनों पर अपने खर्च में बड़े पैमाने पर कटौती की है। मैरिको विज्ञापन और बिक्री के अनुपात में 150 आधार अंकों की गिरावट दर्ज की गई जबकि टाटा टी के मामले में इसमें 210 आधार अंकों तक की गिरावट दर्ज की गई।
डाबर के शुध्द मुनाफे में 14.7 फीसदी की तेजी में इसके अन्य स्रोतों से आनेवाली आमदनी का भी अहम योगदान रहा। पिछले एक साल से डाबर का प्रदर्शन मैरिको, टाटा टी और आईटीसी को छोड़कर एफएमसीजी क्षेत्र की अन्य कंपनियों के मुकाबले कमजारे रहा।
शायद इसी वजह से फिलहाल कंपनी के शेयरों का कारोबार 88 रुपये पर वित्त वर्ष 2009-10 की आमदनी के 16 गुणा के स्तर पर हो रहा है। अगर कंपनी के कारोबार में तेजी जारी रही तो डाबर के टॉपलाइन में वित्त वर्ष 2009-10 में 18-19 आधार अंकों की बढ़ोतरी होनी चाहिए जबकि कच्चे मालों की कीमतों में कमी के साथ ही मार्जिन में भी सुधार आ सकेगा।
डाबर के कुछ प्रमुख ब्रांड जैसे डाबर आंवला और वाटिका ऑयल जबरदस्त कारोबार कर रही है और साथ कंपनी विदेशों में भी बेहतर कारोबार कर रही है। कंपनी ने कुछ विदेशी बाजारों जैसे टर्की, लेबनान और चीन में कदम रखा है।
