ऑटोमोबाइल जगत से बुरी खबरों का आना जारी है। पिछले सप्ताह, यूटिलिटी व्हीकल बनाने वाली कंपनी महिन्द्रा ऐंड महिन्द्रा (एम ऐंड एम) ने घोषणा की थी कि वह अपनी फैक्ट्रियों को इस महीने 3 से 4 दिनों के लिए बंद रखने जा रही हैं।
पिछले महीने, ट्रक और बस बनाने वाली कंपनी टाटा मोटर्स और अशोक लीलैंड ने कहा था कि वे दिसंबर में अपेक्षाकृत कम घंटे काम करेंगी। नवंबर में आयशर के वाणिज्यिक वाहन के कारोबार में 71 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई जो लीलैंड के कारोबार में आई 67 प्रतिशत की गिरावट से अधिक है।
मांग चाहे वह ट्रक की हो या वाणिज्यिक वाहनों की, स्पष्ट तौर पर कमजोर देखी जा रही है। इसकी एक वजह फाइनैंसरों द्वारा आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध नहीं कराना भी है।
बैंक कार या ट्रकों के लिए उपभोक्ता ऋण देने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं और अगर वे ऋण उपलब्ध भी करा रहे हैं तो अपेक्षाकृत अधिक ब्याज दरों पर।
ट्रकों का मामला और भी निराशाजनक है। आर्थिक मंदी का मतलब है कि परिवहन के लिए अपेक्षाकृत कम सामान होंगे और ट्रकों के परिचालक नया ट्रक खरीदने के बजाए अपने ट्रकों पर अधिक से अधिक लदाई करने को ज्यादा तरजीह देते हैं। मोटरसाइकिल-स्कूटर वाले अपने वर्तमान बाइकों को ही कुछ और दिनों तक बनाए रखना चाहते हैं।
मंदी की इस घड़ी में केंद्रीय उत्पाद कर में की गई चार प्रतिशत की कटौती- अगर कंपनियां ग्राहकों को यह लाभ देना चाहती हैं तो इससे कार और ट्रकों की कीमतें कम होनी चाहिए – अच्छी खबर है। लेकिन सस्ते कार और ट्रकों का मतलब शोरूम के बाहर लंबी कतार का लगना नहीं है।
अभी के लिए तो बिल्कुल नहीं। हां, रिजर्व द्वारा रेपो और रिवर्स रेपो रेट में की गई कटौती के जबाव में बैंक अपने प्रधान उधारी दरों में लगभग 50 से 75 आधार अंकों की कटौती कर रही हैं। बैंकों को ऑटो लोन की दरों को कम करने की जरूरत है ताकि वे ज्यादा सुलीा हो सकें।
बैंकों को इस बात के लिए तैयार होने की जरूरत है कि वे उपभोक्ताओं को ऋण देना चाहते हैं। उनके हिसाब से, कठिन परिस्थितियों में उपभोक्ता कुछ ज्यादा ही सतर्क हो जाते हैं। शेयर बाजार में गिरावट आने से उनके धन का सफाया हो गया।
अर्थव्यवस्था का परिदृश्य भी ज्यादा आकर्षक नहीं है। ऐसे में उपभोक्ता अपनी नौकरियों और आय को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। उन्हें आशा है कि कार बनाने वाली कंपनियां कीमतों में और कमी करेंगी क्योंकि कच्चे मालों जैसे स्टील और एल्युमीनियम आदि के मूल्य में काफी कमी आई है। अभी के समय में कीमतों में चार से पांच प्रतिशत की कटौती मांग में शायद ही कोई तेजी ला पाए।
तेल कंपनियों के बुरे दिन
जब ऐसा लगा कि तेल का खुदरा कारोबार करने वाली कंपनियां जैसे बीपीसीएल, एचपीसीएल और आईओसी के साल 2008-09 की समाप्ति अनुमान से बेहतर ढंग से होगी तभी सरकार द्वारा पेट्रोल-डीजल की कीमतों में की गई कटौती उनके लिए बाधक साबित हुईं।
कच्चे तेल की कीमतों में जुलाई की रिकॉर्ड 147 डॉलर प्रति बैरल से अब तक 70 प्रतिशत की गिरावट हो चुकी है। तेल विपणन व्यवसाय से जुड़ी कंपनियों को इससे मुनाफा होना चाहिए क्योंकि तेल के विक्रय मूल्यों में कोई कमी नहीं आई थी।
लेकिन पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमश: 5 और 2 रुपये की कमी होने से अब ये बात लगभग तय हो गई है कि सभी तीन कंपनियों के लिए साल का अंत घाटे के साथ होगा।
पहले ही सितंबर 2008 में समाप्त हुए छह महीनों में इन तीन कंपनियों का संयुक्त घाटा 14,431 करोड रुपये का था। उल्लेखनीय है कि यह घाटा जून महीने में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद जारी रहा।
कंपनियां पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और एलपीजी उत्पादन की लागत से कम कीमत पर बेचती आ रही हैं। इनमें से कुछ घाटा तेल खोजने वाली कंपनियों जैसे ओएनजीसी द्वारा वहन किया जाता है।
इसके अतिरिक्त सरकार तेल बॉन्ड जारी करती हैं जो सीधे तौर पर इन कंपनियों के टॉपलाइन में शामिल हो जाता है। लेकिन, इन उपायों से संपूर्ण घाटे की भरपाई नहीं हो सकती है।
तेल विपणन कंपनियों को केवल डीजल और पेट्रोल के कम लाभों से ही नहीं जूझना होता है बल्कि विमानन ईंधन (एटीएफ) पर भी मार्जिन कम हो गया है।
और, अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ीं, जैसा कि अंदेशा है, तो कंपनियों की परेशानियां और बढ़ जाएंगी। विश्लेषक केवल कम कीमतों को लेकर ही चिंतित नहीं है।
उनका मानना है कि एटीएफ जैसे उत्पादों के कारोबार में कमी आएगी क्योंकि हवाई यात्रा करने वाली सवारियों की संख्या में कमी आ रही है। पहले ही डीजल की मांग में अनुमान से अधिक कमी देखी जा रही है।
अगर सरकार मदद करने के खयाल से तेल बॉन्ड जारी नहीं करती हैं तो कारोबार कम होने से कंपनियों के राजस्व पर प्रभाव पड़ेगा जो साल 2008-09 की पहली छमाही में 47 से 50 प्रतिशत बढ़ा था। कच्चे तेल की कीमतें कम हो रही हैं।
बीपीसीएल, एचपीसीएल और आईओसी ने पिछले छह महीने में बाजार से बेहतर प्रदर्शन किया है। हालांकि, जब तक सरकार की तरफ से राहत का आश्वासन नहीं मिलता तब तक परिस्थितिशें के पलटने की ही आशा की जा सकती है।