वैश्विक मंदी के बावजूद ब्रिटेन की थ्रीआई समूह का डेट-इक्विटी अनुपात 50 फीसदी के उच्चतम स्तर पर है जबकि इसका लक्ष्य 30 फीसदी रखा गया था। समूह ने दुनियाभर में अपने कर्मचारियों में लगभग 15 फीसदी की कमी की है।
कंपनी के एशिया परिचालन को देखने वाले अनिल आहूजा ने राजेश भयानी और कल्पना पाठक को बताया कि थ्रीआई का कारोबार भारत में बेहतर रहेगा। इस कंपनी ने अगले तीन सालों में देश में निवेश करने के लिए लगभग 5,100 करोड़ रुपये रखा है।
थ्रीआई की रेटिंग डेट पोजीशन की वजह से घटी है, इस पर आपकी क्या टिप्पणी है?
स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने हाल ही में थ्रीआई की डेट रेटिंग को ए निगेटिव से बीबीबी पॉजिटिव कर दी गई है। साथ ही यह चेतावनी दी गई है कि अगर कर्जभार को कम नहीं किया गया तो आगे भी कटौती की जा सकती है। इसी वजह से थ्रीआई समूह की रेटिंग कम हुई है।
हमारा लक्षित डेट-इक्विटी अनुपात 30 फीसदी है जबकि हम 50 फीसदी तक पहुंच चुके हैं। एक प्रबंधक के तौर पर हम यह नहीं चाहते हैं कि डेट-इक्विटी अनुपात बहुत ज्यादा हो और हमारी कोशिश यह है कि यह कम हो जाए। हालांकि यह अनुपात इस उद्योग से जुड़ी दूसरी कंपनियों के मुकाबले यह बेहतर हो। हमलोगों ने हाल ही में एक लिस्टेड फंड कोटेड प्राइवेट इक्विटी (क्यूपीई)खरीदा है।
थ्रीआई एक नया खिलाड़ी है, ऐसे में भारत में आपके कारोबार पर कोई असर पड़ेगा? आपका बिजनेस कैसा चल रहा है?
भारत में हम तीन फंडों मसलन, ग्रोथ, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बाइआउट फंड के साथ कारोबार कर रहे हैं। ग्रोथ फंड को पैसे हम ही देते हैं। भारत का सबसे बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर फंड इंफ्रा है और यह ऊर्जा और परिवहन सेक्टर के लिए ही काम करता है। हमलोगों ने यह फंड अप्रैल 2008 में बनाया था। इसमें 700 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया गया था। इस पैसे को अगले दो सालों में निवेश करने के लिए कुछ प्रस्तावों पर विचार कर रहे हैं।
हाल ही में आंध्रप्रदेश के कृष्णापत्तनम पोर्ट कंपनी में लगभग 830 करोड़ रुपये के निवेश के लिए बात की गई है। यह इस राष्ट्र में तीसरा बुनियादी ढ़ांचे में निवेश होगा। थ्रीआई ने वर्ष 2006 से ही 10,200 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश एशिया में किया है। बायआउट 36,000 करोड़ रुपये का एक ग्लोबल फंड है जिसमें मौजूदा समय में यूरो फंड वी से भी निवेश किया जाता है।
दरअसल भारत में निवेश को लेकर हमने कोई सीमा नहीं तय की है क्योंकि भारत में कारोबार की अपार संभावनाएं हैं । इस अपार संभावनाओं को देखते हुए निवेश की सीमा तय करने के बारे में नहीं सोचा जा सकता है। हमलोग बायआउट डील को लेकर काफी आशावान हैं अगर इसका मूल्यांकन सही होता है।
क्या यह समय पीई के लिए मुश्किल भरा समय नहीं है?
निश्चित रूप से समय बहुत खराब है। वास्तव में इस वक्त औद्योगिक स्तर पर पूरे प्राइवेट इक्विटी सिस्टम में ही परेशानी का दौर है। हालांकि कुछ अपवाद भी है क्योंकि प्राइवेट इक्विटी निवेश चेन में लगभग सभी तरह के खिलाड़ी अलग-अलग तरह के मतभेदों को झेल रहे हैं। कंपनियों का मूल्यांकन के आधार पर पीई फंड के साथ को तालमेल नहीं है।
उनकी उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं और बाजार की वास्तविकता इसमें कोई समर्थन नहीं दे सकती है। पीई फंड में अपने निवेशकों के साथ ही समस्या है जिन्हें लिमिटेड पार्टनर (एलपी)कहा जाता है। फंडों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे आश्वस्त नहीं करा पाते कि एलपी ज्यादा से ज्यादा निवेश करने का अपना वादा पूरा करेंगे। इसके अलावा एलपी भी अपने निवेशकों की आलोचनाओं का सामना कर रहें हैं। यह आलोचना घाटा और कम नुकसान से जुड़ा होता है।
ऐसे में तो शायद थ्रीआई फंडों के डील में देर होगी?
हमारे पास निर्माण या औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े कुछ डील हैं और हम उन पर काम कर रहे हैं। हमलोगों ने तकनीक के लिए भी कोशिश की थी लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया। भारत में हमारा कुल फंड 5,100 करोड़ रुपये है। हमें अप्रैल 2012 तक निवेश करना है लेकिन हम इस अवधि से बहुत पहले ही ऐसा कर सकते हैं।
इस समूह के साथ फिलहाल कितना फंड मौजूद है?
पिछले पांच सालों में समूह के पास लाभांश और शेयर बायबैक के रूप में 14,500 करोड़ रुपये है। हर कंपनी उधार फंड में अपना भी योगदान देता है। हमारे पास भी कुछ रकम है जिससे हम अपने फंड की शुरुआत कर सकते हैं और एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
