अशोक लीलेंड ने अपनी चेन्नई और पंतनगर में अपनी क्षमता विस्तार की योजनाओं को फिलहाल रोक दिया है।
साथ ही कंपनी की चेन्नई स्थित बस और ट्रक निर्माता यूनिट कैश को बनाए रखने के प्रयासों लगा है।
कंपनी द्वारा अपना उत्पादन बढाने के लिए रखे गए 700 करोड़ रुपये ऐसे समय में उसके लिए खासे मददगार साबित होंगे जब कमर्शियल वाहनों की बिक्री कम होती जा रही है।
नवंबर माह में कंपनी की बिक्री का वॉल्यूम 67 फीसदी गिरा है। अगर निर्यात को भी इसमें जोड़ा जाए तो भी यह गिरावट 60 फीसदी तक ही आती है।
कंपनी के इन हालातों में बदलाव सितंबर के बाद प्रारंभ हुए हैं। इस माह तक के पहले छह माहों में कंपनी वाल्यूम 6,000 करोड़ रुपये प्रतिमाह था।
लेकिन पिछले दो माह में यह वॉल्यूम घटकर लगभग आधा रह गया है। उद्योग के विश्लेषकों का कहना है कि बढ़ती ओवरलोडिंग के कारण भी ट्रकों की बिक्री कम हुई है। ऐसा नहीं है कि यह मार केवल अशोक लीलेंड को ही झेलनी पड़ रही है।
अग्रणी ट्रक निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स भी इससे अछूती नहीं है। अक्टूबर और नवंबर में इस लीडर कंपनी का वॉल्यूम क्रमश: 29 फीसदी और 40 फीसदी गिरा। इसके चलते लीलेंड के सामने वित्तीय दिक्कतें आ खड़ी हुई हैं। सितंबर 2008 के पहले छह महीनों में कंपनी का शुध्द मुनाफा 122 करोड़ रुपये रहा।
यह मुनाफा विदेशी मुद्रा विनिमय से हुए नुकसान को हटाने के बाद भी पिछले साल इसी दौरान अर्जित मुनाफे से कम रहा। अगर यहां से स्थितियों में सुधार नहीं हुआ तो यह तय है कि कंपनी का शुध्द मुनाफा 2007-08 में अर्जित 478 करोड़ रुपये के मुनाफे से कम रहने वाला है।
भले ही जारी वित्तीय वर्ष की पहली दो तिमाहियों में कंपनी का बिक्री वॉल्यू दोगुना रहा हो लेकिन उसके राजस्व में महज 11 फीसदी का ही इजाफा हुआ। इसमें भी उसके गेनसेट्स और स्पेयर पार्ट कारोबार के अच्छे प्रदर्शन का खास योगदान रहा।
अगर लीलेंड का थोड़ा भाग्य ने साथ दिया तो वह पिछले साल की 7,729 करोड़ रुपये की टॉपलाइन के स्तर को बरकरार रखने में सफल रहेगा। हाल ही में स्टील और एल्युमीनियम की कीमतों में गिरावट आई है।
अब कंपनी अपने प्रॉडक्ट मिक्स में बस की बिक्री बढाने पर अधिक ध्यान दे रहा है ताकि वह अच्छा रियेलाइजेशन अर्जित कर सके लेकिन पिछले दो माहों में उसे अधिक सफलता नहीं मिली है। इस चुनौतीपूर्ण हालातों में जहां पर क्रेडिट काफी महंगी हो गई है।
बजाज ऑटो: घटती बिक्री
क्रेडिट सख्त होने के चलते ग्राहकों के लिए फाइनेंसिंग योजनाओं के न होने का बजाज पर काफी असर पड़ा है।
कंपनी का मोटरसाइकिल का वॉल्यूम सितंबर 2008 के पहले छह माहों में 9 फीसदी ऊपर थी तो उसे अच्छा नहीं माना गया था, लेकिन जब अकेले नवंबर में ही वॉल्यूम 37 फीसदी गिर गया है तो लग रहा है कि वह स्थिति वर्तमान स्थिति से कहीं बेहतर थी। यह सच है कि अक्टूबर में भी वॉल्यूम 34 फीसदी गिरा था।
अपनी सहयोगी कंपनी को इस स्थिति से उबारने के लिए बजाजा ऑटो फाइनेंस कम ब्याज दर वाली स्कीम लेकर आया है जो पूरे देश के 300 डीलरों के जरिए उपलब्ध कराई जाएगी।
इसके बाद भी दोपहिया वाहनों की बिक्री में तेजगति से इजाफा उसी स्थिति में होगा जब ब्याज दरों में तार्किक बदलाव आए और खरीदारों के लिए बैंक का धन उपलब्ध हो।
लेकिन वह क्रेडिट की तंगहाली ही एक वजह नहीं है जो ग्राहकों को वाहन खरीदने से रोक रही है, बल्कि धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था के चलते लोग अपने खर्चों को लेकर काफी सावधान हो गए हैं। यही कारण है वाहन मालिक अपनी पुरानी गाड़ियों से ही खुश हैं।
उद्योग से विश्लेषकों का कहना है कि अब अपनी मोटरसाइकिल बदलने का समय काफी लंबा हो गया है। बजाज के पास उसके प्रतिद्वंद्वी और इस क्षेत्र में मार्केट लीडर हीरो होंडा की तरह ग्रामीण बाजार नहीं है, उसे ज्यादतर ग्राहक शहरी क्षेत्रों में मिल रहे हैं।
पिछले कुछ माहों से पुणे स्थित यह कंपनी अपना मार्केट शेयर हीरोहोंडा के हाथों गंवा रही है जिसने त्यौहारों के बाद विवाह के समय में भी अच्छा कारोबार किया। हालांकि ऐसा नहीं है कि फाइनेंस की योजनाओं के न होने से हीरोहोंडा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
फाइनेंस के जरिए बेची जाने वाली उसकी गाड़ियों का प्रतिशत अब 60 फीसदी से घटकर 40 फीसदी हो गया, लेकिन वह कंपनी इस स्थिति में भी प्रीमियम सेगमेंट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में सफल रही। 9,046 करोड़ रुपये की बजाज कंपनी अगले छह माहों में छह नए प्रॉडक्ट लांच करने जा रही है।