वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) की परिसंपत्तियां 5 लाख करोड़ रुपये के मनोवैज्ञानिक स्तर के पार चली गई है क्योंकि अपने पोर्टफोलियो का जोखिम कम करने और रिटर्न अधिकतम करने के लिए वैकल्पिक निवेश का ठिकाना खोजने वाले धनाढ्य निवेशकों की संख्या बढ़ रही है।
सितंबर तिमाही के आखिर में एआईएफ उद्योग की परिसंपत्तियां 5.35 लाख करोड़ रुपये रहीं, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 32 फीसदी ज्यादा है। पिछले पांच साल में उद्योग आठ गुना से ज्यादा बढ़ा है क्योंकि तब उसकी परिसंपत्तियां 65 करोड़ रुपये की थी।
एआईएफ में न्यूनतम निवेश एक करोड़ रुपये होता है और उसका लक्ष्य विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों में निवेशकों को विशिष्ट रणनीति की पेशकश का होता है।
व्हाइट ओक कैपिटल मैनेजमेंट के मुख्य कार्याधिकारी आशिष पी सोमैया ने कहा कि प्रोफेशनल मैनेजमेंट के साथ एआईएफ जोखिम-प्रतिफल की पेशकश करता है, जिसकी पेशकश अन्य जरिये मसलन म्युचुअल फंडों या पीएमएस या डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट में नहीं हो सकती। एआईएफ की तेज रफ्तार की विभिन्न वजहों में वेल्थ मैनेजमेंट इंडस्ट्री में आई तेजी और बढ़ती समृद्धि के अलावा धनाढ्य निवेशकों, फैमिली ऑफिस व संस्थानों का निवेश के प्रति बढ़ता रुझान शामिल है।
उन्होंने कहा कि उद्यमिता से जुड़ी गतिविधियों में बढ़ोतरी, खास तौर से डिजिटल सक्षम ग्राहक व वित्तीय सेवा क्षेत्र में, से पूंजी आकर्षित करने की दरकार और इन कारोबारों में निवेश की मांग से भी एआईएफ की रफ्तार बढ़ी है। ज्यादातर असूचीबद्ध इक्विटी व रियल एस्टेट क्षेत्र कवर करने वाली कैटिगरी-2 एआईएफ ऐसी प्रवृत्तियों की सबसे बड़ी लाभार्थी रही है।
कैटिगरी-2 फंडों की परिसंपत्तियां कुल एआईएफ उद्योग का 80 फीसदी है। कैटिगरी-1 व 3 में जो फंड नहीं आते और जो रोजाना की परिचालन की जरूरतों के लिए उधारी के अलावा अन्य काम के लिए उधार नहीं लेते उन्हें कैटिगरी-2 में वर्गीकृत किया गया है। इनमें रियल एस्टेट फंड, प्राइवेट इक्विटी फंड और दबाव वाली परिसंपत्तियों के फंड शामिल हैं।
एमके इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के मुख्य कार्याधिकारी विकास सचदेव ने कहा, हाल के वर्षों में वैश्विक ऑल्टरनेटिव इंडस्ट्री तेज रफ्तार से आगे बढ़ी है। ये चीजें रिटर्न में बढ़ोतरी की दरकार और विशाखन में इजाफे के चलते आगे आई हैं। इस बढ़त को बाह्य स्थितियां मसलन कम ब्याज दर, सूचनाओं की उपलब्धता, उभरते बाजारों का परिपक्व होना और पूंजी सृजन में ढांचागत बदलाव से भी सहारा मिला है। उद्योग की मौजूदा स्थिति को देखते हुए और नियमन की हालिया प्रगति से यह उम्मीद की जाती है कि भारत का वैकल्पिक उद्योग वैश्विक प्रवृत्ति का पीछा करेगा और भारत के निवेश योग्य यूनिवर्स का बड़ा हिस्सा लेगा।
चूंकि पीएमएस व एआईएफ योजनाओं में अन्य बातों के अलावा खासा रिटर्न सृजित होता है, ऐसे में उद्योग साल 2031 तक 20 फीसदी सीएजीआर की रफ्तार से 50 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि सूचीबद्ध क्षेत्र में महंगे मूल्यांकन को देखते हुए निवेशक वैकल्पिक जरिया मसलन स्ट्रक्चर्ड क्रेडिट, वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी फंड, रियल एस्टेट फंड और कैटिगरी-2 में लॉन्ग-शॉर्ट स्ट्रैटिजी पर नजर डाल रहे हैं और इन सभी का लॉन्ग इक्विटी से शायद काफी कम सह-संबंध होगा।
इस तरह की बढ़त के बावजूद एआईएफ उद्योग अभी भी एमएफ उद्योग के आकार का सातवां हिस्सा ही है, जिसकी परिसंपत्तियां सितंबर के आखिर में 37.4 लाख करोड़ रुपये की थी, जो एक साल पहले के मुकाबले 39 फीसदी ज्यादा है। पीएमएस में न्यूनतम निवेश 50 लाख रुपये होता है और वहां डिस्क्रेशनरी पोर्टफोलियो में 22.7 लाख करोड़ रुपये, गैर-डिस्क्रेशनरी पोर्टफोलियो में 1.44 लाख करोड़ रुपये और एडवाइजरी के तहत 2.23 लाख करोड़ रुपये का प्रबंधन हो रहा है। बाजार नियामक सेबी के हालिया आंकड़ों से यह जानकारी मिली।
