भारतीय बाजार पर मेहरबान होने के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) अब धीरे-धीरे निवेश निकालने में जुट गए हैं। इस वर्ष दुनिया में शानदार प्रदर्शन करने वाले बाजारों में शुमार भारत से एफपीआई ने अक्टूबर की शुरुआत से निवेश निकालना शुरू कर दिया था। अक्टूबर के अंत तक उन्होंने बिकवाली तेज कर दी और हाल के कारोबारी सत्रों में बिकवाली चरम स्तर पर पहुंच गई। इस वर्ष के शुरू से अब तक एफपीआई द्वारा किया गया निवेश कम होकर 6.2 अरब डॉलर से भी नीचे रह गया है।
बाजार में शेयरों के अधिक उछलने, नीतिगत स्तर पर हालात सामान्य बनाने की पहल के संकेत मिलने और बड़े सार्वजनिक आरंभिक निर्गमों (आईपीओ) की कतार के बीच उत्पन्न चिंताओं के कारण एफपीआई को बिकवाली कर मुनाफा कमाना ही बेहतर विकल्प लग रहा है। एफपीआई द्वारा भारतीय बाजार में की जा रही बिकवाली पर अवेंडस कैपिटल पब्लिक मार्केट्स अल्टरनेटिव स्ट्रैटेजीज के मुख्य कार्याधिकारी एडं्र्यू हॉलैंड ने कहा, ‘तेजी से उभरते दूसरे बाजारों की तुलना में भारतीय बाजारों का प्रदर्शन शानदार रहा है। अब यहां थोड़ी बिकवाली जरूर देखने को मिल रही है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा प्रोत्साहन उपाय वापस लिए जाने की प्रक्रिया नजदीक आने से बिकवाली और अधिक हो सकती है। अगर जोखिम-प्रतिफल के संदर्भ में देखें तो भारतीय बाजार में इस समय जोखिम अधिक हो गया है।’
कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि एफपीआई अब भारतीय बाजार के मुकाबले विकसित बाजारों एवं सुरक्षित समझी जाने वाली अन्य जगहों में रकम झोंक रहे हैं। बीएनपी पारिबा में इंडिया इक्विटीज प्रमुख अभिराम इलेस्वरापू ने कहा, ‘हाल के महीनों की तुलना में अब विदेशी निवेश आने की रफ्तार थोड़ी सुस्त हो गई है। पिछले आंकड़ों की तुलना में भारतीय बाजारों में ऊंचा मूल्याकन इसकी प्रमुख वजह हो सकती है। हालांकि तेजी से उभरते दूसरे बड़े बाजारों में भी विदेशी निवेशकों ने बिकवाली की है। फेडरल रिजर्व द्वारा राहत उपाय वापस लिए जाने की शुरुआत का समय नजदीक आने और कच्चा तेल लगातार महंगा होने से भारत सहित दूसरे तेजी से उभरते बाजारों में बाहर से आने वाले निवेश पर असर हुआ है।’
एफपीआई ने ऐसे समय में बिकवाली तेज कर दी है जब सीएलएसए, गोल्डमैन सैक्स और मॉर्गन स्टैनली सहित दूसरी वैश्विक ब्रोकरेज कंपनियों ने भारतीय बाजारों में ऊंचे मूल्यांकन और जोखिम बढऩे पर चिंता जताई है। इस साल की शेष बची अवधि में देश के शेयर बाजारों में संस्थागत निवेश की चाल धीमी रह सकती है। इलेस्वरापू ने कहा, ‘नवंबर तक कई बड़े आईपीओ की कतार लगी हुई है जिससे बाजार में उपलब्ध नकदी थोड़ी कम हो सकती है। लगभग इसी समय फेडरल रिजर्व राहत उपाय वापस लेना शुरू कर सकता है। इन हालात के बीच अगर एफपीआई निवेश में कमी करते हैं तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जब तक एफपीआई बिकवाली करते रहेंगे तब तक बाजारों में निवेश कुछ खास शेयरों में केंद्रित रह सकता है।’
हालांकि 2.7 अरब डॉलर निकलने के बाद भी घरेलू शेयर बाजार में कोई बड़ी गिरावट नहीं आई है क्योंकि घरेलू संस्थान और खुदरा निवेशक लगातार इसकी भरपाई कर रहे है। संस्थानों एवं बड़े निवेशकों की बिकवाली से बाजार को होने वाले नुकसान की भरपाई खुदरा निवेशक कर रहे हैं। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि हाल के सप्ताहों में एफपीआई ने जितनी बिकवाली की है वह उनके कुल निवेश का मात्र एक मामूली हिस्सा है।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी चोकालिंगम कहते हैं, ‘अगर एफपीआई अपनी कुल हिस्सेदारी का एक या दो प्रतिशत हिस्सा बेच देते तो सूरत कुछ और होती। खुदरा निवेशकों ने जमकर निवेश नहीं किया होता तब भी बाजार में माहौल अलग होता। संस्थागत निवेशकों पर भारतीय बाजार की निर्भरता काफी अधिक है इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगी कि खुदरा निवेशकों ने बाजार पर पकड़ मजबूत कर ली है।
