डेरिवेटिव में खुदरा निवेशकों की खासी मौजूदगी से चिंतित बाजार नियामक सेबी वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) में शामिल होने वाले शेयरों के लिए सख्त मानक तैयार करने की योजना बना रहा है। सूत्रों के मुताबिक, सेबी की द्वितीयक बाजार सलाहकार समिति ने विभिन्न मानकों मसलन इंपेक्ट कॉस्ट, पोजिशन लिमिट और डिलिवरी वॉल्यूम पर चर्चा की है ताकि सुनिश्चित हो कि सिर्फ लिक्विड शेयर ही डेरिवेटिव का हिस्सा बने रहें। उदाहरण के लिए, इंपेक्ट कॉस्ट से जुड़े मौजूदा नियम के तहत किसी शेयर का मीडियन क्वार्टर-सिग्मा ऑर्डर साइज पिछले छह महीने में 25 लाख रुपये से कम नहीं हो सकता। आने वाले समय में इसे बढ़ाकर 50 लाख रुपये किया जा सकता है। इसी तरह बाजार में पोजीशन की सीमा 500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपये की जा सकती है।
नकदी बाजार में रोजाना औसत डिलिवरी वैल्यू रोलिंग आधार पर पिछले छह महीनों में 10 करोड़ रुपये से कम नहीं हो सकता। इसे बढ़ाकर 20 करोड़ रुपये किया जा सकता है। इसके अलावा कारोबार के संकेंद्रण को टालने के लिए एफऐंडओ शेयर की ट्रेडिंग 15 फीसदी पंजीकृत ब्रोकरों या कम से कम 200 ब्रोकरों (जो भी कम हो) की तरफ से होना चाहिए।
एफऐंडओ में शामिल कोई शेयर अगर इन अनिवार्यताओं को लगातार तीन महीने तक पूरा करने में नाकाम रहता है तो उसे एफऐंडओ से बाहर कर दिया जाएगा जब उसके बकाया अनुबंध एक्सपायर हो जाएंगे।
हालांकि ये नियम अभी चर्चा के चरण में हैं। अगर ये नियम लागू हो गए तो करीब 30 एफऐंडओ शेयर बाहर किए जा सकते हैं। यह जानकारी पेरिस्कोप एनालिटिक्स के विश्लेषक ब्रायन फ्रिएटस के विश्लेषण से मिली, जो स्मार्टकर्मा का प्रकाशन करते हैं।
अभी 195 शेयर एनएसई डेरिवेटिव का हिस्सा हैं। स्मार्टकर्मा में प्रकाशित एक नोट में फ्रिएटस ने कहा है, क्वार्टर सिग्मा ऑर्डर साइज, पोजीशन की सीमा और औसत रोजाना डिलिवरी वैल्यू के साथ शेयरों की सूची बनेगी, जिन्हें एफऐंडओ से बाहर किया जा सकता है। हम ऐसे 30 शेयर देख रहे हैं, जो एफऐंडओ में बने रहने के लिए मानकों को पूरा नहीं करते। इन शेयरों ने पिछले तीन महीने (मई, जून, जुलाई) में प्रस्तावित सीमा को पूरा करने में नाकामी दर्ज की है। इनमें से कुछ शेयर हैं ऐबट इंडिया, सन टीवी, हिंदुस्तान कॉपर और टॉरेंट पावर।
करीब एक दर्जन अन्य शेयर भी इसके दायरे में आ सकते हैं क्योंकि वे पिछले तीन महीने में से एक या दो में प्रस्तावित सीमा को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। इनमें आईडीएफसी, मणप्पुरम फाइनैंस और मैक्स फाइनैंशियल शामिल हैं। फ्रिएटस ने कहा, ऐसे कई शेयर हैं जो बाजार के हिसाब से प्रस्तावित पोजीशन की सीमा पूरी करने में नाकाम रहे, वहीं कई ऐसे हैं जो प्रस्तावित रोजाना डिलिवरी वैल्यू के औसत की सीमा पूरा नहीं कर पाए।
जुलाई में औसत रोजाना कारोबार नकदी बाजार में 46,602 करोड़ रुपये रहा। दूसरी ओर एफऐंडओ में रोजना औसत कारोबार करीब 11 लाख करोड़ रुपये रहा। भारत के लिए नकदी-डेरिवेटिव कारोबार का अनुपात दुनिया भर में सबसे ऊंचा है। सेबी डेरिवेटिव में बढ़ती खुदरा भागीदारी को लेकर विगत में चिंता जता चुका है। साल 2019 में सेबी ने डेरिवेटिव अनुबंधों के अनिवार्य फिजिकल सेटलमेंट की ओर कदम बढ़ाया था। कई खुदरा ट्रेडर डेरिवेटिव को प्राथमिकता देना जारी रखे हुए हैं क्योंकि यह ज्यादा लाभ की पेशकश करता है, हालांकि यह काफी ज्यादा जोखिम के साथ होता है।