भारत के दो अरबपति (अंबानी) भाइयों के बीच अदावत ने विकासशील दुनिया के सबसे बड़े दूरसंचार खिलाड़ियों के एक होने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
दक्षिण अफ्रीका की एमटीएन ग्रुप लिमिटेड और भारत की रिलायंस कम्युनिकेशंस के बीच वह बातचीत खत्म हो गई, जिससे वायरलेस दूरसंचार की महाशक्ति का सृजन हो सकता था। इसकी वजह था मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच टकराव। दोनों भाई एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ से ही दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार हो गए हैं, लेकिन इस मुकाबले की तस्वीर बद से बदतर होती जा रही है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल (22 जुलाई 2008)
दुनिया के एक जाने माने अखबार में छपी पंक्तियां यह बताने के लिए काफी हैं कि अंबानी बंधुओं के बीच चल रहा अहम का द्वंद्व उद्योग जगत के लिए कितना घातक है। बेशक, इससे दोनों भाई दौलत के अंबार लगाते जा रहे हैं, लेकिन एमटीएन-आर कॉम सौदे जैसे समझौतों की भ्रूण हत्या भी इसी टकराव का नतीजा है, जिससे भारतीय उद्योग जगत मील के एक और पत्थर से महरूम रह गया।
दरअसल जब एमटीएन और अनिल अंबानी की आर कॉम के बीच शेयरों की खरीदफरोख्त के जरिये अफ्रीकी कंपनी के अधिग्रहण की बात परवान चढ़ी, तो मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) बीच में आ गई। दोनों भाइयों के बीच कारोबार के बंटवारे के समय तय की गई एक अहम शर्त का हवाला देते हुए आरआईएल ने कहा कि आर कॉम के शेयरों की खरीद का पहला अधिकार उसके पास है। इसके बाद तमाम कानूनी अड़चनों और धमकियों का नतीजा आखिरकार यही हुआ कि बातचीत बीच में ही टूट गई।
19 जुलाई को जब एमटीएन और आर कॉम के बीच बातचीत खत्म होने की खबर सुर्खियों में आई, तो कारोबारी हलके को झटका लगना लाजिमी था। लेकिन ऐसी खबरें तो धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद से लगातार सुर्खियां बनती रही हैं। हालांकि धीरूभाई की पत्नी कोकिलाबेन अंबानी ने दोनों भाइयों के बीच 2005 में कारोबार बांटने समय वायदा लिया था कि एक दूसरे के क्षेत्र में कोई दखल नहीं देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
आरआईएल बनाम रिलायंस नैचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड (आरएनआरएल) मसला हो या गैस आपूर्ति पर झगड़ा या रिलायंस कम्युनिकेशंस के शेयरों की पहली खरीद पर आरआईएल के हक की बात, दोनों भाइयों के बीच तकरार हफ्ता दर हफ्ता बढ़ती ही जा रही है। लेकिन इसका नुकसान तो कारोबारी जगत को ही उठाना पड़ रहा है क्योंकि निवेश के कई दरवाजे इसकी वजह से बंद हो रहे हैं। राजनीति भी दोनों भाइयों से परे नहीं है।
जब दोनों भाइयों का झगड़ा प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक पहुंचने की खबरें सामने आईं, तो वहां से साफ किया गया कि दोनों भाइयों के झगड़े में कोई राजनीतिक पेच नहीं है। लेकिन देश के दो सबसे अमीर शख्स ताल ठोककर आमने सामने हों, तो शीर्ष नेतृत्व का परेशान होना लाजिमी है।
विदेशी मीडिया भी अब अंबानी-पुराण में मजा लेने लगा है। फाइनैंशियल टाइम्स कहता है कि दोनों भाइयों के झगड़े पर बी ग्रेड की फिल्म बन सकती है, तो इंडिपेंडेंट के मुताबिक अंबानी-कहानी जेफ्रे आर्चर के रोमांचक उपन्यास से कम नहीं है। बकौल संडे टाइम्स, ‘भारत में भाइयों के बीच झगड़ा नई बात नहीं है, लेकिन अंबानी बंधुओं का टकराव तो देश के कारोबारी समुदाय को हलकान किए दे रहा है।’ फाइनैंशियल टाइम्स तो यह भी कहता है कि दोनों भाई इसी बात पर झगड़ रहे हैं कि तेरी कमाई मुझसे ज्यादा कैसे।
बात सही भी है। मुकेश की उम्र 51 साल है और अनिल की 49। कारोबारी खिलौनों के लिए झगड़ने की यह भी कोई उम्र है भला। इस बार व्यापार गोष्ठी में विषय था, ‘अंबानी बंधुओं की सुलह उद्योग जगत के हित में है?’ हमें पाठकों और विशेषज्ञों से ढेरों प्रतिक्रियाएं मिलीं। सभी इस बात से सहमत हैं कि दोनों का एक होना ही बेहतर है। उनके मुताबिक दोनों भाई अगर एक हो जाते हैं, तो 8,500 करोड़ डॉलर का साम्राज्य ही नहीं बनेगा, बल्कि कारोबारी परवाज की नई इबारत भी लिखी जाएगी।