विस्फोटों का सबसे ज्यादा प्रभाव कारोबार पर पड़ता है। विदेशों से आने वाली कंपनियां तो दूर, यहां के कारोबारी उन जगहों पर जाने से कतराएंगे, जहां आतंकवादी हमले होते हैं। देश में सुरक्षा व्यवस्था कहीं नजर नहीं आती है। वास्तव में, हमने अपने हाथ खुद बांध रखे हैं। हमारे पास 1863 का कानून है, जो सबसे लचर है।
उदाहरण के लिए दिल्ली बम विस्फोट को लें, गुनाह को साबित करने के लिए कम से कम दो गवाह चाहिए होंगे, जहां से सामान खरीदा गया हो। इसके बाद दो और गवाह चाहिए होंगे, जिसने आतंकवादियों को बम रखते हुए देखा हो।
साथ ही, कुछ ऐसे गवाह भी चाहिए होंगे जो यह जानते होंगे कि आतंकी कहां ठहरे हुए थे और कहां से आए थे और तभी जाकर उस आतंकी को सजा मिल पाएगी। लॉ कमीशन ने कहा था कि 10 लाख जनसंख्या के लिए 50 न्यायाधीश होने चाहिए।
हमारे पास कुल 12 हजार से कुछ अधिक न्यायाधीश हैं जबकि करीब 80 हजार न्यायाधीश की जरूरत है। हमारे देश में न केवल न्यायिक प्रक्रिया बेहद सुस्त है बल्कि कानून में भी काफी खामियां हैं। यहां का खुफिया विभाग पूरी तरह फेल हो चुका है।
सरकार उनकी सुस्ती का कभी जायजा भी नहीं लेती है। अमेरिका में 911 के बाद अभी तक कोई आंतकी घटना नहीं हुई है जबकि भारत ने तो आतंकवादियों के लिए धर्मशाला बना दी है। आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार को चाहिए कि वे मुस्लिमों की भागीदारी बढ़ाए। लोहे को लोहा ही काटता है।
जोगिंदर सिंह
पूर्व निदेशक, सीबीआई
पुलिस व्यवस्था पर ही लगा है गंभीर सवालिया निशान
आतंकवाद का सबसे सीधा शिकार कारोबारी होता है। कानून- व्यवस्था की जिम्मेदारी सरकार और पुलिस बल की है लेकिन पुलिस भी क्या करें। कानून-व्यवस्था के अलावा पुलिस का काम अनाधिकृत निर्माण को रोकना, जानवर पकड़ना, सीलिंग करना और साथ ही वीआईपी सुरक्षा आदि की भी जिम्मेदारी होती है।
अगर बीते दस सालों में देखें तो नागरिकों की सुरक्षा व्यवस्था के अलावा पुलिस को अन्य बहुत सारे कामों में लगा दिया गया है। ऐसे में पुलिसिया व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगता है। हमने सरकार से कई बार आग्रह किया कि पुलिस व्यवस्था और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ‘सिटिजन पुलिसिंग’ की ओर ध्यान देना चाहिए।
सिटिजन पुलिसिंग से मतलब है कि सेना से रिटायर्ड अधिकारियों, सिविल डिफेंस के लोगों, पुलिस के रिटायर्ड अधिकारियों, व्यापारिक एसोसिएशन के प्रतिनिधियों, रेजिडेंट वेलफेयर के प्रतिनिधियों को इकठ्ठा करके प्रत्येक थाने पर एक समानांतर नागरिक पुलिस फोर्स बनाई जानी चाहिए।
सरकार को चाहिए कि मार्केट में आने-जाने के रास्तों को सीमित करे और जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं ताकि संदिग्ध लोगों पर नजर रखी जा सके। जहां कहीं भी आतंकवाद की घटनाएं होती हैं, वहां के कारोबारियों व उपभोक्ताओं को जानमाल के साथ-साथ काफी घाटा उठाना पड़ता है।
इसे ध्यान में रखते हुए सरकार को चाहिए कि वे काफी कम प्रीमियम पर ‘टेरेरिज्म इंश्योरेंस’ लागू करें। अगर सरकार इस दिशा में कदम उठाती है तो कारोबारियों व उपभोक्ताओं में सुरक्षा व्यवस्था के प्रति फिर से विश्वास बहाल होगा।