शायद यह पहला ड्रामा होगा, जिसके खत्म होने के बाद पर्दा उठा हो।
मगर चिंता की बात नहीं है क्योंकि पर्दे के पीछे क्या राजनीतिक ड्रामा हुआ, इसकी जानकारी जनता को कराने की जिम्मेदारी आखिर मीडिया के ही कंधे पर तो है।
वैसे जनता के लिए इस तमाशे की अहमियत कितनी है, इसका अंदाजा खुद सरकार को भी है, तभी पहली बार ऐसा हुआ है कि फकत तेल कीमतों की बढ़ोतरी पर सफाई देने खुद प्रधानमंत्री को जनता के सामने आना पड़ा।
बहरहाल, पर्दा उठा तो नजर आए, तेल कीमतें बढ़ाने के पीछे सरकार की मजबूरी की सफाई देते प्रधानमंत्री। उन्होंने बहुत कुछ कहा लेकिन पर्दे के पीछे के किरदार उनके साथ नजर नहीं आए। ये किरदार थे- संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की अध्यक्ष सोनिया गांधी, पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दल।
तमाशा भी गजब का। तेल कंपनियों की गुहार, कान में अंगुली डालकर बैठी सरकार, अचानक देवड़ा का सामने आना और तेल कंपनियों की हिमायत करना, सोनिया की प्रधानमंत्री के साथ गुफ्तगू, शनिवार को फैसला लेने का ऐलान और फिर उसे भी टाल देना…. वाकई दिलचस्प तमाशा रहा होगा।
राजकोषीय घाटे और भुगतान संतुलन के फेर में बुरी तरह फंसे संप्रग को सख्त फैसले तो करने ही थे। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। इसलिए देवड़ा आगे आए। तेल मूल्य बढ़ाने की मांग के साथ उन्होंने राजकोषीय घाटा भरने के लिए वित्त मंत्री को आयकर और कॉरपोरेट कर पर उपकर लगाने तक की सलाह दे डाली।
हालांकि वित्त मंत्री ने शायद चुनावी साल का लिहाज करते हुए देवड़ा को बैरंग लौटा दिया। लेकिन इससे आम आदमी को अहसास हो गया कि अब तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से बचना मुमकिन नहीं। प्रधानमंत्री ने भी कह दिया कि मूल्य वृद्धि का बोझ जनता को भी साझा करना ही होगा। माहौल बन गया, तो फैसले में देर कैसी। इसलिए देवड़ा ने ऐलान कर दिया कि शनिवार यानी 31 मई को फैसला किया जाएगा। लेकिन ऐन मौके पर भारतीय जनता पार्टी आड़े आ गई।
रविवार को इसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होनी थी। इसलिए फैसला टाल दिया। लेकिन भारत में सरकारें सयानी ही होती हैं। यही वजह थी कि पिछले 5 दिन से देवड़ा पेट्रोल में कम से कम 10 रुपये और डीजल में 5 रुपये बढ़ोतरी की बात कर रहे थे। आखिकार जब भाजपा के हाथ से मौका निकल गया, तो कीमतों में इसकी ठीक आधी बढ़ोतरी कर दी गई।
संप्रग सरकार के हमजोली वाम दलों ने अपना किरदार इस पूरे तमाशे में बहुत अच्छी तरह से निभाया। धमकियां देना उनका काम है और यह काम इस बार भी उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ किया। पश्चिम बंगाल और केरल में बंद का ऐलान हो चुका है।
भाजपा बेचारी वाकई हाथ मलती रह गई होगी क्योंकि सरकार 4 दिन पहले यह ऐलान कर देती, तो उसके वारे-न्यारे हो जाते। लेकिन कीमतें बढ़ते ही पार्टी को तेल में आतंकवाद दिख गया और उसने संप्रग पर आर्थिक आतंकवाद फैलाने का आरोप लगा डाला। बहरहाल, तेल का मंच है तो आग तो भड़केगी ही, बस जरूरत एक अदद चिंगारी की है। जो कीमतें बढ़ाने के ऐलान के साथ ही खुद सरकार ने फेंक दी है। तो अब जो नजर आएगा, वह इस तमाशे का भाग-2 होगा।