कोविड-19 टीकों से पेटेंट हटाने का अमेरिकी सरकार का कदम स्वागत योग्य है मगर भारत की टीका कंपनियों का कहना है कि जब मूल टीका बनाने वाली कंपनी साझेदारी के लिए आगे नहीं आती तब तक टीका फौरन हासिल नहीं हो पाएगा। अगर तकनीक तत्काल मिल जाती है तो भी प्रक्रिया विकसित करने और व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने में 9 से 12 महीने लग जाएंगे। टीके जैविक उत्पाद हैं, जिन्हें बनाने में वायरसों का इस्तेमाल होता है। इनका उत्पादन बहुत जटिल प्रक्रिया है। भारतीय उद्योग ने चेताया है कि उस प्रक्रिया में मामूली सा बदलाव होने पर सही टीका हासिल नहीं हो पाएगा। लेकिन अमेरिकी दवा संगठन मानते हैं कि पेटेंट खत्म करने से पहले से ही दबाव में चल रही आपूर्ति शृंखला और भी कमजोर हो जाएगी। कोविड-19 का टीका जाइकोव-डी तैयार करने के अंतिम चरण में पहुंच चुकी दवा कंपनी जाइडस कैडिला के प्रबंध निदेशक शर्विल पटेल ने कहा, ‘हर किसी के पास अलग सेल लाइन होती है, अलग प्रोप्राइटरी एडजुवेंट होते हैं और प्रोप्राइटरी उपकरण तथा अलग-अलग तकनीक भी हो सकती हैं।
बौद्धिक संपदा का दायरा व्यापक है। हर कोई विनिर्माण की असल प्रक्रिया नहीं जानता है।’ इसलिए पटेल को लगता है कि अगर खोजकर्ता कंपनी अन्य कंपनियों के साथ साझेदारी करने, तकनीक हस्तांरित करने और प्रक्रियाएं तैयार करने में मदद करने को राजी नहीं है तो बौद्घिक संपदा का अधिकार छोडऩे का ज्यादा फायदा नहीं है। बायोकॉन की चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ भी ऐसा ही मानती हैं। एक टेलीविजन चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस समय पेटेंट नहीं बल्कि क्षमता सबसे बड़ी बाधा हैं। उन्हें लगता है कि पेटेंट हटा दिया गया और सब कुछ तुरंत उपलब्ध करा दिया गया तो भी एमआरएनए टीका बनाने में 9 महीने से एक साल तक का समय लगेगा। उन्होंने कहा, ‘फाइजर और बायोनटेक इन तकनीकों पर वर्षों से काम कर रही हैं और इनकी मदद से उन्होंने ये टीके बनाए हैं।’
पटेल को ललगता है कि टीके बनाने के लिए पूंजी लगानी होगी और टीके बनाने की प्रक्रिया आदि तैयार करने में करीब एक साल लग जाएगा। जाइडस किसी भी वैश्विक कंपनी के साथ साझेदारी के लिए तैयार है मगर इसमें समय लगेगा। टीके बनाने के लिए कच्चे माल की जरूरत होती है और कच्चा माल तैयार करने की पर्याप्त क्षमता हासिल करना भी उत्पादन बढ़ाने की राह में बड़ी बाधा है।
